बेरोजगार व किसान कैसे पाये नौकरी व रोजगार

0

बेरोजगार व किसान कैसे पाये नौकरी व रोजगार

भारतवर्ष के इस देश के सभी गांवों के सभी विद्वान मूलवासी सभी भारतीय मानव व इस राष्ट्र के सभी नगरों के सभी विवेकवान मूलनिवासी सभी राष्ट्रीय नागरिक अर्थात सभी भारतीयक नागरिक यह भलीभांति जानते है कि बिना सर्वोच्च न्यायिक कानूनी दस्तावेजी सबूत के किसी भी भारतीय नागरिक का अपना कोई भी वजन एवं बजूद नहीं।

समस्त भारतीय नागरिक यह भी भलीभांति जानते है कि उनकी सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय न्यायपालिका पूर्व से ही सत्यापित व स्वाधीन एवं प्रतिभाशाली व वैभवशाली तथा प्रमाणित व अनुशासित एवं मर्यादाशाली व स्मृद्धिशाली, भारतीय स्वयंसहायक सघपरिवारी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघपरिवारी, अत्यंत विश्वासी व अत्यंत सुखदायी अत्याधुनिक विश्वविजयी सैन्यशक्तिशाली सर्वोच्च न्यायिक कानूनी अखण्ड भारतवर्ष की स्वाचालित गौरवशाली विश्वगुरू नेक व एक, भारतीय उत्तराधिकारित सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय न्याय व्यवस्था है, जिसका कोई विकल्प नहीं, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि संचालित है, जिसे अपने नियमानुसार अपनी पूजा व अर्चना करवाने का, अपना प्रचार व प्रसार करवाने का, चुनाव लड़ने का, मतिदान मांगने का शौख नहीं, क्योंकि यह उस सर्वोच्चदाता की सुव्यवस्था है, जिसका वर्तमान में ई.वी.एम. में मौजूद चुनावचिन्ह “नोटा“ है।

समस्त भारतीय नागरिकों को पूर्व से ही अपनी सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय न्याय व्यवस्था में अपनी आत्मिक श्रृद्धा एवं विश्वास है। इसलिए समस्त भारतीय नागरिकों अपनी बुद्धि व स्वःविवेक से अपने सर्वोच्च न्यायिक जनजीवन व जीविकाहित में, स्वयं ही, स्वेच्छा से, बिना किसी दबाव व लालच के, निड़र होकर, बहुत बड़े पैमाने पर अपनी सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय न्यायपालिका के चुनाव चिन्ह “नोटा“ का प्रचार व प्रसार करना चाहिए तथा अपना मतिदान चुनाव चिन्ह “नोटा“ को करना चाहिए अथवा अपने सभी प्रकार के मतिदानों का एक साथ बहिष्कार कर देना चाहिए और भारी मतों से अपनी न्यायपालिका को विजयी बनाना चाहिए और उसकी शरण में जाना चाहिए।

अपनी सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय राष्ट्रीय न्यायपालिका से अपने “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का अत्यंत महत्तवपूर्ण, अनिवार्य, परमावश्वयक, सर्वोच्च न्यायिक कानूनी दस्तावेजी सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ पाने की मांगकर इसे अनिवार्य रूप से समस्त भारतीय नागरिकों को प्राप्त करना चाहिए जो उन्हें विगत ईसा. लगभग 5000 वर्ष पूर्व से अबतक प्राप्त नहीं है।

इस सबूत के प्रयोग के द्वारा अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, नि:शुल्क न्याय, सुरक्षा, स्वास्थ, शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी, रोजगार, समस्त अत्याधुनिक बुनियादी सहायताएं व सेवाएं अनिवार्य रूप से प्राप्त करनी चाहिए।

अपने अकाल विवाह, जन्म, मृत्यु व सभी प्रकार के विभाजन एवं विनाश से बचने के लिए, काल गणना सही करने वास्ते, उस ईश्वर द्वारा जारी व प्रदत्त उसके कार्य को व अपने सृजनशील मानव जीवन के मूल उद्देश्य को, उस ईश्वर द्वारा निर्धारित समय से अन्दर पूरा करने के लिए, अपनी बिगड़ी हुई तकदीर, तष्वीर व ताशीर को पुनः सम्पूर्ण रूप से सुधरी हुई पाने के लिए, विदेशी भगोड़े, भिखारी व लुटेरे शासकों द्वारा भारतीय कैलेण्डर में मंगलवार से पूर्व दर्ज किया गया सोमवार उन्मूलित कर एवं सूर्यवार के बाद उन्मूलित किया गया चंद्रवार पुनः दर्ज करना चाहिए।

अतः, समस्त विद्वान एवं विवेकवान भारतीय नागरिकों को अपना मतिदान भारतवर्ष के उन विदेशी भगोड़े, भिखारी व लुटेरे शासकों को व उनके समर्थक प्रत्याशियों को नहीं करना चाहिए जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय न्यायपालिका के द्वारा जारी व प्रदत्त “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूते,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ प्राप्त नहीं है और जो “भारतीय नागरिक“ नहीं हैं। अपना मतिदान करने से पूर्व प्रत्याशियों की नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र अवश्य देखना चाहिए कि क्या वे भारतीय नागरिक हैं?

अपनी व अपने इस देश की इससे सर्वोच्च प्रतिभाशाली भारतीय स्वयंसहायता, अपनी व अपने इस राष्ट्र की इससे सर्वोच्च मर्यादाशाली राष्ट्रीय स्वयंसेवा एवं अपने व अपने इस भारतवर्ष का इससे सर्वोच्च गौरवशाली व्यवस्था परिवर्तन, खुशी व सर्वोच्च अकाट्य विश्वगुरू मंत्र कोई अन्य नहीं।

स्वयं को “हम भारत के लोग“ कहने से व इसका सबूत “आधार“ दिखाने से कोई “भारतीय नागरिक“ नहीं हो जाता। “भारतीय नागरिक“ के पास भारतीय नागरिक होने की पहिचान का सर्वोच्च न्यायिक कानूनी दस्तावेजी सबूत “भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ होना जरूरी है। समस्त भारतीय नागरिकों को इसी सबूत की जरूरत है इसके बिना किसी भी भारतीय नागरिक का अपना कोई भी वजन एवं बजूद नहीं।

सोचिये- भारतीय न्यायपालिका के द्वारा जारी व राष्ट्रीय न्यायपालिका से प्रदत्त “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ यदि भारतवर्ष के द्वापरकाल के शासक कौरवों व उनके समर्थकों को प्राप्त होता तो वे महाभारत युद्ध में मारे न जाते।

सोचिये- भारतीय न्यायपालिका के द्वारा जारी व राष्ट्रीय न्यायपालिका से प्रदत्त “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ यदि भारतवर्ष के आर्य, डच, पुर्तगाली, यूनानी, मुस्लिम, ब्रिटिश के अंग्रेंज शासकों व इनके समर्थकों को प्राप्त होता तो वे भारतवर्ष छोड़कर भाग न जाते।

सोचिये- क्या भारतीय न्यायपालिका के द्वारा जारी व राष्ट्रीय न्यायपालिक से प्रदत्त “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ भारतवर्ष के वर्तमान शासकों को व उनके समर्थकों को व उनके प्रत्याशियों को प्राप्त है? क्या भारतवर्ष के वर्तमान समस्त शासक व उनके समर्थक व उनके प्रत्याशी “भारतीय नागरिक“ हैं? यदि नहीं तो फिर समस्त भारतीय नागरिक अपना मतदान इन्हें क्यों कर रहें है?

सोचिये- यदि भारतीय नागरिकों ने अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, निःशूल्क न्याय, सुरक्षा, स्वस्थ, शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी, रोजगार, अत्याधुनिक समस्त बुनियादी सहायताएं व सेवाएं पाने के लिए तथा अपने उस ईश्वर द्वारा जारी व प्रदत्त उसके कार्य को व अपने सृजनशील मानव जीवन के मूल उद्देश्य को ईश्वर द्वारा निर्धारित किये गये समय के अन्दर पूरा करने के लिए, भारतीय नागरिक होने की पहिचान का अत्यंत महत्वपूर्ण अनिवार्य, परमावश्वयक, सर्वोच्च न्यायिक कानूनी दस्तावेजी सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ अपनी सर्वोच्च ईश्वरीय स्वदेशी भारतीय न्यायपालिक के द्वारा जारी व राष्ट्रीय न्यायपालिका से पाने के लिए अपनी मांग की होती और इस वास्ते अपना मतदान अपनी वर्तमान भारतीय न्यायपालिका के ई.वी.एम. में मौजूद चुनाव चिन्ह “नोटा“ को किया होता अथवा अपने सभी प्रकार के मतिदानों का एक साथ बहिष्कार किया होता तो भारतीय न्यायपालिका के द्वारा जारी व राष्ट्रीय न्यायपालिका से समस्त भारतीय नागरिकों को भारतीय नागरिक होने की पहिचान का सर्वोच्च न्यायिक दस्तावेजी सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ अनिवार्य रूप से प्राप्त होता। जिससे द्वारा समस्त युवाओं को अपनी योग्यतानुसार तत्काल नौकरी व समस्त किसानों को अपना तत्काल रोजगार प्राप्त होता। तब भारतवर्ष में शासक व उनका शासन व उनके विभाजनकारी एवं विनाशकारी तथा अधीनता एवं बेरोजगारी के कानून व अन्याय नजर न आता।

समस्त भारतीय नागरिक यह भलीभांति जानते है कि सम्मान के साथ जीने का अधिकार कोई स्वेच्छा से देता नहीं है, इसे अपने कर्तव्य के द्वारा स्वयं ही हासिल करना होता है।

कोई भी मां स्वेच्छा से अपने शिशु को दूध नहीं पिलाती है। अपने कर्तव्य के द्वारा सम्मान के साथ अपने जीने के अधिकार को हासिल करने के लिए, अपने पेट की भूख मिटाने के लिए व अपने मां का दूध पीने के लिए शिशु को स्वयं ही बहुत बड़े पैमाने पर रोना, चिल्लाना व हाथ पैर चलाकर ऊधम मचाना होता है, तब शिशु को अपनी मां का दूध पीने को हासिल होता है।

इसी प्रकार भारतवर्ष का कोई भी राष्ट्रीय विवेकवान सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश स्वेच्छा से अपने समस्त भारतीय नागरिकों को अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, नि:शुल्क न्याय, सुरक्षा, स्वास्थय, शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी, रोजगार, समस्त अत्याधुनिक बुनियादी सहायताएं व सेवाएं अनिवार्य रूप से हासिल करने के लिए, उन्हें “भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ देता नहीं है। अपने कर्तव्य के द्वारा सम्मान के साथ अपने जीने के अधिकार को हासिल करने के लिए समस्त भारतीय नागरिकों को स्वयं ही बहुत बड़ें पैमाने पर अपने सभी प्रकार के मतदानों का एकसाथ बहिष्कार करना होता है। तब भारतवर्ष के भारतीय विद्वान अधिवक्ता सर्वोच्च मुख्यसहायक न्यायाधीश पेशकार साहब द्वारा जारी,“भारतीय नागरिक“ होने की पहिचान का सबूत,“भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र“ भारतवर्ष के राष्ट्रीय विवेकवान सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश से, समस्त भारतीय नागरिकों की मांग पर उन्हें अनिवार्य रूप से प्राप्त होता है और तब इस सबूत के प्रयोग के द्वारा ही उन्हें अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, निःशुल्क न्याय, सुरक्षा, स्वास्थ, शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी, रोजगार समस्त अत्याधुनिक बुनियादी सहायताएं व सेवाएं अनिवार्य रूप से हासिल होते हैं। अतः समस्त भारतीय नागरिकों को अपने भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र का महत्व भांलिभांती समझना चाहिए।

अपने कर्तव्य के द्वारा सम्मान से साथ जीने का अधिकार पाने की जानकारी, जब प्रत्येक भारतीय अव्यस्क शिशु को प्राप्त है तो फिर प्रत्येक व्यस्क बेरोजगार भारतीय नागरिक को क्यों नहीं ? क्योंकि विधायिका को अपनी मति, दान करने से ये मतिहीन हो चुके है और इनकी मति मारी गई है। जन्में अपनी मां से हैं और जन्मजात ही सबसे पहली बार दूध पशुओं का पीकर ये देखने में मनुष्य और गुणों में पशु हो चुके है। चूंकि सिर के बल उल्टें जन्में हैं इसलिए इन्हें अपने हित की सीधी बात भी आसानी से समझ में नहीं आती है। ये विदेशी ब्रिटिश विधायिका के समर्थक हैं, ये अपनी स्वदेशी भारतीय न्यायपालिका के समर्थक नहीं। ये देखने में भारतीय हैं और गुणों में ब्रिटिश के अंग्रेज हैं। ये “हम भारत के लोग“ हैं, ये “हम भारतीय नागरिक“ नहीं। क्योंकि इन्हें भारतीय नागरिक होने की पहिचान का सबूत भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र प्राप्त नहीं। इन्हें भला कौन कहेगा कि ये “भारतीय नागरिक“ हैं? इन्हें भला कौन नौकरी व रोजगार देना पसंद करेगा।

अतः समस्त बेरोजगार भारतीय नागरिक यदि अपनी तत्काल नौकरी व रोजगार चाहते हैं तो इन्हें ई.वी.एम. में अपनी न्यायपालिका का चुनाव चिन्ह नोटा दबाकर अथवा अपने सभी प्रकार के मतिदानों का एक साथ बहिष्कार कर अपनी स्वदेशी भारतीय न्यायपालिका को विजयी बनाना चाहिए तथा अपना भारतीय नागरिक होने की पहिचान का सबूत भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र पाकर इसके प्रयोग के द्वारा अपने तत्काल नौकरी व रोजगार अनिवार्य रूप से हासिल करना चाहिए।

बिडम्बना यह है कि- स्वयं देते है मतदान विदेशी शासकों को और उनसे चाहत नौकरी व रोजगार की ? स्वयं बोते है बीज पेड़ बबूलों के और उनसे चाहत मीठे आम की ?

राकेश प्रकाश सक्सेना ( वरिष्ठ अधिवक्ता )

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x