” मैं बेटी हूँ – रक्षा करो ” लेखक – इंजी वीरबल सिंह “वीर”


आँगन की बगिया में,
कली खिलने को है तैयार।
मैं बेटी हूँ – मेरी रक्षा करो,
लाऊँगी मैं खुशियों की बहार।।
माँ का हाथ बटाने,
पिता का साथ निभाने,
का है मुझको इंतजार,
बेटी को कोख में न मार,
रक्षा बस जन्म तक करनी है।
ये बात जन – जन से कहनी है।।
फिर अपनी रक्षा खुद करूँगी।
आसमाँ की मैं उडान भरूँगी।।
फुहार कर आँगन अपना,
घर का करूँगी श्रंगार।
अपने चेहरे के हँसते फूलों से,
लगाऊँगी ग्रह वंदनवार।।
अपने राजा भैया की,
बन जाऊँगी मैं साखी।
कलाई पर स्नेह की,
सजाऊँगी मैं राखी।।
अरे ओ! माँ,
दर्द का बहाना लेकर,
डॉ के पास जा रही हो।
लड़का है या लड़की पेट में,
इतना पता करने जा रही हो।।
जानकर कि गर्भ में बिटिया है,
पापा को बता रही हो।
मुझे तो बेटा चाहिए था,
इच्छा उनको बता रही हो।।
कर लिया फैसला तुमने,
मैं डर से काँप रही हूँ।
करोगे कत्ल मेरा, गर्भ में
मैं इरादों को भाँप रही हूँ।।
माना तुम्हें वंश चलाना है।
मगर बहू भी तो लाना है।।
सब ग़र यूँ ही बेटी मारेंगे।
क्या सब बेटों की फौज पालेंगे।।
पापा को समझा दो माँ,
मेरा कोई कसूर नहीं है।
आप तो दया की मूरत हो,
असुरों सी क्रूर नहीं है।।
चिड़िया हूँ तुम्हारे आँगन की,
कल किसी की लक्ष्मी बन जाऊँगी।
तुम्हें खुद होगा नाज कल,
मैं मेहनत से अच्छी बन जाऊँगी।।
हो परीक्षा कोई भी,
बेटियाँ ही अव्वल रहती हैं।
छोड़ देता है बेटा बुढ़ापे में,
बेटियाँ ही संबल बनती है।।
पापा! जन्मदिन केवल तुम,
भैया का ही मनाना।
हो कुछ नुकसान घर में,
डाट – फटकार मुझे सुनाना।।
मेरे रहने से घर में,
संगीत की बजेगी झंकार।
आने दो सच करने सपने,
मम्मी-पापा मेरी सुनो पुकार।।
मैं बेटी हूँ इस जग की,
मेरी रक्षा को आगे बढ़ो।
बेटी है तो हम हैं,
बताने सबको मंच चढ़ो।।
लेखक एवं कवि
इंजी वीरबल सिंह “वीर”
( BE, MBA, PGDCA, MA, BJMC )