महाराष्ट्र कुर्सी कांड से विपक्ष के पांव मजबूत या अधर में

0

इंह खेला कुर्सी का है बाबू। इहां कछु हो सकत है।
वैसे महाराष्ट्र का यह कुर्सी कांड इतना लोकप्रिय हुआ है जिसे राजनीत के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता। यहां जो रातों-रात सत्ता-पलट हुआ है, वह अब सत्ता-उलट हो चुका है। पहले अजित पवार का इस्तीफा हुआ। फिर देवेंद्र फड़नवीस का भी इस्तीफा हो गया। क्यों नहीं होता ? अजित पवार के उपमुख्यमंत्रिपद पर ही फड़नवीस का मुख्यमंत्री पद टिका हुआ था।

पूर्व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे की वजह से अब विधान-सभा में शक्ति-परीक्षण की जरूरत नहीं होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने शक्ति-परीक्षण का आदेश जारी करके अपनी निष्पक्षता जरूर सिद्ध कर दी है लेकिन क्या किसी लोकतंत्र के लिए यह शर्म की बात नहीं है कि 188 विधायकों को वस्तु समझ कर होटलों में छिपा दिया गया जहां खरीद फरोख्त का खेला बम्पर रहा पर साहिब! बाहर कोई बात नहीं आती। अरे! आ गयी तो जनता हिसाब ना मांग लेगी। दुनिया ने यह भी देखा कि हर तरह की राजनीति से बड़ा है देश का सुप्रीम कोर्ट जो इन नेताओं के लिए संडे के दिन भी खुल सकता है। फिर भी जनता यह बात गहराई से नहीं समझती। हाँ जिस दिन समझी उस दिन होगी बड़ी क्रांति। 

बता दें कि महाराष्ट्र की विधानसभा में यदि शक्ति परीक्षण होता तो भाजपा की रेशमी इज्ज़त में टाट का पैबंद लग सकता था। इसीलिए जल्द इस्तीफा देकर फड़नवीस ने अपनी रेशमी इज्ज… बचा ली पर भाजपा को इस घटना ने जबर्दस्त धक्का लगा है उसे लग रहा कि कल तक शिवसेना कांग्रेस की घोरविरोधी थी आज सत्ता के लालच में दगा दे गयी और धरे रह गये सारे मूल्य, सारी विचारधारा। हाँ यह सच है कि शिव सेना की घोर हिन्दू वाली छवि इस सत्ता के सियासी तूफान से धूमिल जरूर हुई है। देश जान गया कि निजि स्वार्थ में वह धुर विरोधी कांग्रेस से भी मिल सकते हैं तो सबसे बड़ा है राजनीति में स्वार्थ जिसने उद्धव ठाकरे को भी लपेट लिया जबकि बीजेपी का मेंडेट ज्यादा था फिर भी चतुराई से संडे को सुप्रीम कोर्ट जाकर अपना दमखम दिखा डाला वहीं भाजपा की गुपचुप शपथ उसे बहुत भारी पड़ गयी जिसे देश के युवाओं तक ने सही तरीका करार नही दिया। कुल मिलाकर महाराष्ट्र के इस कुर्सी कांड में छवि शिवसेना और बीजेपी दोनों की ही खराब हुई है। 

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के मुंबई में साथ आने का एक संदेश यह भी लगता है कि दिल्ली की भाजपा सरकार के खिलाफ़ भारत की सभी पार्टियां एक होने में अब जरा भी नहीं चूकेंगी। अब मोदी के लिए यह बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि युवा वैसे भी बेरोजगारी के नाम पर नेताओं से पीठ कर चुका है और रहा बचा दूर देश पलायन कर चुका है जो इस छद्म राजनीति के चलते वापस आना नहीं चाहता। वहीं फड़नवीस और अजित पवार को जो आनन-फानन शपथ दिलाई गई थी, उससे प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि महामहिम राष्ट्रपति , महाराष्ट्र के राज्यपाल और भाजपा अध्यक्ष की छवि भी विकृत हुए बिना नहीं रह सकी। यदि फड़नवीस की सरकार बन जाती तब भी उसपर सवालिया निशान लग चुका था ।

यदि सत्ता-पलट का यह क्षणिक खेला ना हुआ होता तो संजय राउत, शिवसेना यानि पूरे विपक्ष को यह मौका नहीं मिलता कि गुपचुप कांड कर दिया। यह गुपचुप शपथ ही भाजपा का कलंक बन गयी और विपक्ष के ‘अप्राकृतिक’ बेमेल गठबंधन की सरकार बन गयी । अब देखना तो यह होगा कि विपक्ष का यह गठबंधन पहले से ज्यादा मजबूत होगा या पहले से ज्यादा बेहाल, हालांकि इस गठबंधन वाली पार्टियों शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी के आतंरिक अन्तर्विरोध इतने गहरे हैं कि यह पांच साल तक सुचारू रूप से चल जाये,ये तो आने वाला समय ही जाने या जाने महाराष्ट्र की जनता जो  चुनाव में कायदे से सबकुछ तय कर देगी और सत्ता की मलाई चुराकर खाने वालों का भी पर्दाफाश यही जनता ही कर देगी। 

– ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x