जलवायु परिवर्तन से बढ़ेगी भीषण गर्मी और उमस, घटेगी लोगों की कार्यक्षमता

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नयी दिल्ली।

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अगले दस साल में भारत सहित तमाम उष्णकटिबंधीय देशों में गर्मी और उमस का प्रकोप इस हद तक बढ़ेगा कि इससे लोगों की कार्यक्षमता घटने के साथ ही इसके गंभीर आर्थिक प्रभाव भी देखने को मिलेंगे। अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान ‘मेकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट’ की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक जलवायु परिवर्तन का विभिन्न देशों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर असर साफ तौर पर दिखने लगेगा।

रिपोर्ट के अनुसार गर्मी और उमस बढ़ने के कारण काम के घंटों में तेजी से गिरावट आयेगी और इससे अगले दस साल में श्रम उत्पादकता 15 प्रतिशत तक घट सकती है, जो कि जीडीपी में गिरावट के रूप में दिखेगी। 

इसके भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बारे में जीडीपी में 2.5 से 4.5 प्रतिशत तक संभावित गिरावट की रिपोर्ट में आशंका जतायी गयी है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के दूरगामी प्रभावों के बारे में कहा गया है कि 2050 तक भीषण गर्मी का प्रकोप खुले में होने वाले काम (आउटडोर वर्क) पर लगातार बढ़ता जायेगा।

रिपोर्ट में 2030 तक भीषण गर्मी के संभावित खतरों से होने वाले नुकसान का आंकलन करते हुये बताया गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में एयर कंडीशनिंग पर 110 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। साथ ही रिपोर्ट में भारत के लिये बाहरी कामकाज के विकल्पों को खोजते हुये तकनीक एवं प्रौद्योगिकी के स्तर पर अतिरिक्त उपाय करने की जरूरत पर बल दिया गया है। 

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के दायरे में आने वाली आबादी के बारे में इस रिपोर्ट ने आगाह किया है कि गर्मी के प्रकोप के दायरे में 2030 तक 25 से 36 करोड़ लोग आ जायेगें। इतना ही नहीं, हर साल दुनिया की नौ प्रतिशत आबादी के भीषण गर्मी के दायरे में आने की संभावित दर को देखते हुये 2050 तक 70 करोड़ से 1.2 अरब लोग भयंकर लू की चपेट में होंगे। इससे रोजगार, आय और अन्य संबद्ध क्षेत्रों पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका से रिपोर्ट में इंकार नहीं किया गया है।

इसमें चेतावनी भी दी गयी है कि जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के दायरे में आने वाले क्षेत्रों में समाज और सामाजिक व्यवस्था भी खतरे की जद में हैं। खतरे की सीमा पार होने पर संभावित परिणाम परिलक्षित होने लगेंगे।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों की जद में शामिल 105 दशों के प्राकृतिक एवं मानव संसाधन को प्रत्यक्ष जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। इन देशों में भीषण गर्मी और उमस के कारण साल 2050 तक श्रमिकों के काम के घंटों में 15 से 20 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है।

 उल्लेखनीय है कि भारत में पिछले साल जुलाई में अब तक की सर्वाधिक गर्मी के बाद अब रिकार्ड तोड़ सर्दी का सामना करना पड़ रहा है।भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जुलाई 2019 को देश के इतिहास में सबसे गर्म महीने के रूप में दर्ज किया गया था और इस दौरान भारत की 65.12 प्रतिशत आबादी ने 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान का सामना किया। भारत में गर्मी का लगातार बढ़ता स्तर बताता है कि 2016 में 59.32 प्रतिशत और 2017 में 61.4 प्रतिशत आबादी भीषण लू की चपेट में आयी थी।

Sach ki Dastak

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