काव्य दस्तक परों को कतरना छोड़ दो- July 22, 2021 0 हरे – भरे जंगलों को काट कर , तुमने , कंक्रीट का जंगल उगा दिया , हाय ! तुमने ये क्या कर दिया , मैंने कब कहा था मेरा घर उजाड़ दो । बना लेना अपने लिये कंक्रीट का जंगल , पर मेरे लिये भी एक जंगल छोड़ देना , तुम्हारी तरह हमारी भी ख़्वाहिशें हैं , हमें भी तो एक घरौंदा बना लेने दो। मत कैद करो तुम पिंजड़े में , हम परिंदों को उड़ान भरने दो , उड़ने दो खुली आसमां में हमें , हमारे परों को कतरना छोड़ दो। _विजय कुमार सिन्हा ” तरुण “ देहरादून Sach ki Dastak sachkidastak See author's posts Tags: featured Continue Reading Previous भजन : राधारानी बनीं हैं कोतवालNext कोरोना संक्रमण के प्रति सावधानी बरतने के लिए आरपीएफ ने किया जागरूक 0 0 votes Article Rating Subscribe Login Notify of new follow-up comments new replies to my comments Label Name* Email* Website Label Name* Email* Website 0 Comments Inline Feedbacks View all comments