बीएचयू और एनसीएस पर उठते सवाल पीएचडी पंजीकरण को लेकर उठे गंभीर नैतिक प्रश्न, उच्च स्तरीय जाँच की मांग

सच की दस्तक डिजिटल न्यूज डेस्क वाराणसी
वाराणसी।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और नई दिल्ली स्थित नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के बीच पीएचडी पंजीकरण पर गंभीर नैतिक प्रश्न खड़े हो गए हैं। शैक्षणिक पारदर्शिता और संस्थान की साख को लेकर अब जवाबदेही की मांग तेज हो गई है।
मुख्य मुद्दे:
(मान्यता पर संदेह🙂
क्या BHU ने आधिकारिक रूप से NCS को बाहरी शोध संस्थान के रूप में मान्यता दी है? इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं है।
छात्रवृत्ति में गड़बड़ी का आरोप:
बीते 6–7 वर्षों में NCS से जुड़े कई शोधार्थियों ने BHU में पीएचडी पंजीकरण कराया। इनमें से कई ने बीच में ही डिग्री अधूरी छोड़ दी, फिर भी उन्हें रिसर्च एसोसिएट (RA) स्तर की उच्चतम छात्रवृत्ति मिली। जबकि RA का पद सामान्यतः पीएचडी के बाद दिया जाता है। पीएचडी विद्यार्थियों के लिए जेआरएफ/एसआरएफ की अलग निधि निर्धारित है।
सह-पर्यवेक्षक नियुक्ति पर सवाल:
BHU के नियमों के तहत NCS वैज्ञानिकों को किस आधार पर पीएचडी सह-पर्यवेक्षक (Co-Supervisor) बनाया गया, यह भी स्पष्ट नहीं है।
जवाबदेही की मांग
शिक्षाविदों और शोधार्थियों का कहना है कि BHU की Institute of Eminence की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए NCS से जुड़े सभी पीएचडी पंजीकरणों और शोध प्रबंधों की औपचारिक समीक्षा होनी चाहिए। साथ ही, इस पूरे मामले में जिम्मेदारी तय कर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।