ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार! ✍️विकास द्विवेदी

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ज्योतिष का वैज्ञानिक आधार!

ज्योतिष: ये शब्द जैसे ही ज़हन में आता है, सबसे पहले वेद ,पुराण, धर्मग्रंथ जैसे शब्द दिमाग में घूमने लगते हैं! तो शुरुआत में ही आपको बता दूं कि इनमें पर्याप्त अंतर है और पर्याप्त संबद्धता भी। आध्यात्मिक या दार्शनिक दृष्टिकोण से देखें ,तो इसमें आने वाला शब्द ज्योति इंगित करता है प्रकाश की ओर जिसमें सामर्थ्य है दृष्टि देने की। फर्ज़ कीजिए अंधेरा है तो कहाँ तक देख पाएंगे आप, शायद बहुत दूर नहीं! लेकिन ऐसे में यही ज्योति हमें दूरदर्शी बना देती है, यानी दूर तक का साफ दिखाई देने लगता है। अौर हम गणना कर पाते हैं मार्ग में पड़े अवरोधों की ,जिससे मार्ग निष्कंटक किया जा सके।इसलिए यहां आकलन का महत्व बढ़ जाता है जो कि एक माप पर आधारित है।

मित्रों ज्योतिष गणना पर ही आधारित है अौर दिए गए आंकड़ों के आधार पर एक आकलन या पूर्वानुमान( मैं यहाँ सटीक शब्द का इस्तेमाल इसलिए नही‌ कर रहा क्योंकि यह सटीकता गणना करने वाले की कुशाग्र बुद्धि अौर ज्ञान पर पूरी तरह निर्भर है) के आधार पर एक परिकल्पना या हाइपोथिसिस प्रस्तुत करता है जिसके पुष्ट होने का प्रमाण उस समय मिलता है जिस समय के विषय में उस परिकल्पना मे व्याख्या की गई है ।

यह ठीक उसी तरह है जैसे आज के समय में नासा हमें बताता है कि फलां उल्कापिंड कितने समय बाद किस ग्रह की कक्षा या ग्रह के कितना करीब होते हुए गुजरेगा यह भी केलकुलेशन पर ही आधारित है ,बस अंतर इतना है की पारंपरिक ज्योतिष के अपने मानक है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अपने। लेकिन अगर इसके अंदर जाकर देखें तो दोनों के मूल स्वरूप का आधार एक ही होगा।

उदा. के लिए मान लीजिये हम एक निश्चित दूरी की माप के लिए 1 किलोमीटर का एक पैमाना गढ़ते हैं। वही किसी अन्य माध्यम में कहा गया कि अमुक दूरी 1000 कदम है और अब यदि दूरी समान है, तो ऐसे में प्रश्न उठना लाजिमी है कि 1 किलोमीटर की दूरी को माप कर 1000 कदमों का पैमाना बनाया गया ,अथवा 1000 कदमों की दूरी को मापकर 1 किलोमीटर का पैमाना गढ़ा गया। खैर छोड़िये महत्व तो दूरी का है ,जो समान है ।इस आधार पर निसंकोच कहा जा सकता है, कि एक ही सत्य को व्यक्त करने के कई तरीके हो सकते हैं जिस प्रकार एक युक्ति को मापने के भिन्न-भिन्न पैमाने हो सकते हैं उसी प्रकार प्रत्येक सत्य की अपनी व्याख्या है और प्रत्येक सत्य का अपना सिद्धांत हो सकता है। वह आपके सिद्धांतों से भले मेल न खाये लेकिन परिणाम समान हो तो उसे कैसे असत्य की श्रेणी मे रखा जा सकता है?

अब ज्योतिष को पाखंड मानने या बताने के विषय को लेकर मैं कहना चाहता हूं ,कि ज्योतिष हो या विज्ञान दोनों में मूल आधार गणना है जिस से एक परिकल्पना या हाइपोथेसिस का सृजन होता है ।समय के साथ मिलने वाले परिणामों के आधार पर इनके विषय में विश्वसनीयता बलवती होती जाती है, अगर परिणाम सकारात्मक रहे तो। अन्यथा चाहे ज्योतिष हो या विज्ञान हो गणना सही नहीं की गई तो अपेक्षित परिणाम कैसे आ सकता है?

उदा. के लिए आप मान लें कि आपने जोड़ना सीखा और आपको सिखाया गया 2+2=3, अब इसके अलावा पूरा गणित आपको आता हो। अन्य जोड़ सहित घटाना ,गुणा, भाग सभी में आप सिद्धहस्त हैं ।लेकिन 2+2 के मायने आपके लिए 3 ही है ,तो यकीन मानिए जहां 2+2 का जोड़ आएगा आपका बाकी का सीखा हुआ सारा गणित फेल हो जाएगा।आौर ऐसे में सही परिणाम आना असंभव है, इसलिए सम्यक ज्ञान और उस विषय जिसके संबंध मे ये गणना की जा रही है भलीभाँति अध्ययन अौर उसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण अत्यंत आवश्यक है। एक छोटी सी इकाई को भी नजरअंदाज करना या गलत ढंग से समझ लेना नुकसानदेह है।

यह सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से की गई गणना पर भी लागू होता है यानी हम कह सकते हैं कि ज्योतिष और वैज्ञानिक दोनो की परिकल्पनाओं का आधार गणना ही है जिनके आधार पर सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं , यही सिद्धांत ज्योतिष के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की समूची व्याख्या करता है।

इसके बाद अगले हिस्से में हम बात करेंगे प्रायोगिक रूप से ज्योतिष और धर्म के बीच के संबंध के विषय में ।कि आखिर यह संबंध इतने सुदृढ़ कैसे हुए? और क्यों दोनों को एक के सदृश्य दूसरे की परछाई के रूप में देखा जाता है? क्रमश:……

लेखक
-विकास द्विवेदी

Sach ki Dastak

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