आजादी की पहली चिंगारी : क्रांतिकारी खुदीराम बोस –

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देश को आजादी बिना खड़ग बिना ढ़ाल नहीं मिली इसके लिये भारतमाता के अनेकों सपूतों ने अपनी जवानियों की आहूतियां दीं हैं, तो कहीं कालापानी में नर्क जैसी भयानक यातनाएं सही हैं तो कभी हँसते-हँसते फांसी के फंदो को चूँमते हुए अपनी जानें नौछावर की हैं।

 

आज़ादी की सालगिरह (Independence Day) में कुछ ही दिन शेष बचे हैं और 111 साल पहले आज का ही दिन था, जब एक नौजवान क्रांतिकारी ने देश के लिए बलिदान दिया था। 

इस आजादी की सुलगती चिंगारी की शुरूआत हुई जब मात्र 18 साल की छोटी सी उम्र में भारतमाता को आजाद कराने की दिल में आग लिये आँखों में श्मशान लिए भारत के युवा देशभक्त खुदीराम बोस जी जननी जन्मभूमि के सम्मान की रक्षाहेतु हँसते-हँसते फाँसी पर झूल गये थे, हाँ यह वही उम्र थी जिस उम्र में हम वोट करने के लिये बालिग, तैयार होते हैं और सिर्फ़ अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं, उस समय खुदी राम बोस जी ने अखंड भारत के भविष्य में सोचा और ब्रिटिश सरकार को जोरदार पटखनी देने में पहला बेजोड़ धमाकेदार कदम उठाया था।

 

सन् 1906 में मिदनापुर में लगी औद्योगिक व कृषि प्रदर्शनी में प्रतिबंध की अवज्ञा (Disobedience) करके खुदीराम ने ब्रिटिश विरोधी पर्चे बांटे थे. जिसके चलते एक सिपाही ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की थी लेकिन, खुदीराम उसके मुंह पर एक जोरदार घूंसा मार ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ का नारा लगाते हुए भाग निकले थे। फिर अगले ही साल 28 फरवरी को पकड़े गये तो भी पुलिस को चकमा देकर भागने में सफल रहे थे. दो महीने बाद अप्रैल में फिर पकड़ में आए तो उन पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया था, लेकिन एक तो उनकी उम्र कम थी और दूसरे उनके खिलाफ एक भी गवाह नहीं मिला, इसलिए 16 मई को महज़ चेतावनी देकर छोड़ दिए गए थे। 

इसके बाद 6 दिसंबर, 1907 को खुदीराम ने दल के ऑपरेशनों के तहत नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन के पास बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन और 1908 में अंग्रेज़ अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम फेंके. लेकिन अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण क्रांतिकारी ऑपरेशन को उन्होंने 20 अप्रैल, 1908 को अंजाम दिया।

 

1- खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के गांव हबीबपुर में हुआ था. उनके पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ था। उनके जन्म के कुछ ही दिन बाद माता-पिता का निधन हो गया।वह अपनी बहन के यहां पले-बढ़े।

2- 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया तो इसका पूरे देश में विरोध हुआ। खुदीराम पर भी इसका असर हुआ और वह क्रांतिकारी सत्येन बोस की अगुवाई में क्रांतिकारी बन गए।

3- वह जब स्कूल में पढ़ते थे तभी से उनके दिल में क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी थी और वह अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ नारे लगाते थे।9वीं की पढ़ाई के बाद वह पूरी तरह क्रांतिकारी बन गए और रेवेल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन वंदेमातरम के पर्चे बांटने लगे। 

4- 28 फरवरी 1906 को सोनार बांग्ला नाम का इश्तेहार बांटते वक्त पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया लेकिन वह चकमा देकर भागने में कामयाब हो गए।इसके बाद पुलिस ने एक बार फिर उन्हें पकड़ लिया लेकिन उम्र कम होने की वजह से चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। 

5- 6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट में भी उनका नाम सामने आया. इसके बाद एक क्रूर अंग्रेज़ अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने का ज़िम्मा सौंपा गया. इस काम में उनके साथ प्रफुल चंद्र चाकी भी साथ थे। 

6- मजिस्ट्रेट को मारने के लिए बमकांड में अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी मारी गई लेकिन वह बच गया. घटना के बाद खुदीराम बोस और प्रफुल चंद वहां से 25 मील भागकर एक स्टेशन पर पहुंचे. लेकिन पुलिस के हत्थे चढ़ ही गए.

7- प्रफुल चंद ने खुद को गोली मारकर स्टेशन पर शहादत दी. थोड़ी देर बाद खुदीराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया. उनके खिलाफ 5 दिन तक मुकदमा चला। 

8- जून, 1908 में उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई. 11 अगस्त 1908 को इस क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया गया. आज़ादी के संघर्ष में यह किसी भारतीय क्रांतिकारी को फांसी देने की पहली घटना थी। 

चर्चित बमकांड को दिया था अंजाम

यह ऑपरेशन बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले के सत्र न्यायाधीश किंग्सफोर्ड की हत्या से संबंधित था. दरअसल, बंग भंग के वक्त किंग्सफोर्ड कलकत्ता में मजिस्ट्रेट था और उसने वहां आंदोलन करते हुए पकड़े गए क्रांतिकारियों को जानबूझकर एक से बढ़कर एक क्रूरतम सज़ाएं दी थीं. इससे खुश ब्रिटिश सत्ता ने उसे पदोन्नत करके मुज़फ्फरपुर का सत्र न्यायाधीश बना दिया था। 

खुदीराम बोस ने अपने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर किंग्सफोर्ड को मारने का प्लान बनाया. और उसे मारने के लिए उनकी गाड़ी पर बम फेंका. लेकिन जिस गाड़ी पर उन्होंने बम फेंका उसमें बैरिस्टर प्रिंगले कैनेडी की पत्नी और बेटी थे. दरअसल किसी काम से किंग्सफोर्ड रुक गये थे और गाड़ी में नहीं बैठे थे. कार में मौजूद लोग मारे गये। 

खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी इस घटना के बाद वहां से भागे और सीधे 25 मील दूर वैनी स्टेशन पर जाकर रुके लेकिन तब तक वहां भी पुलिस को खबर हो गई थी और उऩ्हें दो अफसरों ने गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद 11 अगस्त, 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई और प्रफुल्ल चाकी भी एक मुठभेड़ के दौरान मार दिए गये। 

आज भारत माता के इस सच्चे सपूत महान देशभक्त के बलिदान दिवस पर टीम दस्तक की तरफ़ से 
शत् शत् नमन।

वंदेमातरम्।
🙏🙏🙏🙏💐🇮🇳🇮🇳🇮🇳

Sach ki Dastak

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