6 राज्यों में हिन्दू आबादी में आ रही गिरावट

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सच की दस्तक नेशनल न्यूज डेस्क

विश्व में हिन्दू आबादी भारतवर्ष में सर्वाधिक मानी जाती है।।उसके बावजूद भारत के 6 राज्य ऐसे है जहां वह अल्पसंख्यक हैं। और अपने अस्तित्व की लड़ाई  हिन्दू लड़ रहे है। क्या सरकारों को यह नही सोचना चाहिए कि जिन राज्यों में हिन्दू आबादी कम है वहां उसे अल्पसंख्यक की सुविधा दी जानी चाहिए।सबसे बड़ी बात यह है की वर्तमान में यहां पर भाजपा की सरकार है अब इन राज्य सरकार को गंभीरता से सोचना होगा हिंदुओ को यहां पर कैसे सुख सुविधा कैसे दी जाए और कैसे वे मजबूत हो सके।

भारत की कुल आबादी में भले 80% हिंदू हैं लेकिन 9 राज्य ऐसे भी हैं यहाँ हिंदू की आबादी मात्र 3 से 38% के बीच है ।इन 9 में से 6 राज्यों जम्मू-कश्मीर ,लक्ष्यदीप ,मिजोरम, मेघालय ,मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में 2001 से 2011 के बीच कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 6% कम हुई है।

जबकि मुस्लिम व ईसाइयों की हिस्सेदारी बढ़ी है ।मगर यहां हिंदुओं को अल्पसंख्यक नहीं माना जाता और न ही उससे जुड़ी हुई सुविधाओं का कोई लाभ दिया जाता है। कम हिंदू आबादी वाले राज्यों में सिर्फ पंजाब लद्दाख और नागालैंड में ही 2001 के मुकाबले 2011 में हिंदू आबादी की हिस्सेदारी बढ़ी है। लद्दाख में बढ़ोतरी सर्वाधिक 9% और पंजाब नागालैंड में एक-एक प्रतिशत है।

अल्पसंख्यक दर्ज होने से अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन कर सकती हैं ।घर, रोजगार पुनर्वास कर्ज ,बच्चों व गर्भवती महिलाओं से जुड़ी योजनाओं का लाभ ले सकते हैं।

चिंता का विषय 

आज हिंदुओं को 10 राज्यों में अल्पसंख्यक घोषित किया जाएगा. कल बाकी बचे राज्यों के जिलों के उन शहरों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाएगा, जहां हिंदू कम होंगे. इसके बाद उन जिलों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाएगा, जिन जिलों में हिंदू आबादी कम होती जाएगी. इसके बाद बाकी बचे राज्यों में भी हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित किया जाएगा और फिर पूरे देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे….

सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में कहा था कि  धर्म की सीमा नहीं होती है। इससे देश के स्तर पर देखें न कि राज्य के।

दैनिक भास्कर के आकड़े के अनुसार

दर्जा न मिलने पर क्या घाटा-

2007 2008 में अल्पसंख्यकों के लिए 20 हजार छात्रवृत्ति यहां निकली  थी कश्मीर के हिस्से 753 आए इनमें से 717 मुस्लिम को मिली जबकि वे वहां बहुसंख्यक थे।

विस्तार से–

हिंदू समाज अपने ही देश में अल्पसंख्यक घोषित होने जा रहा है लेकिन आश्चर्य देखिए कि इस खबर पर लोग खुश हैं, खुशी नहीं होना चाहिए यही पतन की शुरूआत है। बेरोजगारी/दहेज़ /सरकारी नौकरी का लालच और शादी न होना, बच्चे न होना यही चरम कारण है।

देश जब आज़ाद हुआ तब से लेकर आज तक अल्पसंख्यकों के लिए कई सरकारी योजनाओं का शुभारंभ किया गया। भारत में कई धर्म और संप्रदाय एक साथ रहते हैं। अल्पसंख्यक शब्द की जब भी बात होती है तो लोग मुस्लिम, सिख, ईसाई, इत्यादि की बात करते हैं पर क्या आप जानते हैं की हिन्दू बहुल भारत में भी देश के कई राज्यों में  पिछले कई दशकों से हिन्दुओं की हालत दयनीय रही है। हिन्दू की आबादी जिस राज्य में कम है या कहें अल्पसंख्यक है फिर भी उसे कोई सरकारी योजनाओं का लाभ आज तक नहीं प्राप्त हुआ हैं न तो शिक्षा में और ना ही उन्हें कोई आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है।

केंद्र का क्या है बयान?

देश के कुछ राज्यों में कम आबादी में रह रहा हिन्दू समाज आज भी खुद को उपेक्षित महसूस करता है फिर भी हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। अब इसी क्रम में केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्य सरकारें भी उनकी अल्पसंख्यक आबादी की पहचान कर उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि अगर किसी राज्य में कोई समुदाय धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक है तो उसे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है।

बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि देश के 10 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं परंतु हिंदुओं के बजाय स्थानीय बहुसंख्यक समुदायों को अल्पसंख्यक हितैषी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। केंद्र के हलफनामे में कहा गया है, “वे उक्त राज्य में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकते हैं और राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने पर संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विचार किया जा सकता है।”

केंद ने कहा , राज्य अपने क्षेत्र के भीतर एक धार्मिक या भाषाई समूह को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में भी घोषित कर सकते हैं, जैसा कि महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों के मामले में किया था, और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी, और गुजराती भाषाएं अल्पसंख्यक भाषाओं के रूप में।

2011 की जनगणना क्या कहती है?

आपको बतादें कि केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा 2020 में दायर एक याचिका पर आई, जिसमें कहा गया था कि 2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू और कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। इन राज्यों में उन्हें 2002 के TMA पाई फाउंडेशन के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत के अनुसार अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए।

हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का तर्क था कि यहूदी, बहावाद और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में अल्पसंख्यक हैं, अपने संस्थानों का प्रशासन नहीं कर सकते, जो की सही नहीं था।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में केंद्र को बेलगाम शक्ति देने और स्पष्ट रूप से मनमाना, तर्कहीन और अपमानजनक होने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम 2004 की धारा 2 (एफ) की वैधता को भी चुनौती दी थी।

यह ध्यान रखना उचित है कि कई भारतीय राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। लक्षद्वीप (96.58%) और कश्मीर (96%) में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इसी तरह, मिजोरम (87.16%), नागालैंड (88.10%), मेघालय (74.59%) में ईसाई स्पष्ट रूप से बहुसंख्यक हैं। अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी एक महत्वपूर्ण आबादी है। फिर भी, पूरे देश में, पूरे समुदाय को अल्पसंख्यक के रूप में माना जाता है।

लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर जैसे क्षेत्रों में हिंदू, यहूदी और बहावाद का पालन करने वाले अल्पसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दुओं पर आज तक उन राज्यों में धयान नहीं दिया गया था। केंद्र के इस फैसले के बाद देश के कई राज्य में कम आबादी वाले हिन्दुओं के जीवन में सुधार होने के संकेत दिख रहे हैं

केंद्र को हलफनामे में दिए गए अपने बयानों पर अमल करना चाहिए और राज्य सरकारों को उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने का निर्देश देना चाहिए जहां उनकी संख्या खतरनाक स्तर तक घट गई है।केंद्र का यह स्वागत योग्य कदम है कि उसने स्वीकार किया है कि राज्यों के पास अल्पसंख्यकों को निर्धारित करने की शक्ति प्रदान की है क्योंकि पहले राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की गैर-पहचान और गैर-अधिसूचना के कारण, हिंदुओं का वैध हिस्सा मनमाने ढंग से छीन लिया जा रहा है। हालांकि, राज्य स्तर पर धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान करना और उन्हें अधिसूचित करना सरकार का कर्तव्य है ताकि हिन्दुओं को सभी योजनाओं का लाभ मिल सके और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

क्या यह सही है? राय

अगर भारतवर्ष में हिंदुओं के अस्तित्व को बचाना है तो हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित मत करो बल्कि सभी मत-मजहबों का अल्पसंख्यक का दर्जा खत्म करो, सभी के लिए समान कानून लागू करो, भारत में हर तरह की समानता के अधिकार का पालन हो, शिक्षा,चिकित्सा रोजगार हर जगह समानता हो, असंतुलन के कारण ही देश की प्रतिभाएं विदेश चली पलायन कर जाती हैं।

आपकी राय दीजिए?

Sach ki Dastak

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