पैठ कर गई है भीति दिलों में
सबका एक ही रोना है
त्राहि माम ईश इस विषाणु से
जिसका नाम कोरोना है।
कुछ हुए हैं नर से नर-पिशाच
न जाने क्या कर जाते हैं
चौपायों को तो खाते ही हैं
व्याल दविज खा जाते हैं
परिणाम उसी का सम्मुख है
मिलकर अब सबको ढोना है
त्राहि माम ईश ……….. ।
इसने कहर है अपना ऐसा ढाया
आज अखिल जग त्रस्त है
कितनी रेखा बन्द है व्यापारों की
विश्व की अर्थव्यवस्था पस्त है
न खोज सका विज्ञान समाधान
बन्द हो रहा कोना कोना है
त्राहि माम ईश ………… ।
स्वयं को शीत खाद्य-पेय से
अब तो बिल्कुल दूर एखो
बिरयानी,पिज़्ज़ा,बर्गर,चाऊ से
मन के अम्बक को सूर रखो
गर गौर किया न इन बातों पर
फिर पंचतत्व में खोना है
त्राहि माम ईश ……….. ।
पैठ कर गई है भीति दिलों में
सबका एक ही रोना है
त्राहि माम ईश इस विषाणु से
जिसका नाम कोरोना है।।
✍️नीरज कुमार द्विवेदी
गन्नीपुर-श्रृंगीनारी, बस्ती (उ०प्र०)