शादी के पवित्र सात फेरों से कचहरी के सत्तर फेरों तक मनमाना ”हस्तक्षेप” –

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सामाजिक विसंगतियों पर केन्द्रित आलेख – 
 
            लेखक-  विनोद कुमार विक्की 
 वर्तमान परिदृश्य में समाजिक विसंगतियों के रूप में अमूमन यह देखने को मिल रहा है कि नए वैवाहिक संबंध कुछ ही वर्षों में टूटने के कगार पर पहुँच जाता है।
अधिकांश मामलों में ऐसा तब होता है जब नवविवाहित के दाम्पत्य जीवन में वधु पक्ष का हस्तक्षेप हो या लड़की का अपने ससुराल की उपेक्षा एवं मायका के प्रति ज्यादा झुकाव हो।
लड़की के माता-पिता आदि के हस्तक्षेप से लड़की के मन में ससुराल पक्ष एवं पति के प्रति उदासीनता तो आती ही है साथ ही दाम्पत्य जीवन में खटास भी आने लगती है।माता-पिता,भाई मायके के प्रति समर्पित एवं मायके के संपर्क में रहने वाली बहू अपने संस्कार व संस्कृति को ताक पर रखकर पति एवं उनके रिश्तेदारों को सम्मान देना तक छोड़ देती है।
     दान दहेज देकर आई लड़कियों के मन में ये बात घर कर जाती है कि पति से रिश्तेदारी ना होकर उसकी खरीदारी हुई हो और पति पर सिर्फ और सिर्फ उसी का मालिकाना हक है। उसके बाद तो ससुराल में उसकी मनमानी व ससुराल पक्ष के प्रति दुर्व्यवहार शुरू हो जाता है।इस स्थिति में जब पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा बहू को समझाने या नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है तो बहू के मायके पक्ष का हस्तक्षेप बढ़ जाता है।और  बढ़ते बढ़ते सात फेरों का पवित्र संबंध कोर्ट कचहरी के सत्तर फेरों में उलझ जाता है। पारिवारिक रिश्तों में हो रहे क्षय के प्रमुख कारणों में से एक पति पत्नी के दाम्पत्य जीवन में बाहरी हस्तक्षेप देखा जा रहा है।
                    साल 2009 में देश भर में दहेज प्रताड़ना के 90000 मुकदमें दर्ज हुए हैऔर प्रति वर्ष ऐसे मामलों में औसतन 11 फीसदी बढ़ोतरी हो रही है।दर्ज हुए मुकदमें में से महज दो फीसदी मामलों में ही सजा होती है।जबकि 98 फीसदी मामलों में या तो समझौता हो जाता है या फिर मुकदमा फर्जी पाए जाते है। ‘नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो’ की रिपोर्ट बताती है कि विवाहित पुरुषों की आत्महत्या दर(65000 लगभग)विवाहित महिलाओं की आत्महत्या दर (28000 लगभग) से दोगुनी से अधिक है।
       आंकड़े बताते हैं कि हर साल 4000 निर्दोष सीनियर सिटीजन 350 बच्चों सहित करीब एक लाख निर्दोष लोग आइपीसी सेक्शन 498 ए के तहत बिना सबूत व जाँच के गिरफ्तार होते है। हर साल लगभग 56000 से ज्यादा शादी शुदा पुरूष मौखिक,भावनात्मक, इकोनामिकल और फिजिकल अब्यूज एवं लीगल ह्रासमेंट की वजह से खुदकुशी कर लेते है।
     इनदिनों दहेज़ उत्पीड़न के साथ पति पर आईपीसी धारा 376 एवं 377 (रेप एवं अप्राकृतिक संबंध) के मुकदमें का प्रचलन  भी खूब देखने को मिल रहा है।
      विजय(काल्पनिक नाम) की शादी वर्ष 2010 में नवहट्टा सहरसा के मनोहर गुप्ता(काल्पनिक) की बेटी स्वीटी(काल्पनिक) से संपन्न हुई।जिसमें संबंध जोड़ने के नाम पर स्वीटी के अपने मौसा ने विजय के पिता से कमीशन( दलाली) की शर्त भी रखी थी।
     अल्प शिक्षित  स्वीटी जो महज मैट्रिक की शिक्षा भी हासिल नहीं की थी वो पोस्ट ग्रेजुएट सेंट्रल गवर्मेंट जाॅब वाले पति को सम्मान देने एवं  ससुराल में नए रिश्तों को संभालने की बजाय अपने मायके को ज्यादा तवज्जों देती थी।
      वह ससुराल में दो-तीन माह और मायके में नौ दस माह बिताना पसंद करती थी।जो विजय के घर वालों को नागवार लगता।
      जब जब मायके जाती  माता-पिता को ससुराल पक्ष व पति की झूठी व मनगढ़ंत बातें बताकर मायके में ज्यादा से ज्यादा समय रहने  का प्रयास करती  ।
पति को परिवार से अलग करने के लिए  उसने परिवार से अलग हो चुकी सबसे बड़ी जेठानी के साथ मिलकर षडयंत्र के तहत अपने पति के चरित्र पर आरोप लगाते हुए साथ वाली छोटी भाभी से संबंध होने के नाम पर घर में अपने तिरिया चरित्र का भी प्रयोग कर लिया। जब यह हथकंडा सफल नहीं हुआ तो  सास और साथ वाली जेठानी से तू तू मैं मैं कर हर समय परिवार में कलह करने की कोशिश करती।ताकि उसका पति उबकर अपने माँ भाई भाभी से अलग हो जाए और सिर्फ उस पर एवं अपने बच्चों पर ही ध्यान दे सके।
      विवाह के महज कुछ माह बाद ही परिवार को तोड़ने की उसकी मंशा तो पूरी नहीं हुई लेकिन अपनी इन घटिया हरकतों के कारण वह पति विजय सहित समूचे परिवार के नजर में गिर जरूर गई।
ससुराल में नई नवेली दुल्हन द्वारा किए गए षडयंत्र एवं गलतियों को नजरअंदाज करते हुए स्वीटी के अमीर मम्मी पापा भाई  उसे पूरा शह देते और मायके में ही उसे रहने को प्रेरित करते। 
               स्वाभिमानी विजय सामाजिक प्रतिष्ठा व कानूनी पेंच के झूठे झमेले से बचने  तथा अपने दाम्पत्य जीवन को बचाने की भरसक कोशिश कर रहा था।
स्वीटी हमेशा दबाव देती कि विजय उसके मायके वालों के अनुसार चले,परिवार से अलग हो जाय किंतु विजय को ये कतई पसंद नहीं था।
दस दिन के नाम पर मायके जाने वाली स्वीटी साल साल भर मायके रह जाती।विजय जब लाने जाता तो खराब मुहूर्त या कोई अन्य बहाना बना स्वीटी के माता-पिता विदा करने से मना कर देते।इस सबमें स्वीटी की सहमति होती थी।उनलोगों के दुर्व्यवहार से आहत विजय गुस्से में ससुराल ना जाने का प्रण कर लेता।तब समय बितने  एवं उसके समाज में  स्वीटी को लेकर चार तरह की बातें होने से स्वीटी के माता-पिता विजय के दोस्तों,रिश्तेदारों एवं परिचितों से विजय की शिकायत करते हुए उस पर ही चरित्रहीन होने का आरोप लगाकर घड़ियाली आंसू बहा मनगढंत दुखड़ा सुनाते हुए कहता कि विजय अपने नाजायज संबंध के कारण अपनी पत्नी को मायके में छोड़े हुए है जबकि सच्चाई ये थी कि आजतक विजय स्वीटी को अपने से कभी मायके नही पहुँचाया था।जब भी स्वीटी ससुराल आती उसके अगले सप्ताह तक उसके पापा  दादा की बिमारी के नाम पर तो कभी रक्षाबंधन के नाम पर तो कभी किसी ना किसी बहाने विदाई लेने पहुँच जाता।
सास ससुर के हस्तक्षेप से आहत विजय ससुराल से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखना चाहता था किंतु पत्नी की मनमानी एवं सहभागिता के कारण वो बेबस था।बगैर पति से बातचीत किए महीनों तक मायके में रहने वाली स्वीटी का चरित्र कितना पाक साफ होगा इस बात का अंदाजा विजय को लग चुका था।पति के भावना को  ठोकर मारने वाली एवं ससुराल पक्ष के लोगों को हीन समझने वाली स्वीटी के चाल चलन से आहत विजय सामाजिक उपहास के लोक लाज से अपनी व्यथा किसी मित्र या रिश्तेदारों  में भी शेयर नही कर सकता था।दाम्पत्य जीवन में ससुराल पक्ष के दबदबा एवं पत्नी की मनमानी से विचलित हो कर विजय ने एक बार नींद की तीस गोलियां खाकर इस नारकीय जीवन को अलविदा कहना चाहा किंतु विजय की फूटी किस्मत में अभी और जिल्लत शेष थी इसलिए वह बच गया।विजय के इस जानलेवा हरकत से उसके घरवाले विचलित हो गए किंतु पत्नी एवं सास ससुर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
        अंततः विजय ने प्रण किया कि अब स्वीटी को ना तो मायके जाने देगा और ना मायके के संपर्क में रहने देगा।उसने स्वीटी का मोबाइल जब्त कर लिया।अब तो समस्या सुलझने की बजाय और उलझने लगी।अब हर दस बारह दिन पर स्वीटी के मायके से कोई ना कोई भेंट करने पहुँच जाता और पुनः अपने साथ मायके ले जाने की बात दुहराता ।
यह बात विजय को बुरी लगती।वो अपने दाम्पत्य जीवन को बचाने एवं सामाजिक प्रतिष्ठा हनन से बचने के लिए   कई बार अपने सास ससुर को प्रत्यक्ष रूप से स्पष्ट कह चुका था कि वे लोग जब अपनी लड़की का घर बसा नहीं सकते तो कोई हक नहीं कि उसे उजाड़ने के लिए बेटी के दरवाजे पर आए स्वीटी मेरी बीवी है उसकी और उसके बच्चों की जिम्मेदारी मेरी है। किंतु स्वीटी की सहमति से उसके एक बेटे को अपने साथ जबरन रखने वाले  उसके माता-पिता को विजय के भावनाओं की कोई कद्र नहीं थी।वो हर माह आकर विदाई की बात करते जिस कारण विजय से तू तू मैं मैं भी हो जाती।फिर स्वीटी के माता-पिता ओझा बाबाओं के शरण में तंत्र मंत्र का सहारा लेकर विजय,विजय के भैया भाभी  को नुकसान पहुंचाने का तिकड़म लगाने लगे।इस बीच स्वीटी भी मन चढ़ी हो कर सास जेठानी और विजय से बेवजह मुंह लगा कर घर में कोहराम मचा देती। उसकी हरकत से आजिज़ विजय यदा कदा उसे गाली बक देता या एकाध थप्पड़ जड़ देता।जिसे वह गांठ बांध लेती।
     विजय एवं उसके परिवार वालों को विश्वास था कि यदि स्वीटी को उसके मायके से दूर रखा जाय तो संभवतः वह सुधर जाएगी।वे लोग उसे हर शादी ब्याह व रिश्तेदारों में घूमने ले जाते किंतु मायके नहीं जाने देते।दोहरे चरित्र की स्वीटी जब कभी रिश्तेदारी में घूमने जाती या घर पर कोई गेस्ट आता तो चेहरा इतना गंभीर और उदास बना लेती मानो ससुराल वाले उस पर अत्याचार कर रहे हो।उसका यह नेचर विजय को टीस की तरह चूभता।स्वीटी मुरझाए चेहरे से लोगों को बिना वजह फब्तियां कसने का मौका देने में कोई कसर नहीं छोड़ती।दाम्पत्य जीवन की उलझनों से आहत विजय नशा करने लगा  उसने केन्द्र सरकार की नौकरी  छोड़ राज्य सरकार की दूसरी नौकरी पकड़ ली।
    इस तरह साढ़े तीन साल हो गए स्वीटी को ससुराल में लेकिन उसे मायके नहीं जाने दिया गया।इस बीच कई बार स्वीटी के मायके से विदा लेने आए लेकिन विजय से कहा सुनी के बाद वे लोग बैरंग वापस लौट जाते।अब विजय के ससुराल वालों ने नया पैंतरा अपनाया।एक दिन उसके माता-पिता जबरन विदाई लेने पहुँच गए और स्वीटी भी उनके साथ जाने की ज़िद करने लगी।जब विजय ने स्वीटी को मायके नहीं जाने दिया तो उसकी माँ ने विजय के घर के आगे खूब हो हल्ला किया।चार लोग जमा हो गए।उनलोगों ने विजय पर आरोप लगाते हुए एक बार पुनः घड़ियाली आंसू बहा कर अपनी बेटी को विजय एवं उसके परिवार द्वारा प्रताड़ित करने की बात बताई।
     स्थिति एवं रिश्ते को बद से बदतर होते देख विजय के बड़े भाई सुमित ने विजय के ससुर को समझाते हुए कहा कि गर्मी की छुट्टी में स्वीटी एवं उसकी बेटी को पंद्रह दिनों के लिए विदा कर दिया जाएगा।चूँकि विजय को आपलोगों ने हीन समझते हुए बेइज्जत किया है इसलिए आपलोगों के व्यवहार से आहत उसने ससुराल नहीं जाने का प्रण किया है तो फिर स्वीटी को वापस आपको ही पहुँचाना होगा।
स्वीटी के पापा स्वयं ही पंद्रह दिनों में स्वीटी को वापस ससुराल पहुँचाने की बात पर स्वीटी को अपने साथ ले गए। विजय एवं उसके घर वालों को लगा शादी के शुरुआती पांच वर्षो में अधिकांश समय मायके में व्यतीत करने वाली बहू साढ़े तीन साल ससुराल में बसने के बाद सुधर गई होगी। किंतु कहते है न नेचर और सिग्नेचर कभी नही बदलता।
      मायके जाने के बाद स्वीटी ने एक बार भी विजय को फोन नहीं किया जबकि विजय पंद्रह दिनों में तीन बार खुद से फोन लगाकर बात की।पंद्रह दिन बीतने के बाद अपने आदत से मजबूर मनोहर बाबू ने स्वीटी को आखिरकार नही ही पहुँचाया।कई बार विजय के घरवालों के फोन करने के बाद एक बार फोन उठाकर एक नए बहाने के साथ पंद्रह दिन और स्वीटी को रखने की बात कही।तीस दिन बाद जब स्वीटी के पापा को फोन लगाया जाता है तो फोन रिसीव नहीं किया जाता।
     लगभग चालीस दिन बाद विजय अपनी बेटी को जन्मदिन की शुभाशीष देने के लिए फोन किया तो भी फोन की घंटी ही बजती रही।अपनी बेटी की जिंदगी को नरक बना रहे मनोहर बाबू एवं रेणू देवी को इस बात का मलाल नही कि वे उस व्यक्ति को तनाव देकर नशा का गुलाम बना रहे है जो कि उसके बेटी का जीवन साथी है और स्वीटी को ये अहसास नहीं है कि एक शादीशुदा औरत को मान सम्मान उसके पति के साथ ही मिलता है।उसे पता  भी नही चल रहा कि जिस माता पिता को वो अपना हितैषी मान रही है वे लोग ही उसके जीवन में कांटे बो रहे है और अपने बेटी के साथ साथ दामाद एवं नाती-नातिन के भविष्य के साथ भी खेल रहे है। जिस पति को दुत्कारते हुए वो नजरअंदाज कर रही है वही उसका जीवन साथी है।
वहीं दूसरी ओर सामाजिक प्रतिष्ठा,कानूनी पेंच के उलझन से बचने के लिए  विजय जैसे हजारों पति अपने पत्नी एवं उसके परिजनों  की मनमानी से त्रस्त शादी के पवित्र रिश्तों के बोझ तले दबते चला जाता है और मनोहर बाबू जैसे लोग अपने हस्तक्षेप से दो परिवार को तोड़ने की जुगत में लगे रहते है।
       एमपी में डाटा इंट्री ऑपरेटर पद पर कार्यरत नवीन (काल्पनिक नाम) की शादी कुछ वर्ष पूर्व बिहार के सुधा(काल्पनिक) से हुई।सुधा संविदा पर शिक्षिका थी।नौकरी के नाम पर सुधा अधिकांश समय मायके में ही व्यतीत करती।साल के कुछ दिन ही वो अपने पति के साथ रहती।दाम्पत्य जीवन में बढ़ रही दूरी एवं बीमार मां की सेवा नही हो पाने से आहत अपने माता-पिता का इकलौता बेटा  नवीन कुछ महीनों बाद अपनी माँ और पत्नी को अपने साथ कार्यस्थल एमपी  ले गया।जहाँ कुछ दिनों तक स्थिति सामान्य रही लेकिन थोड़े दिनों बाद सुधा ने सास के साथ रहने से इंकार कर दिया और बिहार अपने मायके जाने की ज़िद करने लगी।नवीन ने दाम्पत्य जीवन को बचाने के लिए माँ को ही घर पहुँचा दिया।
        बात यही नहीं रूकी।अब तो आए दिन सुधा बेवजह नवीन से कलह करने लगी और मायके जाने की जिद करने लगी।नवीन को यह बात हमेशा खलती कि सुधा का इतना ख्याल रखने के बावजूद उसका रूझान मायके की तरफ ही है।इसी बीच नवीन होली की छुट्टियों में सुधा संग अपने घर बिहार आया।यह बात जैसे ही सुधा के मायके वालों को पता चली वे लोग सुधा की विदाई के लिए नवीन के घर पहुँच गए।
       विदा ना करने के नाम पर तू तू मैं मैं से शुरू विवाद इतना बढ़ गया कि सुधा के भाई एवं पिता सुधा को अपने साथ ले गए।सुधा का मायके में रहने की जिद तथा उसके घरवालों के हस्तक्षेप से मामला स्थानीय पंचायत से कोर्ट तक पहुंच गया।नवीन के घर वालों पर घरेलू हिंसा एक्ट, दहेज उत्पीड़न आदि का मामला दर्ज किया गया।आज भी नवीन को कोर्ट को कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ रहा है।  
        बिहार का रहने वाला विवेक गुजरात में हीरा तराशने का काम करता है। उसकी शादी कटिहार के ईशा से हुई।विवाह केपश्चात विवेक पत्नी के साथ गुजरात चला गया।थोड़े ही दिन बाद ईशा विवेक पर दबाव देने लगी की वो अपनी नौकरी तथा अपने माँ बाप को छोड़ कर नेहा के मायके में उसकी विधवा माँ के साथ ही रहे। विवेक किसी भी कीमत पर माँ बाप और नौकरी छोड़ ससुराल में बस जाने के पक्ष में नहीं था।फलतः विवेक के पारिवारिक जीवन में रोज कलह क्लेश होने लगा।विवेक को अपने परिवार नही छोड़ने की सजा विगत पांच वर्षों से पत्नी द्वारा दायर मुकदमें के रूप में भुगतनी पड़ रही है।विगत कुछ वर्षों से विवेक व उसके परिवार को घरेलू हिंसा एवं दहेज प्रताड़ना आदि मामलों में कोर्ट में हाजिरी देनी पड़ रही है।
         पूरे देश में ऐसे हजारों उदाहरण है जिसमें लड़की के माता-पिता या मायके वालों के हस्तक्षेप ने वर-वधू के दाम्पत्य जीवन को तबाह तो कर ही दिया साथ ही दो  पारिवारिक रिश्तेदारों  को एक दूसरे का शत्रु भी बना दिया।
    कुछ दिनों पूर्व बिहार के एक बड़े अधिकारी ने दाम्पत्य क्लेश के कारण दिल्ली में सुसाइड कर लिया था। कुकुरमुत्ते की तरह पनप रही ये सामाजिक विसंगति चिंतन का विषय बन गई है जिस पर वर वधू दोनों पक्ष को विचार करना होगा।
     यह सत्य है कि शादी के बाद लड़की का अपना घर उसका ससुराल होता है जहाँ के प्रत्येक सदस्यों के प्रति उसकी प्रेम, घनिष्टता व समर्पण वैसी ही होनी चाहिए जैसी कि उसके अपने माता-पिता भाई बहनों से होती है।
     परिवार बनाने व बचाने के लिए लड़की को  सास ससुर आदि को नजरअंदाज कर पति को अपने नियंत्रण में रखने की चाहत,पति को अपने परिवार से अलग कर अपने साथ रखने की योजना,मायके वालों की बात को प्रमुखता देते हुए ससुराल वालों की उपेक्षा आदि भावनाओं एवं विचारों का त्याग करना होगा।
इसमें लड़की के माता-पिता या मायके वालों का ये दायित्व अहम हो जाता है कि वो पुत्री के दाम्पत्य जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं में हस्तक्षेप करना बंद कर दे।लड़की को विदाई के वक्त उसे उसके कानूनी अधिकार की बजाय उसके पारिवारिक दायित्व व जिम्मेदारी का नैतिक अधिकार व सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा दे जैसा कि माता सीता के विदाई के वक्त उनकी माता पिता ने दिया था।
      ऐसा करने से एक ओर जहाँ दोनों पक्षों के नए रिश्तों में प्रगाढ़ता तो आएगी ही साथ ही कोर्ट कचहरी में जज साहब पर वैवाहिक विवादों से संबंधित मुकदमों का भार भी घटेगा।
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पता:-विनोद कुमार विक्की
  

Sach ki Dastak

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