120 साल पुरानी वीरता की दास्तां है ‘केसरी’ : बैटल ऑफ सारागढ़ी – पढ़ें रिपोर्ट

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सारागढ़ी की द‍िल दहला देने वाली जंग एक बार फ‍िर चर्चा में है। अक्षय कुमार और अजय देवगन जहां इस पर फ‍िल्‍म बना रहे हैं, वहीं इस पर आधार‍ित सीर‍ियल भी शुरू होने वाला है।

बैटल ऑफ सारागढ़ी

‘Battle of Saragarhi’

  • सैन्य इतिहास की सर्वश्रेष्ठ लड़ाई थी सारागढ़ी की जंग।
  • 12 सितंबर 1897 को लड़ी गई थी ऐतिहासिक सारागढ़ी की लड़ाई।
  • 36 सिख (सिख रेजीमेंट की चौथी बटालियन) के 21 सैनिक और 10 हजार अफगान कबाइलियों के बीच हुई लड़ाई।
  • सभी भारतीय सैनिकों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान मिला।
  • पाकिस्तान के नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस (NWFP) में फोर्ट गुलिस्तान और फोर्ट लॉकहार्ट के बीच पड़ने वाली पोस्ट का नाम था सारागढ़ी।
  • युद्ध में करीब 600 अफगान कबाइलियों की मौत।
  • 12 सितंबर को ‘रेजीमेंटल बैटल ऑनर्स डे’ के रूप में मनाती है सिख रेजीमेंट।
  • सारागढ़ी को ‘Battle of Saragarhi’ के नाम से भी जाना जाता है।

12 सितंबर के ही दिन भारतीय सेना ने एक ऐसी वीरता की दास्तां लिखी थी जो हजारों सालों तक याद रखी जाएगी। साल 1897 में 12 सितंबर के दिन सारागढ़ी की लड़ाई लड़ी गई थी, जिसे बैटल ऑफ सारागढ़ी कहते हैं। 

आजादी के बाद सारागढ़ी पाकिस्तान का हिस्सा हो गया, ये पाकिस्तान के फोर्ट गुलिस्तान और फोर्ट लॉकहार्ट के बीच में आने वाली पोस्ट थी। अब चाहे सारागढ़ी कहीं पर भी उस समय तो ये भारत का ही हिस्सा था। सुबह से शाम तक चली इस लड़ाई में 21 जवान भी शहीद हो गए। 

इस युद्ध के दो दिन बाद ब्रिटिश आर्मी ने आक्रमण करके पुनः इस पोस्ट पर कब्जा कर लिया। भारतीय सैनिकों को मरणोपरांत ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से बहादुरी का सर्वोच्च पुरस्कार Indian Order of Merit प्रदान किया गया। यह पुरस्कार आज के परमवीर चक्र के बराबर होता है।

 कर दिया था ढ़ेर –

महज 21 सिख जवानों ने करीब 10 हजार अफगानी लड़ाकों से मुकाबला किया और 600 को ढेर भी कर दिया। 12 सितंबर का सिख रेजीमेंट आज भी जश्न मनाती है, क्योंकि ये दिन सिख रेजीमेंट के लिए एक गौरवशाली दिन था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1897 में जब ये खबर आई थी तो ब्रिटिश संसद की कार्यवाही बीच में रोक कर जवानों को श्रद्धांजलि दी गई थी।

 सारागढ़ी का पूरा इतिहास –

दरअसल, सारागढ़ी से लॉकहॉर्ट और गुलिस्तान के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता था। इसके लिए हेलियोग्रॉफ संचार तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था। इस तकनीक में आईने से सूरज की रोशनी को संचार के लिए इस्तेमाल होता है। इलाके की सुरक्षा और इस पर पकड़ बनाए रखने के लिए सारागढ़ी पोस्ट बहुत महत्त्वपूर्ण था। जब अफगान कबाइलियों ने सिख सैनिकों पर हमला किया तो हवलदार ईशर सिंह ने सैनिकों से अंतिम समय तक डटे रहने को कहा। ईशर सिंह ने अपनी सूझबूझ से हमलावरों की पहली पंक्ति को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया।इससे बौखलाए हमलावरों ने दो तरफ ने सारागढ़ी चौकी पर हमला कर दिया। लेकिन सिख सैनिकों का हौसला सातवें आसमान पर था। वो किसी कीमत पर चौकी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। लड़ाई जैसे-जैसे आगे बढ़ी 10 सिख सैनिक ही बचें, हालांकि हवलदार ईशर सिंह अभी भी अपने सैनिकों को लीड कर रहे थे। इस दौरान फोर्ट लॉकहार्ट हेडक्वार्टर से गोला-बारूद मांगा गया। लेफ्टिनेंट कर्नल हॉगटन ने गोला-बारूद भेजने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस दौरान कबाइलियों ने फिर से हमला कर दिया और 10 सिख सैनिक उनसे मुकाबला करते रहे।कबाइलियों ने चौकी के आसपास के इलाकों के झाड़ियों में आग लगा दी थी, ताकि सिख सैनिकों को उनकी मूवमेंट का पता नहीं चल सके। दोनों तरफ से गोलियां चलती रही, हवलदार ईशर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन उन्होंने पीछे हटने की नहीं सोची, इस दौरान ईशर सिंह ने अपने राइफल में लगे चाकू को निकाल लिया। इसके बाद दो सैनिकों को साथ लेकर कबाइलियों पर टूट पड़े। ईशर सिंह और उनके दो सैनिकों के इस हमले से अफगान कबाइलियों के होश उड़ गए। हमलावरों को समझ नहीं आ रहा था कि ईशर सिंह समेत तीन सिख सैनिकों से कैसे निपटा जाए। उधर ईशर सिंह का हर वार सैन्य इतिहास में दर्ज होता जा रहा था।दूसरी तरफ जिंदा बचे पांच सैनिकों ने सारागढ़ी के अंदर मोर्चा संभाल लिया। पांचों ने मिलकर कबाइलियों के ऊपर जबरदस्त हमले किए। दोपहर 3.30 बजे सिपाही गुरूमुख सिंह ने मैसेज भेजा ‘Main Gate Brached, Down to one, Request Permission To Dismount and Join The Fight.’ इसका जबाव आया ‘Permission Granted’. इसके बाद सिग्नल टावर पर तैनात सिपाही गुरूमुख सिंह ने हथियार उठाया और नीचे आ गया, वो कबाइलियों पर टूट पड़ा। गोलियां चलती रही और वो हमलावरों को जबाव देता रहा। कुछ देर बार ही वो कबाइलियों की भीड़ में गुम हो गया। 19 साल के गुरूमुख सिंह ने 20 हमलावरों को मार गिराया, लेकिन अपनी जान नहीं बचा सका।गुरूमुख सिंह आखिरी सिख सैनिक था, जिसने सारागढ़ी के इस ऐतिहासिक युद्ध में अपनी जान गंवाई। सारागढ़ी को तबाह करने के बाद अफगानों ने गुलिस्तां किले पर हमला किया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। 13-14 सितंबर की रात को ब्रिटिश अधिकारियों ने अतिरिक्त सैनिक वहां भेज दिए, जिसके बाद किले पर दोबारा कब्जा कर लिया गया। अफगानों ने माना कि सारागढ़ी की लड़ाई में उनके 180 सैनिक मारे गए थे, लेकिन जब वहां पर बचाव दल पहुंचा तो उन्होंने 600 शव मिले। 12 सितंबर की वो तारीख दुनिया के सैन्य इतिहास में दर्ज है, वो इतिहास जिसमें सिख सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था।

रिलीज होने वाली है फिल्म –

सारागढ़ी की द‍िल दहला देने वाली जंग एक बार फ‍िर चर्चा में है। अक्षय कुमार, अजय देवगन और रणदीप हुड्डा जैसे कलाकार जहां इस पर फ‍िल्‍म बना रहे हैं, वहीं इस पर आधार‍ित सीर‍ियल भी ड‍िस्‍कवरी जीत चैनल पर शुरू होने वाला है।अक्षय कुमार की फ‍िल्‍म ‘केसरी’, रणदीप हुड्डा की फ‍िल्‍म बैटल ऑफ सारागढ़ी और मोह‍ित रैना के सीर‍ियल 21 सरफरोश: सारागढ़ी 1897 इसी जंग की वीर गाथा प्रस्‍तुत करेंगे। 

 

Sach ki Dastak

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