तब्लीगी जमात पर सुप्रीम कोर्ट ले संज्ञान –

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प्रकृति भी प्रेम का ही श्रंगार करती है। तभी प्रकृति के कण- कण में शंकर होने की बात सदा दोहराई जाती रही है। वो उद्धव प्रसंग में भी एक लाईन है जब गोपियां कहतीं हैं हम ब्रह्म ज्ञान का क्या करेगें? कान्हा का प्रेम ही बहुत है और यह तो प्रेम की बात है उद्धव बंदगी तेरी बस की नहीं है। इसी प्रेम भाव में मानव क्या स्वंय भगवान भी चुप खड़े रह जाते हैं।

वही भगवान की बनायी हुई धरती आज रसहीन दिखाई पड़ती है। जब कोरोना नाम की महामारी से पूरे विश्व में जगह-जगह मौते हो रहीं हैं। अभी कुछ दिन पहले जमात पर पुलिस का शोर्य देखने को मिला जब जमात के कुछ लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया था। वैसे तो कड़वी हकीकत यह है कि ऊपर वालों के आदेश के कारणवश पुलिस चुनिन्दा तौर पर अपने तेवर दिखाती है। वर्ना उनकी क्षमावन्तता, धैर्यशीलता, निर्वेग, दरगुजर, तितिक्षु आदि जगजाहिर हैं पर यह सब काफूर हो जाते हैं जब विरोधी राजनेताओं का जुलूस, बेरोजगारी व भर्ती अटकी रहने पर,प्रतियोगी परीक्षा जैसे – टैट में गलत सवाल छाप देने पर एक नम्बर से फेल होने की मारामारी में छात्र-प्रदर्शन, मिल जायें तो। मगर हाल ही के कोरोनाजन्य घटनाओं में एक बेहद शर्मनाक खबर आयी कि महिला डाक्टरों की इज्जत पर तबलीगी जमात के तथाकथित कुछ अराजक मौलवियों ने हमला किया तो इन पुलिस वालों के आग्नेय अस्त्र कंधों पर टंगे रह गये व उनके चिरपरिचित डंडे ठंडे बस्ते में रह गये। ताज्जुब है कि वहीँ छिपे तबलीगी जमात के कुछ मजहबी अराजकों ने उनपर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। वहीं तहसीलदार न बचाता तो मैडम डॉक्टर जकिया सैय्यद तो कब्रिस्तान पहुंच गयीं होतीं। उन्हें भीड़ ने गिराकर मारा। इधर गाजियाबाद पुलिस के सामने ही कुछ तबलीगी मुसलमानों ने नर्सों के सामने लुंगी ढीली कर दी, पैजामे उतारे और पतलून के बटन खोल डाले तो ये सशत्र पुलिसकर्मी चुप क्यों रहे?

दुखद है कि एक तरफ महिलाओं के आँसू गिरें व दूसरी तरफ पुलिस भी पिटे तो वह कैसी पुलिस ? अब लोग उन्हें कोरोना बम न कहें तो क्या कहें? यही लोग मीडिया में गरीबों के मीलों पैदल चलने के दर्द की, बेघरों के दर्द की बड़ी से बड़ी खबर को पीछे ढकेलने के भागी बने। 

आप सोच रहे होगें आखिर यह तब्लीगी जमात है क्या बला है? तो जान लीजिए तब्लीगी का शाब्दिक अर्थ है प्रोपेगंडा। अकीदतमंदों द्वारा इस्लाम का प्रचार। इसके संस्थापक (अमीर) मौलाना मोहम्मद इलियास कंधालवी ने 1927 में इसे बनाया था। उनकी मान्यता में मुसलमान लोग अपने पथ से भ्रष्ट हो गए थे। उन्हें वापस पैगम्बर की राह पर लाना है। उस वक्त पाकिस्तान आन्दोलन भी तेज हो गया था। मोहम्मद अली जिन्ना हर मुसलमान को अपना मोहरा मानते थे। हालाँकि नेक मुसलमान से जुदा, वे खुद नियमित नमाज अता नहीं करते थे। मस्जिद तो भूले भटके ही चले जाते थे। मगर इस्लाम फेविकोल जैसा था सबको जोड़ने के लिए। इलियास ने राशिद अहमद गंगोही से अनुप्राणित होकर लोगों को सच्चा इस्लाम मतावलंबी बनाने हेतु यह संगठन बनाया। उनके आत्मज मौलाना साद ने इसे व्यापक बनाया। इसमें इस्लामी पाकिस्तानी के राष्ट्रपति (1990) रहे मुहम्मद रफीक तरार, नवाज शरीफ के पिता मियाँ मुहम्मद शरीफ, पाक आईएसआई के महानिदेशक जनरल जावेद नासिर (1993), पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफ्रीदी, इंजमामुल हक और हाशिम अमला (दक्षिण अफ्रीका) इसके सदस्य हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसके लाखों सदस्य हैं जो भारत के बड़े दुश्मन हैं।

यह वही तब्लीगी जमात है जिसरकी कोई न्यूज पोर्टल, पत्र, पत्रिका, टीवी चैनल या मंच अछूता न रहा जहाँ पर इन तब्लीगियों की समाज-विरोधी हरकतों की खबरें सुर्ख़ियों न बनी।जब दिल्ली से ये तब्लीगी भागे थे तो इन्हें वहीँ रखने की समुचित व्यवस्था थी ताकि कोरोना की जांच की जा सके। मगर वे सब छिपकर यूपी सीमा तक पहुंचे। वहाँ दिल्ली पुलिस के एक आदमी ने यूपी पुलिस पर दबाव डालकर इन्हें नोयडा पहुंचा दिया। बाद में यूपी पुलिस ने उस दिल्ली पुलिस वाले को हिरासत में लिया। उसका नाम था मोहम्मद रहमान।

गाजियाबाद में इन भगोड़ों को अस्पताल में रखा गया। वहाँ जांच के लिए आई नर्सों से इन लोगों ने अश्लील इशारे किये और तो और लोग ये उनके सामने निवस्त्र खड़े हो गये। कई इस्लामी विद्वानों ने इन तब्लीगियों की आलोचना में कहा कि हदीस की गलत व्याख्या मौलाना साद करते हैं। लखनऊ के चर्चित प्रतिष्ठित मौलाना खालि­द फिरंगी महली ने सहधर्मियों से संयम की अपील की है। मौलाना कल्बे जव्वाद को तो इन असभ्य तब्लीगियों ने काफ़िर तक कह डाला।

विचारणीय तो यह भी है कि यदि पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में अब डॉक्टर और नर्सें हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में जाने से इंकार कर रहे हैं तो क्या करें वह ? अपनी इज्ज़त बचाने के लिए किसका सहारा देखें? अब सवाल यह उठता है कि सैकड़ों कोरोना मरीजों की प्राण रक्षा कौन करेगा ?अब एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई । कोरोनावायरस मानवता की उन्नत सभ्यता को खत्म करने के लिये आतुर है, कोई नहीं जानता कब कौन इसके शिकंजे में फंस जाये। खबर तो यह भी है कि जंगली शेर में भी कोरोना होने की खबर है।

सोचो! हम मानवों का प्रकृति यानि धरती से लेकर आकाश तक छेड़छाड़ की कीमत आज हम सबको चुकानी पड़ रही है और जब हम सब उस क्रूर कोरोना के सामने बिना अस्त्र के खड़े हैं। ऐसे में पूरे भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व को अपनी-अपनी नफरतों को त्याग देना चाहिए पर दुखद है कि हम ऐसा नहीं कर पा रहे। क्योंकि इस वैश्विक मुश्किल घड़ी में भी निजामुद्दीन जमात के कुछ लोगों ने डॉक्टरों पर अश्लील हरकतें करके, थूक कर,एलएनजेपी अस्पताल में खुले में शौच कर पुलिस पर पथराव करके तथा प्रशासन के कहने पर भी खुद सामने ना आकर देश के सच्चे भले मुसलमानों को भी शर्मशार कर दिया है। अब सवाल यह उठता है कि कोरोना को मिटाने के बाद हम सब ये नफरतें कैसे मिटायेगें? क्यों गरीब की जाति, धर्म, मजहब तो उसकी भूख है, उसका रोजगार है। इस मामले से पनपी नफरतों की गाज गरीबों पर गिरेगी जो बेहद दर्दनाक होगी।

क्योंकि जमात ने सौहार्द की बुनियाद को ही ध्ववस्त कर दिया है। जिसकी पुष्टि की है स्वास्थ्य मंत्रालय ने और कहा कि तब्लीगी जमात से जुड़े कोरोना के मामले करीब 22 राज्यों में मिले हैं जिनमें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, केरल, बिहार, मेघालय, प. बंगाल, मध्यप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और हरियाणा समेत कुछ और राज्य शामिल हैं। इस लिस्ट में दिल्ली का भी नाम है| देश में खबर लिखे जाने तक कोरोना से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 2,902 है जिनमें से तब्लीगी जमात से संबंधित मामले 1,023 हैं। तब्लीगी जमात के संपर्क में आए करीब 22 हजार से अधिक लोगों को क्वारंटीन किया गया है। 1-3 अप्रैल के बीच देश में कोरोना के 1,162 मामले सामने आए हैं जिनमें 647 तब्लीगी जमात से जुड़े हैं यानी औसत निकालें तो 50 फीसदी से अधिक मामले तब्लीगी जमात से जुड़े सामने आए हैं। में मलेशिया में एक तब्लीगी जमात का आयोजन हुआ था जिसमें दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से कुछ भारतीय सदस्यों ने हिस्सा लिया था और संभवतः इन्हीं सदस्यों की वजह से दिल्ली में आयोजित जमात में कोरोना पहुंचा। 27 फरवरी को, कुआलालंपुरमें भी सेरी पेटालिंग मस्जिद में करीब 16,000 लोग इकट्ठा हुए थे जिनमें से 620 से अधिक लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया। इस आयोजन के बाद लोग कोरोना को मलेशिया से लेकर अपने-अपने देशों में पहुंचे।

गृह मंत्रालय के मुताबिक, 21 मार्च के बाद तक मरकज में करीब 1530 भारतीय नागरिक मौजूद थे। इनमें से तमिलनाडु के करीब 500, असम के करीब 216, यूपी के करीब 156, महाराष्ट्र के करीब 108, मध्यप्रदेश के करीब 107, बिहार के करीब 86, पश्चिम बंगाल के करीब 73, तेलंगाना के करीब 55, झारखंड के करीब 40, कर्नाटक के करीब 40, उत्तराखंड के करीब 30, हरियाणा के करीब 20, अंडमान निकोबार के करीब 21, राजस्थान के करीब 19, हिमाचल प्रदेश, केरल और ओडिशा के करीब 15-15, पंजाब के करीब नौ, जम्मू और कश्मीर दोनों जगहों से करीब सात और मेघालय के पांच लोग हैं। तेलंगाना में जहां मरकज में आए पांच लोगों की मौत हुई वहीं, कश्मीर में एक की जान गई। इस शख्स के चलते राज्य में 855 लोगों को क्वारंटीन किया गया है।तब्लीगी जमात निजामुद्दीन मामले में 960 विदेशियों को ब्लैकलिस्ट और जमात से संबंधित गतिविधियों में शामिल होने के कारण उनका पर्यटक वीजा रद्द कर दिया गया है। गृह मंत्रालय की ओर से दिल्ली पुलिस और अन्य संबंधित राज्यों के डीजीपी को तब्लीगी जमात निजामुद्दीन मामले में 960 विदेशियों के खिलाफ विदेशी अधिनियम 1946 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। 960 लोगों में चार अमेरिकी, नौ ब्रिटिश, छह चीनी, 379 इंडोनेशियाई, 110 बांग्लादेशी, 63 म्यांमार और 33 श्रीलंकाई नागरिक शामिल हैं। किर्गिस्तान 77, मलयेशियाई 75, थाई 65, वियतनामी 12, नौ सऊदी और तीन फ्रांसीसी नागरिकों को भी ब्लैकलिस्ट किया गया है और उनका वीजा रद्द कर दिया गया है। एक अत्यन्त भयावह बात इस तब्लीगी जमात के बारे में यह है कि उसके कई सदस्य कट्टर इस्लामी राष्ट्रों से हैं, ऐजेंसियों के मुताबिक इनके तार आतंकी संगठनों से भी जुड़े हैं।अब सवाल उठता है कि आखिर! देश का सुप्रीम कोर्ट व मोदी सरकार इस संदिग्ध संगठन पर सख्ती क्यों नहीं की रही व इसकी देशविरोधी हरकतों यानि जानबूझकर कोरोना फैलाने, को देखते हुए इसे भारत में ऐसे देेशद्रोही संगठन को पूरी तरह बैन क्यों नहीं कर रही? इस मामले के बाद सोशल मीडिया पर दो पक्षों के बीच नफरती बयानबाजी छींटाकसी देख कर लगता है कि हम सब मिलकर एक दिन इस कोरोनावायरस को जरूर हरा देगें पर कोरोनावायरस से भी खतरनाक यह आग उगलती, दिलों में जड़ होतीं गहरी उतरतीं नफरतों के वायरस को कैसे मिटायेगें?

इधर भारत के एक सौ तीस करोड़ लोगों की जिन्दगी खतरे में है। दूसरी तरफ़ जमानती छिप कर वैश्विक स्तर पर दुनिया के दुश्मन बनने का व नफरतों की आग के पहरी बनने पर क्यों तुले हैं। दुखद है कि बेघर और बेरोजगार हो चुके लाखों गरीबों की चिंता और समाधान की बातों में मिलजुलकर पूरा भारत व भारत सरकार फिक्रमंद है जोकि मीडिया में दिख भी रहा था पर जमात की ख़बरों के बाद गरीबों की पैदल चलने से फटी विमायी की खबरें लुप्त हो गयीं। लोगों को समझना चाहिए कि इस शिकंजे में गरीब, सामान्य, बड़ा आदमी सब परेशान है। वहीं देश के न्यायालय बंद होने से लाखों अधिवक्ता जो रोज का कमाते घर चलाते थे सोचो! उनके खाते में कौन पैसा डाल देगा?

वैसे ही रोज कमाने खाने वालेे पत्रकारों, कुली, बिना दर्ज मजदूरों का क्या होगा? अब तो करोड़ों मामलों की अवधि और लंबित हो गयी। अपना देश जितना बड़ा है उतनी ही बड़ी यहां करोड़ों बेरोजगारों की परेशानियां भी हैं। सरकार भी किन – किन लोगों के आंसू पोछेगी। अच्छा हो कि इस दुखद घड़ी में स्विस बैंक में काला धन रखने वाले स्वेच्छा से अपने धन का सदुपयोग कर लें। इसके अतिरिक्त हम सब भारतीयों का यही कर्तव्य है कि अपने-अपने स्तर पर अपने देशवासियों की यथासंभव मदद को आगें आएं तथा भारत सरकार (शासन – प्रशासन) की गाईड लाइन को फोलो करें और किसी भी तरह की राजनीति का हिस्सा ना बनें व शांति से लॉकडाउन का पालन करें और कृपया अपने घर में ही रहें, सुरक्षित रहें।(न्यूज ऐजेंसियों से मिली न्यूज के मुताबिक)-आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 

Sach ki Dastak

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