मंजिल


सावन के अंधे को सब कुछ, हरा- हरा ही लगता है ।
राजमहल में रहने वाला, खुद में सोता – जगता है ।।
जिसको जो परिवेश मिला है, कौन बुद्ध सा तोड़ेगा !
राजमहल के सुख साधन को, कुटिया के हित मोड़ेगा !!
राजमहल में कुटी बनाना, या कुटिया में राजमहल ।
ये कहने की बातें हैं बस, बढ़कर करता कौन पहल !!
परिवर्तन की आस लगाए, गुमसुम होकर जो बैठें ।
अपने नेताओं के पीछे, बाट जोहते जो ऐठें ।।
उनसे कह दो आसमान से, परिवर्तन ना टपकेगा ।
अगर कभी कुछ मिला अचानक, नेता झटपट लपकेगा ।।
इसीलिए अपने हाथों पर, सर्वाधिक विश्वास करो ।
गैरों से उम्मीद छोड़कर, निज क्षमता पर आस करो ।।
माना कठिन डगर है लेकिन, बैठ समय को मत खोना ।
अब तो जागो सोने वालों, फिर अतीत पर मत रोना ।।
बिनु कुर्बानी के बोलो कब कहाँ किसे कुछ हाथ लगा ?
स्वप्न देखकर सोने वालों का बोलो कब भाग्य जगा ??
तन्द्रा या जंजीर रूढ़ियों, को बनने मत दो बाधा ।
अर्जुन ने भी लक्ष्य विजय की, जब उसने शर को साधा ।।
उठो अवध अब देर न करना, पहला कदम उठा के चल ।
मिल जाएगी प्यारी मंजिल, आज नहीं तो निश्चय कल ।।
पेशा
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सबकी अपनी दिनचर्या है, सबके अलग इरादे ।
अपने दिल से कर लेते हैं, हम भी तो कुछ वादे ।।
किन्तु मंजिलों को तय करती हैं अपनी ही राहें ।
जब जब मनुज दबाये जाते, दिल भरता है आहें ।।
इसी हेतु पेशा चुन लो कुछ, कर्मलीन है रहना।
मानव हेतु यही पूजा है और यही है गहना ।।
तभी मूल आवश्यकताएँ, हो पाएँगी पूरी ।
अपनों के हित अपनेपन के संग पेशा बहुत जरूरी ।।
कोई पेशा बड़ा नहीं है और न कोई छोटा।
जैसा चाहें वैसा करलें, उत्तम अथवा खोटा ।।
पेशा अपना धर्म कर्म है, पेशा अपनी पूजा ।
इससे बढ़कर नहीं जगत में, सक्षम कोई दूजा ।।
पेशा हमको सिखलाता है, पेश ठीक से आना ।
सर्वोत्तम सद्गुण साहस से, इसका मर्म निभाना ।।
पेशा से मिलता धन दौलत एवं सक्षम जीवन ।
पेशा में चुक जाता अपना, तन मन सारा साधन ।।
सबको प्रिय होता निज पेशा,चाहे भी हो जैसा ।
इज्जत शोहरत मान नाम अरु देता है यह पैसा ।।
पेशे पर जीना निर्भर है, पेशे पर ही मरना ।
पेशे हेतु सदा दुनिया मे,होता सबकुछ करना ।।
पेशा राम कृष्ण गौतम है, महावीर गुरुनानक ।
पेशा है रहमान मसीहा, भूत भविष्य कथानक ।।
परमेश्वर की पूजा पेशा और स्वयं का परिचय ।
अनुभव अवध असीम अलौकिक,सदा सर्वदा अक्षय ।।
अवधेश कुमार ‘अवध’
गुवाहाटी -781005 (असम)
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