लॉक डाउन और आने वाला कल … … !

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वाराणसी से संदीप मुखर्जी

मात्र कुछेक महीने पहले ही चीन के वुहान शहर से प्रकट होकर ये जो कोरोना नामक अदृश्य विषधर अपना तिलिस्म विश्व पर फैलाना शुरू किया तो थमने का जैसे नाम ही नहीं ले रहा ! देखते ही देखते पूरा विश्व आज इस महामारी से संक्रमित हो चूका है। कोरोना का कहर दुनिआ भर के देशों पर इस कदर पड़ा है कि आज की तारीख में कुल 28,50,549 लोग इस महामारी से पीड़ित हो चुके हैं जिनमे से 1,98,109 लोगों की दुखद मृत्यु हो चुकी है।

कलयुग के अंत को लेकर कई भविष्यवाणियां हुईं और कई बार माया कलेण्डर की माया भी चर्चाओं में रही। परन्तु मौजूदा समय में क्या कल युग के अंत होने की बात करना प्रासंगिक नहीं होगा ? क्यों नहीं होगा ? ये, जो समाज की बंदिशें, जाती, सम्प्रदाय और वर्ण भाषा की छोटी बड़ी दीवारें, अपनों से अपनों की छल कपट और रिश्तों की कालाबाजारी की कुशल कलाएं हमने ईजाद की थीं अपने आप को ‘सृष्टि-श्रेष्ठ’ की उपाधि से महिमामंडित करने के लिए, आज एक अदृश्य कोरोना ने सारे शुर वीरों की औकात आंक ही दी !

वैसे तो यह एक वैश्विक आपदा है, पूरा जगत इससे त्राहिमाम कर रहा है लेकिन क्या ये हमारे लिए आज एक एसिड टेस्ट भी नहीं है ? संसार की बड़ी से बड़ी ताकत – मसलन, अमरीका, इंग्लैंड, इटली, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, जापान, रूस, चीन, भारत आज बड़ी बड़ी मिसाइलों और सुपर कम्प्यूटरों के दम्भ लिए इस कालजयी विपदा के आगे क्या किंकर्तव्यबिमूढ़ खड़े नहीं हैं !

मनुष्य को मनुष्य पर विस्वास नहीं हो रहा ! रिश्ते सब केमिकल हो गए हैं, अनुभूतियाँ सब काफूर-कस्तूरी हो गयीं हैं ! बेटा वृद्ध बाप को छोड़कर अस्पताल से भाग रहा है तो लॉक डाउन के बावजूद १५०० किलोमीटर की पैदल यात्रा करके अपनी मां से मिलने आया युवक को बंद दरवाजे का सामना करना पड़ता है जब मां खुद ही पुलिस को बुला लेती है ! टूटकर प्यार करने वाला पति, पिता आज अपनी पत्नी और बेटा-बेटी से दूर हो गया है। है तो सिर्फ आसमान भर का भय ! अस्पताल में सेवा दे रही नर्स मां का तो हाल ही क्या पूछना ! उसे तो जैसे सात जन्मों के पाप का बोझ एक ही बार में झेलने को मिल गया हो। रोती बिलखती दूर खड़ी बिटिया को बाँहों में भरकर सुकून देने वाली माँ के हाथ आज किस कदर बेबस है। उनका कोमल ह्रदय आज किस कदर मर मर के जीने की जद्दोजहद कर रहा है ! उसे आज वो कुदरती हक़ नहीं की वो अपनी बेटी, अपने बच्चों को अंक में लेकर पुचकारे और उनके कपोल चूमकर उन्हें अहसास दिलाये की वे अपनी मां की गोद में सुरक्षित है ! अरे वो मां ही आज इस अदृश्य पिसाच की साया से आतंकित है !

यदि चीन से गिनती शुरू की जाये तो आज तक़रीबन चार महीने हो गए कोरोना वायरस के आतंक को दुनिया में अपनी पाश फैलाते हुए। इस बीच सभी देश एक ही फार्मूला अपना रहा है कमोबेश तबदीली के साथ और वो है लॉक डाउन ! मतलब सब कुछ बंद करके घर बैठ जाओ । देश की सरकार यदि समर्थ है तो गरीब मजबुर लोगों के लिए पालनहार का काम कर रही है पर कब तक ? आखिर अमेरिका, इटली, स्पेन आदि विकसित देश ने अपनी पुरजोर कोशिश कर ली और अपने सारे वर्ल्ड क्लास संसाधन झोंक दिए फिर भी आज एक ही दिन में अमेरिका में 646 लोगों की, स्पेन में ४१० लोगों की , ब्रिटेन में ५९६ लोगों की तो बेल्जियम में २३० लोगों की मौतें हो गयीं – मात्र एक ही दिन में इतनी सारी मौतें जैसे किसी कसाई की दुकान में कितने मुर्गे कटे, की गिनती हो रही हो ! अत्याधुनिक ज्ञान भंडार के धनि वैज्ञानिक और उनके प्रतिस्पर्धी व्हाट्सअप स्कॉलर्स तो दिन रात लगे पड़े है कि कोई तो कारगर दवा निकले इस बीमारी की जिससे बच जाय ये बसुंधरा। हाँ, तो इन सभी का मानना है कि किसी भी देश में ये जो कोरोना बला है, ये ३ महीने से ज्यादा नहीं रहा है । यानि की हमारे देश से भी अब शायद ये जाने वाला है । अच्छा ही ही, जितनी जल्दी चला जय उतनी ही जल्दी हम घरों से आजाद हो पाएंगे ! कितना विरोधाभास है, नहीं ? हैं तो हम सब अपने अपने घरो में ही और अपनों के साथ ही, लेकिन फिर भी हैं कैद। नित नए तरीके से सोचते हैं और अपने अपने भगवन से मनाते हैं कि हम जल्द से जल्द आज़ाद हो जाएँ !

यहीं से शुरू होती है कोरोना से आगे की दुनिया का सैर ! क्या हमें लगता है की हम फिर से पहले की तरह वाकई आज़ाद और निर्भीक होकर घूम फिर पाएंगे ? क्या हम फिर कभी भी दिल से दिल लगाकर गले मिल पाएंगे ? क्या हमारे बच्चे उतने ही सावलील तरीके से सबके साथ खेल के मैदान में कंधे से कन्धा मिलाकर फुटबॉल और वॉलीबॉल और कब्बड्डी खेल पाएंगे ? क्या फिर से हम अपने प्रेमी का हाथ पकड़कर पार्क की खुली हवा में टहल पाएंगे ? क्या हमारे घर फिर से मेहमान मिलने आएंगे ? और क्या आएंगे भी तो हम उनका उतनी ही गर्मजोशी से स्वागत करेंगे ? क्या फिर कभी हम अपने मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरद्वारे जाकर शिद्दत से इबादत कर पाएंगे ? क्या सर्दी जुकाम खांसी से पीड़ित घर के किसी भी सदस्य को हम धिक्कारना कभी भी बंद कर पाएंगे ? क्या स्विग्गी और जोमाटो से हम उतने ही खुले मन से निस्संकोच खाना माँगा कर खा और बच्चों को खिला पाएंगे ? क्या कभी हम अपने घरों में सनीटाइजिंग लिक्विड रखना बंद करेंगे ? क्या शॉपिंग मॉल में हम फिर से घूमने जायेंगे या सिनेमा भी देखेंगे ? क्या अत्यधिक पैसों की खुजली मिटाने के लिए हम फिर विदेश यात्रा पर सपरिवार निकलेंगे ? क्या नेतायें फिर से धरने पर बैठेंगे ?

आज की तारीख में दुनिया का जो सबसे बुद्धिमान डॉक्टर होगा वो भी इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर में “हाँ जी हाँ” नहीं बोल पाएगा। जब ख्यालों में हमेशा मौत की विभीषिका तैरती हो तब कोई भविष्य के बारे में क्या बताये ! कितना मजबूर हो गया है मनुष्य आज ! कितने सपने कितने अरमान कितनी योजनाएं और कितनी वभविश्य निधि की प्लानिंग। सब कुछ जैसे आज बेमानी हो गया है।

इस सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश में आज बेरोजगार जनता का प्रतिशत है 5.4% जो की किसी विकसशील देस के लिए अवश्य ही चिंता की बात है । असंगठित क्षेत्र के कर्मचारिओं की यदि बात करें तो वो हैं ४९.२% जो की देश की अर्थ व्यवस्था को एक बहुत बड़े धड़ से सपोर्ट देता है। देश के कुल बच्चों में से ९५% बच्चे स्कूल जाते हैं – एक हाल फ़िलहाल के वर्ल्ड बैंक सर्वे से मालूम होता है। ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि इतने बड़े असंगठित क्षेत्र को कब तक लॉक डाउन में रोक सकते हैं ? जिस देश में सत्ताधारी प्रत्येक सरकार या तो अपने आपको बैकुण्ड़ मोहन समझती है या शक्तिमान, या तो मूर्तियां बनाती है, या सपने दिखती है, उस देश में कब तक लॉक डाउन की स्थिति बरक़रार रह सकती है ? लाखों करोड़ों ऐसे लोग हैं हमारे देश में जिन्हे पता नहीं होता कि उन्हें आज क्या काम मिलेगा और उनकी कितनी आमदनी होगी ? ऐसे में सरकारों के पास कौन सा कुबेर का खजाना है जो कभी खली नहीं होगा इन्हे खाना मुहैय्या कराते कराते ?!

कोरोना से यदि कुछ सकारात्मक परिवर्तन आया है हमारे समाज में तो शायद वो यही की हम संबंधों को बहुत पास से समझ पाए, जिंदगी की अंधी दौड़ में हम पागल हुए जा रहे थे, बाप को बेटे से और बेटे को बाप से मिलने की फुर्सत नहीं थी, मम्मी को पूछने वाला कोई नहीं दादा दादी तो जैसे घर में पड़े हुए पुराने आसबाब थे ! ये सब लोग जैसे पुनः प्राण सिंचित होकर प्रगाढ़ रिश्ते में बध गए – घरो में कैद रहते हुए। क्या उनके अंदर नए सिरे से जन्मे इस प्यार को, इस भरोसे को वो अब भुला पाएंगे ? परिवार में जैसे जीवन लौट आया है। जो केवल कुछ कमरों का समूह हुआ करता था कभी, वो अब घर कहलाने लगा है।

प्रकृति अपने आप को आज पुनः परिस्कृत कर रहा है, मानव मूल्यों का जो बेइंतहां पतन हो चला था वो रुक गया है, अश्लीलता और आधुनिकता की बयार में संबंधों की सुंदरता जिस कदर धर्षित हो रही थी उसमें एकदम से रुकावट लग गया है, उन्मत्त युवाओं पर तथाकथित इक्कीसवीं सदी के अल्हड़ आडम्बर का जो पारा चढ़ा हुआ था वो रुक गया, बेवजह गले मिलना और होठ से होंठ – गाल से गाल बजाकर जाम की प्याली हाथों में लेकर अपने आप को सफलता की पराकाष्ठा पर देख बेवजह खुश होता आज का मानव संभल गया है और संभ्रांत दूरी बनाकर अदब से नमस्कार कर एक दूसरे के प्रति हृदय से बेझिझक श्रद्धा सम्मान व्यक्त कर रहा है – वाह रे कोरोना वाह !
एक क्रांति और आयी है। जिन्हें आज तक स्कूलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, आज वो ही स्कूल्ज चला रहे हैं। हांजी हाँ, मोबाइल फ़ोन्स, टेबलेट्स लैपटॉप्स पर पापा का ऑफिस और बच्चों के स्कूल्ज बदस्तूर चल रहे हैं। आने वाले लम्बे समय तक स्कूलों को कोरोना वायरस के प्रभाव से बचाने के लिए इन्हें बंद ही रखेगी देश की सरकारें। ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन ही एकमात्र रास्ता रह जाता है। यह अपने आप में एक क्रांति है। आज गांव देहात में रहने वाला प्राइमरी स्कूल का बच्चा हो या शहर के किसी कान्वेंट स्कूल का बच्चा, हर कोई अपनी पढाई ऑनलाइन ही कर रहा है। क्या अब इस दूरस्थ शिक्षण विधा का अब कभी भी बहिस्कार कर पायेगा हमारा समाज ? क्या इस नाचीज़ मोबाइल फ़ोन को बच्चे का दुश्मन समझेंगे अभिभावक अब ? नहीं ! यह देश की शिक्षा प्रणाली के एक युग की शुरुवात है जिसमे अभी अनेकानेक प्रयोग होने हैं और निकट भविष्य में यह अपने आप में एक मल्टी मिलियन डॉलर इंडस्ट्री बनकर उभरेगा, यह तय है।

संक्रमण के डर भय के कारन एक और क्रांति जो धीरे धीरे विश्व पटल पर छा रही है, वो है कल तक विज्ञानं फंतासी कहा जाने वाला रोबोटिक्स और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का बढ़ता हुआ प्रभाव और धीरे धीरे मानव जाती पर अपना कायम करता वर्चस्व। कोरोना वायरस इंसान से इंसान में फैलता है, अतः ज्यादातर समृद्ध बड़े उद्योग और प्रतिष्ठान इसी प्रयास में रहेंगे कि जो रूटीन और अकुशल प्रकार के कार्य हों, उन्हें करने के लिए वो रोबोट्स तैनात कर दें जो सामन्य आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की मदद से फ्लोर क्लीनिंग, हाजिरी लगाना, गेटों की सुरक्षा करना, प्लांट्स में इंजीनियर को टूल्स उपलब्ध कराना, असेम्बलिंग का काम करना वगैरह वगैरह सैकड़ों प्रकार के काम बड़ी आसानी से कर ले जाएंगे। इस प्रकार अब शायद हमारे अस पास स्वाभाविक तौर पर मनुष्यों की तरह चलते फिरते नाना प्रकार के रोबोट्स दिख जाया करेंगे !

आने वाले कल में देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापर भी बड़े पैमाने पर होता नहीं दिख रहा है । एक तो चीन के प्रति विश्व के बाकि देशो की हेट थ्योरी ऊपर से जब तक कोई कारगर दवा या टीका नहीं बन जाता तब तक इस वायरस से संक्रमण का भय किसी भी देश को अपनी सीमा से बाहर जाकर व्यापार करने की हिम्मत नहीं देगा । इसका एक बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ेगा भारत जैसे विकासशील देशो पर । सरकार की अन्र्राष्ट्रीय व्यापर नीतियां जब बहिर्मुखी न होकर अंतर्मुखी होंगी, तब देश के भीतर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, देशी उत्पादन की वजह से वस्तुओं के मूल्य आसमान न छुएंगे और सबसे बड़ी बात — देश आत्मनिर्भर होगा । तकनिकी शोध होंगे और अंततः हमें अपनी जरूरतों के लिए बाहरी देशों के साथ मिलियन डॉलर्स की संधिया न करनी पड़ेगी ।
कोरोना वैश्विक महामारी से आगे की दुनिया इस समय भले ही तिलिस्म प्रतीत हो रही हो परन्तु उस दुनिया में तीन बातें मुख्य तौर पर जरूर सबको प्रभावित करेंगी – मनुष्य का मनुष्य के साथ जो सहजता है, वो जटिल हो जाएगी , तकनिकी उपकरणों, रोबोट्स और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का बोलबाला बढ़ जाएगा और कोई भी देश अपने यहाँ की स्वास्थ्य सुविधाओं को सर्वोपरि वरीयता देकर उन्हें और भी संपन्न एवं समृद्ध बनाएगा ।
ये समय है धैर्य, आत्म मंथन और अंतर्यात्रा का। हमें देश की वर्त्तमान परिस्थिति में निहायत जिम्मेदारी पूर्वक अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए और एक सच्चे निष्ठावान नागरिक की तरह अपने आस पास के लोगों को, देशवासियों को, जरूरतमंदों को और गैर जिम्मेदारों को भी, कोरोना के भयावह परिणामों के बारे में और इससे बचने के उपायों के संबंध में जारी किए गए सरकारी दिशानिर्देशों के प्रति जागरूक करना चाहिए ताकि फिर से हम सब मिलकर कह सकें –

शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा |
शत्रुबुद्धि-विनाशाय दीपज्योती नमोऽस्तुते |I

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Sach ki Dastak

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