निरुपमा मेहरोत्रा को मिला ‘लोपामुद्रा सम्मान-2018’ –

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              मनसा पब्लिकेशन्स हर वर्ष की भांति इस वर्ष ‘लोपामुद्रा सम्मान-18’ निरुपमा मेहरोत्रा को उनके विशिष्ट कथा लेखन के लिये दिया जा रहा है। लम्बे अरसे से बैंक में काम कर रहीं निरुपमा मेहरोत्रा, सकुशल अपने दायित्व का निर्वाह करके ससम्मान सेवानिवृत्त हुईं।

         उसके बाद साहित्य की ओर मुखातिब हुईं। अभी पहली पुस्तक प्रकाशन में आयी है। सहज, संवेदनशील कथाकार के रूप में साहित्य संसार में दर्ज हुई। इनकी भाषा बेहद सरल और पात्र अपने आस-पास के हैं।

        मुख्य अतिथि योगेश प्रवीन ने निरुपमा मेहरोत्रा को बधाई दी तथा मनसा पब्लिकेशन्स की निदेशक डाॅ• मनसा पाण्डेय को साधुवाद दिया। साहित्य समाज का दर्पण होता है। यह संस्थान अनेक साहित्यकारों को प्रकाशन कर साहित्याकाश को जगमग कर रहा है।

       निर्मला सिंह ने निरुपमा मेहरोत्रा को बधाई दी और डाॅ• मनसा के साहस की सराहना किया। प्रकाशन के क्षेत्र में एक स्त्री इतना काम कर रही है हम लखनऊ की लेखिका के लिये यह गौरव का विषय है।

       योगेश प्रवीन ने कहा कि हमें ज्यादातर इस सम्मान के आयोजन में साक्षी होने का सौभाग्य मिला है। हम मनसा पब्लिकेशन्स का आतिथ्य स्वीकार करते हुये खुश होते हैं।

       डाॅ• मनसा पाण्डेय ‘निदेशक’ ‘मनसा पब्लिकेशन्स’ ने सभी आये अतिथियों को बुके देकर सम्मानित किया तथा निरुपमा मेहरोत्रा को ‘प्रतीक चिन्ह’, ‘शपथ-पत्र’, ‘शाल’ तथा ‘पांच हजार’ का चेक देकर ‘लोपामुद्रा सम्मान’ से सम्मानित किया।

       इसी क्रम में सुधा आदेश की पुस्तक का लोकार्पण हुआ। सुधा आदेश की 15 रचनायें साहित्य में दर्ज हो गई हैं। सुधा आदेश का लेखन समाज की विसंगतियों पर प्रहार करती हैं। समाज के बदलते स्वरूप को रखने का सलीका बेहद मानवीय है। भाषा बेहद प्रांजल एवं भावप्रद है।

       सुधा आदेश ने अपनी बात में कहा कि मैं कुछ भी असहज होती है तो अपने को रोक नहीं पाती हूँ। फिर मेरी कलम चल पड़ती है।

        मैंने तो जीवन को पढ़ने और कथा लिखने में बिताया। मैंने इसी पब्लिकेशन्स से अपनी 15 पुस्तकों का प्रकाशन कराया। प्रकाशन में सहज-सरल व्यवहार सबको आकर्षित करता है। पूरा स्टाफ बहुत ही सुलझा हुआ और सहयोगी है।

         डाॅ. मनसा पाण्डेय ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि लखनऊ की संस्कृति का विराट स्वरूप है। यहां हर कोई करने वाले के साथ है। हमारे लेखकगण, विचारक हमेशा ही हमें हमारी राह आसान करते हैं।

        बड़ों का आशीष हमेशा मुझे मिलता रहा है। और यही आशीष हमें खड़ा होने का साहस देता है। हम आप सबके बेहद आभारी हैं।

        संचालक राजर्षि त्रिपाठी ने कुशल संचालन किया, उपस्थित लेखकगण, वरिष्ठजनों ने भरपूर आशीष दिया। यह कार्यक्रम बेहद सफल रहा।

Sach ki Dastak

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