आज के समय में हत्यारी भीड़ का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। न यह प्राकृतिक आपदा है और न दैवीय विधान बल्कि विशुद्ध रूप से मानव जनित सोची – समझी चाल के तहत अपने लिए भीड़ जुटाना और इस्तेमाल करना है जिसमें एक या एकाधिक निर्दोष लोग अकारण हताहत हो जाते हैं। मॉब लिंचिंग जिसको हिन्दी में भीड़ हत्या या हत्यारी भीड़ कह सकते हैं, का उद्भव परोक्षत: मानव के विकास के साथ ही हुआ था किन्तु इसे मॉब लिंचिंग का नाम मिला चार्ल्सलिंच या विलियम लिंच के लिंच कानून से प्रभावित होकर अमेरिकी सिविल वार के साथ जिसमें प्राय: अश्वेतों पर कोई भी आरोप लगाकर बिना कोई अवसर दिए भीड़ बनाकर मार डाला जाता था और आज भी हमारी आजादी के सात दशकों के बाद यह ज़ारी है।
हमारे देश की बुनियाद विश्व बंधुत्व, वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्व धर्म समभाव एवं अहिंसा परमो धर्म: की पावन व कल्याणकारी अवधारणा पर आधारित है जो हजार सालों के बाहरी अत्याचार एवं विविध अवसरवादी संहिताओं, संविदाओं व संविधान के साथ भी कायम है। हमारे संविधान में जीवन का अधिकार मौलिक अधिकार है। इसके सम्बंध में अनुच्छेद – 21 में लिखा गया है कि, ‘किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। इतने स्पष्ट कानून के बाद भी यह छद्म व्यवस्था आज तक मरी नहीं है।
ज्वलन्त सवाल यह है कि कौन है इसका जिम्मेदार? इसके लिए प्रमुख बिन्दु निम्नवत हैं-
1) अपरिपक्व जनतन्त्र जो भीड़तन्त्र से ऊपर न उठ सका हो, 2) कमजोर कानून जो लोगों को उचित व्यवस्था का भरोसा न दिला सके, 3) अपराधियों की सोची – समझी चाल, 4) उचित और अनुचित में भेद कर सकने की क्षमता का अभाव, 5) मनोरोग का प्रभाव जिसके कारण अव्यवस्था में संतुष्ट होना, 6) विलम्बित न्याय प्रक्रिया के प्रति क्षोभ, 7) अपने पक्ष में न्याय न मिल पाने का पूर्वाग्रह, 8) अपराध करके सजा न पाने के प्रति आश्वस्त, 9) असुरक्षित सोसल मीडिया जो प्रचार – प्रसार के लिए सर्वसुलभ है, और 10) भीड़ की अनियन्त्रित शक्ति जो उस वक्त सर्वशक्तिमान निर्णायक बन जाती है।
ये ऐसे व्यक्ति या कारण होते हैं जिनके द्वारा त्वरित भीड़ इकट्ठी होती है जो बिना वास्तविकता को जाने, बिना जानने की कोशिश किए कानून को अपने हाथ में लेकर मौत का तांडव खेलती है। प्राय: यह पाया गया है कि शान्ति के उपरान्त जब सच्चाई सामने आती है तो वह बिल्कुल उल्टी होती है और यह जानकर उसमें शामिल लोग पछताते हैं, …..और कर भी क्या सकते हैं!
इस जटिल समस्या का समाधान आसान तो नहीं पर अत्यावश्यक है। इसके लिए युद्धस्तर पर समवेत प्रयास की जरूरत है क्योंकि इसमें जीवन के अधिकार का हनन है। केन्द्र सरकार सिर्फ यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि यह विषय राज्य के अधीन होता है बल्कि दायित्व लेकर कठोर कानून बनाना पड़ेगा। राज्य सरकार को इसे गम्भीरता से लेना पड़ेगा और जरूरत पड़ने पर अन्तरराज्यीय प्रयास किया जाना चाहिए। स्थानीय प्रशासन को भी पहले से अधिक सचेत रहने की जरूरत है और इसके साथ ही हर नागरिक का परम दायित्व है कि किसी भी रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष मॉब लिंचिंग में खुद को शामिल न होने दें और इस तरह के किसी भी योजना का पता चले तो तुरन्त स्थानीय प्रशासन को सूचित करें तथा अन्य लोगों को भी उचित भूमिका के लिए प्रोत्साहित करें। इससे अतीत में हुए नुकसान का हवाला देते हुए पुन: न दोहराये जाने की अपील करें।
यद्यपि इतने प्रयासों से काबू पाया जा सकता है तथापि यदि ऐसी कोई भी दुर्घटना घटित हो ही जाती है तो पूर्णत: जाँच की जानी चाहिए और दोषियों को कठोर सजा का प्रावधान करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी कोई भी घटना की सम्भावना न रहे। मानवता और देशहित में इस महामारी का समूल नाश होना ही चाहिए ।