सुन री सखी !! (हृदयोद्गार,कोमलभाव


सुन री सखी !! (हृदयोद्गार,कोमलभाव)
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सुन री सखी हृदय की बातें
कैसो उपज्यो उमंग।
मन तो मेरो हुयो बावरो
चल्यो श्याम के संग।
लोचन भरा है गहरा अंजन
नाचै कैसो मतंग।
स्नेह – धार बहे छतियन पे
हरष बन्यो है उतंग।
घुंघट मुख पर ठहरे नाहीं
उड़्यो हवा के संग।
दर्शन के दो नैना प्यासे
बाजे उर में मृदंग।
अति गँवार कुरुप मैं ग्वालिन
तुम रसिक रूपधन।
मेरी त्रुटि दोष ना देखो
सेवा दे दो अनंत।
प्रेम सुधा रस बंसी बाजे
मनोहर धुन संगम।
आज सखी चित्त बस में नाहिं
नाचे अंग- प्रत्यंग।
– ममता मावंडिया
बैंगलोर
Superb Writing