राममंदिर – करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़े मामले को लटकाए रखना उचित नहीं-

0

अयोध्या विवाद पर चल रही मध्यस्थता प्रक्रिया के विफल रहने पर सर्वोच्च न्यायालय 25 जुलाई से दोबारा मामले की सुनवाई शुरू कर देगा। मामले की जल्द सुनवाई की मांग करने वाली एक अर्जी पर न्यायालय ने यह आदेश दिया है। न्यायालय ने मध्यस्थता कमिटी के अध्यक्ष जस्टिस कालीपुल्ला को अब तक हुई तरक्की पर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। उनकी रिपोर्ट देखने के बाद न्यायालय सुनवाई के बारे में फैसला लेगा।

मामले के पक्षकार रहे स्व• गोपाल सिंह विशारद के बेटे की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि उनके पिता ने करीब 70 साल पहले मुकदमा दायर किया था। उनकी मृत्यु के बाद अब वो मुकदमा लड़ रहे हैं। खुद उनकी उम्र करीब 80 साल हो चुकी है।

ऐसे में करोड़ों लोगों की भावनाओं से जुड़े इस मामले को लटकाए रखना उचित नहीं है। उनकी तरफ से वरिष्ठ वकील के• परासरन ने दलील दी कि मध्यस्थता कमिटी के काम में कोई खास तरक्की नहीं हो रही है। इस प्रक्रिया से कोई हल निकलने की उम्मीद नहीं है। कमिटी की रिपोर्ट के लिए 15 अगस्त तक का इंतज़ार सिर्फ समय की बर्बादी साबित होगा। कोर्ट मध्यस्थता बंद कर दोबारा सुनवाई शुरू कर दे।

रंजीत कुमार का बयान-

हिंदू पक्ष की तरफ से वकील रंजीत कुमार ने कहा है कि 1950 से ये मामला चल रहा है लेकिन अभी तक सुलझ नहीं पाया है. मध्यस्थता कारगर नहीं रही है इसलिए अदालत को तुरंत फैसला सुना देना चाहिए. पक्षकार ने कहा कि जब ये मामला शुरू हुआ था तब वह जवान थे, लेकिन अब उम्र 80 के पार हो गई है. लेकिन मामले का हल नहीं निकल रहा है। 

आलोक कुमार का बयान – 

वीएचपी के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि हम कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट हैं, प्रसन्न हैं और आशान्वित हैं कि राम मंदिर बनाने की बाधाएं दूर होकर भव्य मंदिर बनाने का काम जल्द शुरू हो सकेगा।

राम विलास वेदांती बयान-

राम मंदिर के पैरोकार राम विलास वेदांती ने राम मंदिर को लकेर बयान दिया है. उनका कहना है कि मंदिर निर्माण के लिए काफी दिनों से प्रयास हो रहा. उन्होंने कहा, 1528 में बाबर ने मंदिर तुड़वाकर एक गुंबद तैयार करवाया. लेकिन उसी स्थान पर कई मूर्तियां मिली हैं जिससे सिद्ध हुआ वहां राम मंदिर है. राम विलास वेदांती ने कहा, हमने सुननी बोर्ड से पूछा था कि क्या प्रमाण है कि वहां मस्जिद बना हुआ था जबकि निर्मोही अखाड़ा का कब्जा वहां पर 200 से साल है. अदालत ने वाल्मीकि रामायण का प्रमाण मानने की बात कही थी, जहां रामलला विराजमान है वहां मंदिर के नीचे अष्टदल शिव मंदिर बना है इसका प्रमाण खुद नासा ने दिया है। 

उन्होंने कहा, जहां पर विवाद चल रहा है वहां सब मंदिर के चिन्ह मिलें है मस्जिद के नहीं. जहां पर रामलला विराजमान है वहीं मंदिर की भूमि है.  जजों ने तीन भागों में पूरे मामले को विभाजित किया था,  राजा दशरथ और राम के नाम पर खसरा खतौनी है। 

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x