प्रतीक हजेला ने अकेले तैयार किया NRC प्रक्रिया का आधारभूत ढ़ांचा – 

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असम एनआरसी के संयोजक प्रतीक हजेला के पास थी 3.3 करोड़ लोगों के 6.6 करोड़ कागजात की छानबीन की जिम्मेदारी…

जिस नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) की इस समय पूरे देश में चर्चा है, उसका केन्द्र रहे हैं भोपाल में जन्में प्रतीक हजेला। उनके पिता एसपी हजेला मध्य प्रदेश सरकार में अफसर रहते हुए सेवानिवृत्त हुए। चार भाइयों में प्रतीक सबसे छोटे हैं। बड़े भाई अनूप प्रतिष्ठित चिकित्सक हैं।

प्रतीक हाजेला कौन हैं?

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजन (NRC) 1951 को अपडेट करने जैसे मुश्किल काम को पूरा करने का श्रेय राज्य के प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) प्रतीक हालेजा को दिया जा रहा है। प्रतीक इस बेहद मुश्किल काम के लिए स्टेट कॉर्डिनेटर की भूमिका में हैं और इसका पहला ड्राफ्ट 31 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में केवल 1.9 करोड़ को भारत का वैध नागरिक माना गया था। 30 जुलाई 2018 को जारी दूसरे और आखिरी ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में 2.90 करोड़ को वैध नागरिक पाया गया. इसका मतलब हुआ कि इस फाइनल ड्राफ्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं है हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जिन 40 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं हैं, उनके खिलाफ प्राधिकार कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं कर सकते हैं क्योंकि अभी यह महज एक मसौदा भर है।

हजेला के चाचा पीडी हजेला इलाहाबाद विश्वविद्यालय और सागर विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। प्रतीक ने आइआइटी दिल्ली से बीटेक (इलेक्ट्रॉनिक्स) किया। बाद में वह आइएएस बने। टेक्नोलॉजी के प्रति गहरा अनुराग रहा और यही वजह है कि उनसे आज भी कोई जानकारी मांगे जाने पर वह अपने एपल उपकरणों में तथ्यों को टटोलने लगते हैं।

प्रतीक हजेला को फिल्में देखने का भी शौक है, लेकिन जबसे उन्होंने एनआरसी का काम संभाला है वह एक भी फिल्म देखने नहीं जा सके हैं।

हजेला संगीत के भी शौकीन हैं। उन्हें जगजीत सिंह और मेहंदी हसन की गजलें पसंद हैं। वह सटीक और स्पष्ट बात करना पसंद करते हैं। एक बातचीत में उन्होंने बताया था कि वह आलोचनाओं और आरोपों का बोझ घर नहीं ले जाते। तकनीक में महारत रखने वाले हजेला पूजा-अर्चना में विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि इससे सकारात्मक शक्ति मिलती है।

एनआरसी असम के संयोजक के तौर पर प्रतीक हजेला के पास 3.3 करोड़ लोगों के 6.6 करोड़ कागजात की छानबीन की जिम्मेदारी थी। ये कागजात असम के नागरिकों ने इसलिए लगाए थे ताकि वे साबित कर सकें कि वे 24 मार्च, 1971 के पहले से भारत में रह रहे हैं।

एनआरसी प्रक्रिया से हजेला के जुड़ने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। असम-मेघालय कैडर के 1995 बैच के आइएएस हजेला जुलाई 1996 में पहली बार असिस्टेंट कमिश्नर के तौर पर असम के सिलचर में आए थे।

सिलचर असम के बंगाली बहुल काछार जिले का मुख्यालय था। सितंबर 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हजेला को कमिश्नर बनाया और फिर वह असम के गृह और राजनीतिक विभाग के सचिव भी बनाए गए। उन्होंने तब एनआरसी को अपडेट किए जाने की प्रक्रिया में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के तहत राज्य संयोजक की भूमिका भी बतौर नोडल अधिकारी स्वीकारी।

अकेले ही तैयार किया एनआरसी प्रक्रिया का आधारभूत ढ़ांचा – 

अपनी नियुक्ति के छह महीने बाद हजेला ने अकेले ही एनआरसी प्रक्रिया का आधारभूत ढांचा खड़ा कर दिया था और अगस्त 2014 तक 10-12 लोगों की कोर टीम भी बना ली थी। हजेला को इसका पूरा श्रेय गया कि उन्होंने अकेले ही एनआरसी अपडेशन का टेक्निकल कॉन्सेप्ट बनाया। इसमें किसी भी व्यक्ति के पुरखों के बारे में मैपिंग डिजिटल डेटासेट्स से की जा सकती थी और यह डेटासेट्स दशकों पुराने दस्तावेजों के आधार पर तैयार किए गए थे। इसके बाद व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर वेरीफिकेशन कराने का तरीका क्या होगा इसे भी तय किया गया।

NRC IN ASSAM

हजेला और उनकी बेटी का ही नाम गायब मिला

सभी के पीछे दिमाग हजेला का ही था। हजेला ने भी एनआरसी के लिए आवेदन किया था और जब 31 दिसंबर, 2017 को पहला ड्राफ्ट जारी हुआ तो उसमें उनका और उनकी बेटी का नाम नहीं था। राज्य में लाखों लोगों की तरह यह पिता-पुत्री भी मई 2018 में गुवाहाटी में सुनवाई के लिए पहुंचे थे। उसके बाद उनका नाम अंतिम ड्राफ्ट में शामिल हुआ था।

30 जुलाई, 2018 को हजेला ने रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआइ) शैलेष के साथ गुवाहाटी के एनआरसी ऑफिस में एक प्रेस कांफ्रेंस में फाइनल ड्राफ्ट जारी किया जिसमें 40 लाख लोग बाहर थे।

भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में शनिवार सुबह 10 बजे नेशनल सिटिज़न रजिस्टर यानी एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी हो चुकी है। 

इस लिस्ट में 19,06,657 का नाम शामिल नहीं हैं. आख़िरी लिस्ट में कुल 3,11,21,004 लोगों को शामिल किया गया है। 

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें और आरजीआइ को फटकार लगाते हुए प्रेस से किसी भी तरह की बातचीत करने से रोक दिया था और ऐसा करने पर जेल भेज दिए जाने की बात कही थी।

एनआरसी की लिस्ट में नाम नहीं आने वाले लोगों को जरा भी घबराने की ज़रूरत नहीं-

 

सोनोवाल ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट में कहा कि “एनआरसी की लिस्ट में नाम नहीं आने वाले लोगों को जरा भी घबराने की ज़रूरत नहीं क्योंकि गृहमंत्रालय ने पहले ही सुनिश्चित कर दिया है जिनका नाम इस लिस्ट में नहीं होगा उनको फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल में जाकर अपील करने का अधिकार होगा।इस मामले में सरकार की तरफ से उनकी हरसंभव मदद की जाएगी। “

उन्होंने कहा, “फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल में अपील करने का समय अब बढ़ाकर 60 की बजाए 120 दिन कर दिया गया है, ऐसे में सभी लोग शांति और क़ानून व्यवस्था बनाए रखें।”

मामला घुसपैठ से है……

 आंकड़े – 

  • 30 लाख 10 अप्रैल, 1992 को असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने यह आंकड़ा बताया। दो दिन बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।
  • 01 करोड़ 6 मई, 1997 को तत्कालीन गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने देश में रह रहे कुल अवैध अप्रवासियों की अनुमानित संख्या संसद में बताई।
  • 50 लाख 2004 में गृह मंत्रालय ने असम के लिए यह आंकड़ा बताया।
  • 41 लाख 2009 में असम पब्लिक वक्र्स एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में यह आंकड़ा बताया था। चुनाव आयोग ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी।

असम  में ही क्यों? 

  • 1951 पूर्वी पाकिस्तान से भारत में अवैध प्रवेश करने वाले लोगों और भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिए पहली बार नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन तैयार किया गया।
  • 1961 36% 1951 से 1961 तक असम की जनसंख्या में इजाफा इस दौरान देश की आबादी 22 फीसद ही बढ़ी। असम में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के लिए पूर्वी पाकिस्तान से अवैध घुसपैठ को दोषी माना गया।
  • 1971 35% 1961 से 1971 तक असम की जनसंख्या में इजाफा (देश की आबादी में इजाफा 25 फीसद हुआ)
  • 1978 50% 1971 से 1978 तक असम में मतदाताओं की संख्या में हुआ इजाफा 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के सात साल बाद असम में मतदाताओं की संख्या 50 फीसद तक बढ़ी। असम के मंगलदोई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में ही पचास हजार अधिक मतदाता पाए गए।
  • 1985 1979 में असम में अवैध तरीके से आने वाले लोगों के खिलाफ शुरू हुआ हिंसक प्रदर्शन 1985 में असम समझौते के बाद बंद हुआ। इसका एक मुख्य बिंदू यह था कि 1951 का एनआरसी संशोधित किया जाए और इसमें वर्ष 1971 को मानक वर्ष माना गया।
  • 2015 सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में दायर एक जनहित याचिका के बाद इस प्रक्रिया की निगरानी शुरू की। इसके बाद 2015 में एनआरसी पर काम किया जाना शुरू हुआ।
  • 2018 एनआरसी मसौदा के एक हिस्से का प्रकाशन 31 दिसंबर, 2017 की आधी रात को किया गया था और पूरा मसौदा 30 जुलाई, 2018 को प्रकाशित किया गया। रजिस्टर में शामिल करने के लिए 3,29,91,384 आवेदकों में से कुल 2,89,83,677 लोग पात्र पाए गए।
  • 2019 26 जून, 2019 को, एनआरसी प्राधिकरण ने नई निष्कासन सूची के साथ अतिरिक्त मसौदा प्रकाशित किया। इस सूची में 1,02,462 लोगों को शामिल किया गया।

बीते कुछ महीनों में राज्य की मौजूदा सरकार और भाजपा की राज्य इकाई ने हजेला का हरसंभव विरोध किया है। 24 जुलाई को भाजपा राज्य इकाई ने कहा था कि वह ‘कुछ ताकतों’ के निर्देश पर काम कर रहे हैं ताकि गड़बड़ी वाली एनआरसी सूची जारी की जा सके जिसमें अवैधानिक रूप से रहने वाले लोगों के नाम भी हों। आरोपों से इतर यह मानना होगा कि हजेला ने जिस तरह का काम किया है वह बहुत ही कठिन और चुनौतीपूर्ण था।

Sach ki Dastak

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