एक कविता ऐसी भी” -ब्रजेन्द्र मिश्रा ‘ज्ञासु


सच की दस्तक साहित्यिक न्यूज डेस्क जयपुर
ब्रजेन्द्र मिश्रा ‘ज्ञासु (‘ रचनाकार)
सिवनी मध्यप्रदेश,बैंगलोर, कर्नाटक 7349284609
“एक कविता ऐसी भी”
स्मार्ट हो रही हैं जी वस्तुएं सभी।
इंसान को नहीं अब ब्रेन चाहिए।
खुद भले ना पहुँचे समय से कहीं।
वक्त की पाबन्द उसे ट्रेन चाहिए।
जो इक बात भी माने नहीं पति की।
मगर उसे भी आज्ञाकारी मेन चाहिए।
अंधाधुंध काटे जो पेड़ो को आजकल।
उन्हें भी सावन में सुहानी रैन चाहिए।
इतनी गिर चुकी इंसानियत कहीं कहीं।
उसको उठाने को तो अब क्रेन चाहिए।
भारत का रुपया अब नहीं चाहता युवा।
उन्हें बस डॉलर पाउंड और येन चाहिए।
संस्कारों की दौलत को भूल गए सभी।
उन्हें जेब की रकम में बस गेन चाहिए।
जरूरत में समाज की आते नहीं नेता।
उन्हें बस अपने लाखों में फैन चाहिये।
ज्ञासु जहां की दौलत कब माँगते कवि।
उन्हें बस ताली, कागज व पेन चाहिए।
“ऋतुराज बसंत”
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मौसम बसंती कह रहा कुछ यार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
जब कूकती कोयल रूहानी राग से।
हमको लुभाती है सुगंधें बाग से।
होती सुहानी सी फिज़ा का प्यार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुँजार सुन।
मौसम बसंती ——————।।1।।
झुकने लगीं है आम्र वृक्ष की डालियाँ।
खा आम को बच्चे बजाते तालियाँ।
उनके हृदय में बज रही झंकार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
मौसम बसंती ——————।।2।।
ये वर्ष का सबसे सुहाना भाग है।
राधेकिशन के प्रेम का ये फ़ाग है ।
शिव शक्ति का इसमें हुआ श्रृंगार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
मौसम बसंती ——————।।3।।
लगने लगी है अब मनोरम ये जमीं।
है पर्व इसमें शारदे की पंचमीं।
बदले हुये संगीत का व्यवहार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
मौसम बसंती —————–।।4।।
कोई घृणा से कब हृदय जीता कभी।
अब तुम गिरा दो द्वेष के पत्ते सभी।
बस नेह ही संसार का आधार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
मौसम बसंती —————–।।5।।
- केवल उमंगों से सपन आधार बुन।
अपने हुनर को विजय हथियार चुन।
फिर गूँजती वो मंजिली टंकार सुन।
है प्रेम में मधुकर मगन गुंजार सुन।
मौसम बसंती —————–।।6।।
Thanks alot Sir