

– राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि,साहित्यकार
मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती है। वह भोग विलासिता के साधन जुटाने के लिए इच्छा करता ही रहता है। दिन रात काम कर एक इच्छा पूर्ण कर लेता है फिर दूसरी इच्छा फिर तीसरी। ऐसे क्रम चलता ही रहता है। जिस वस्तु का घर में अभाव रहता है हम उसकी इच्छा करते हैं।कोई महंगे साधन जुटाने की इच्छा रखता है तो कोई बड़ी बड़ी कलात्मक इमारतें खड़ी करने की इच्छा । कोई अपने पुत्र पुत्रियों को ऊँचे ओहदों तक पहुंचाने की इच्छा रखता है। हम सब दुनियां में जो दूसरों के सुखों को देखते है उन्हीं सुखों को भोगने के लिए दिन रात दौड़ रहे हैं हमें भी उन सुखों के साधनों की इच्छाएं होने लगती है।
बड़े बड़े असुरों ने इच्छा पूर्ति के लिए कठोर तप किये भगवान से इच्छा पूर्ति के वरदान लिए। हिरण्यकश्यप ने, न दिन में मरूं न रात में न दोपहर में न आदमी से मरूं न जानवर से,अस्त्र से मरूं न शस्त्र से । तो भगवान को उसको मारने के लिए नरसिंह अवतार लेना पड़ा। उसका वध संध्या समय किया । बिना अस्त्र शस्त्र के नाखूनों से वध किया था। त्रेता में लंकापति रावण ने इच्छापूर्ति हेतु अमृत कुंड नाभि में धारण कर रखा था। रावण ने सभी देवताओं को बन्दी बना लिया था। रावण कैलाश पर्वत उठा कर लाना चाहता था। वह दुनियां की तमाम इच्छाओं को पूर्ण करना चाहता था। वह स्वर्ग की सीढ़ी बनाना चाहता था। वह सागर का पानी मीठा कर देना चाहता था और स्वर्ण धातु में सुगंध घोलने की इच्छा रखता था।
उस वक्त इच्छा पूर्ति के लिए कामधेनु थी। जो मनचाहा फल देती थी। कल्पवृक्ष था जो मनचाही इच्छा पूर्ति करता था। बड़े – बड़े देव, दानव, मानव इच्छा पूर्ति के लिए साम दाम दंड भेद चारों नीतियां अपनाते थे।
आज भी लोग इच्छा प्राप्ति के लिए जादू टोना टोटका झाड़ – फूंक मन्त्र, ताबीज़, डोरा बन्धन आदि में विश्वास कर तांत्रिकों के नकली यति के जाल में फंस जाते है जिससे वह शारीरिक, आर्थिक और मानसिक नुकसान भी कर डालते हैं। सच कहें तो ऐसी जल्द अमीर होने वाले अतिमहत्वाकांक्षी लोगों के कारण ही अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है और जिससे लोग आलसी हो जाते हैं।
कहा भी गया है दुनिया में तीन प्रकार की वृत्तियों के लोग रहते है राजस वृति के लोग भोग विलास माया सुरा सुंदरी की इच्छा करते है। सात्विक लोग सुख शांति ईश्वर प्राप्ति की इच्छा करते हैं। तामसी व्यक्ति वासना,लोभ, क्रोध धन लिप्सा की इच्छा करते हैं।
महाभारत काल में भीष्म ने इच्छा मृत्यु का वरदान लिया था। सूर्य उतररायन में आने की प्रतीक्षा की थी। शर शैय्या पर अचेत पड़े रहे भीष्म। भीष्म ने आखिर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
कबीर ने कहा इच्छा काया ,इच्छा माया,इच्छा जग उपजाया,कह कबीर ये इच्छा विवर्जित ताका पार न पाया। यानी इच्छा ही शरीर की उत्पत्ति का कारण है। आज किसी को बेटी तो किसी को बेटा चाहिए।इच्छा ही माया है। धन एकत्रित करने के लिए लोग एक दूसरे का हक छीन रहे। अपने खून के रिश्ते को भूल रहे।
यही माया है। हमारी आंखों पर माया का पर्दा पड़ा है। हर व्यक्ति माया महाठगिनी के शिकंजे में फंसा है। मोह प्रबल हो गया। अपनी चीजों से मोह ,अपनी संतान से मोह। मोह में व्यक्ति आकंठ डूब गया।
जगत की उत्पत्ति का कारण इच्छा है। लेकिन प्रश्न है इच्छा किसकी करें जिससे ये मानव जीवन सफल हो जाये। कोई अच्छी नौकरी पाने की इच्छा में मेहनत करता है। कोई श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ बनना चाहता कोई समाजसेवक कोई बड़ा उद्योगपति बनना चाहता है। हर व्यक्ति की इच्छा अलग – अलग होती है।
इच्छा ऐसी होनी चाहिए जिससे दूसरों की उन्नति हो और स्वयं को भी आनंद मिले। स्वयं दुखी रहकर व्यर्थ की इच्छाओं के पीछे भागने से कुछ हासिल नहीं होगा। महात्मा बुद्ध,महावीर स्वामी,गुरु नानक देव सहित सभी महापुरुष कहते हैं कि इच्छाएं सीमित होना चाहिए। सच्चा सुख इच्छाओं के अंत होने पर ही मिलता है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं अर्जुन सारी इच्छाएं पूर्ण कर लेने के बाद अंत में परमात्मा प्राप्ति की इच्छा शेष रह जाती है। उससे बडी कोई इच्छा नहीं। इच्छा का अंत होने पर ही व्यक्ति के भृम का भी नाश हो जाता है। वह शंकाओं से ऊपर उठ जाता है।