वीरांगना महारानी दुर्गावती का 461वां बलिदान दिवस मना

0

सच की दस्तक डिजिटल न्यूज डेस्क चन्दौली

दिन मंगलवार को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार भारतवर्षीय गोंड़ आदिवासी महासभा समिति एवं आदिवासी कल्याण समिति के तत्वाधान में पं.दीन दयाल उपाध्याय नगर स्थित आर्य समाज मंदिर जनपद चंदौली में गोंड वीरांगना महारानी दुर्गावती का 461वां(24 जून 1564)बलिदान दिवस मनाया गया।उपस्थित जनों ने महारानी के तैलचित्र पर पुष्प अर्पण कर श्रद्धांजली अर्पित किया। महारानी को समर्पित आज के प्रबोधन सत्र के विषय आदिवासी समाज के समक्ष सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियां पर अतिथियों ने गंभीर चर्चा की।मुख्य अतिथि प्रो.बीरेद्र कमलवंशी(काशी हिन्दू विश्ववि‌द्यालय,कृषि विज्ञान संकाय)ने कृषि उत्पादन और आर्थिक सशक्तीकरण पर प्रबोधन किया।श्र‌द्धांजली कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ.उमेश चन्द्र ने बताया कि आदिवासी समुदाय,जिसकी जनसंख्या देश में लगभग 8.6% है आज भी सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।ये समुदाय जो मुख्य रूप से वन क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में निवास करते हैं,अपनी सांस्कृतिक पहचान और आजीविका को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।उनको अक्सर सामाजिक भेदभाव और हाशिए पर धकेलने का सामना करना पड़ता है।शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित है। सरकारी योजनाएँ जैसे मिड-डे मील या आयुष्मान भारत,ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पातीं,उत्तर प्रदेश में तो संरचनात्मक उत्पीड़न किया जा रहा है।प्रदेश के गोंड और खरवार जातियों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा है।बलिया जनपद में इनके जाति प्रमाण पत्र का आन्दोलन पिछले 145 दिनों से चल रहा है। इसके अलावा,उनकी भाषा,संस्कृति और परंपराओं को भी मुख्य धारा में कम महत्व दिया जाता है,जिससे उनकी पहचान खतरे में है।आदिवासी समुदाय की आजीविका मुख्य रूप से वन संसाधनों,कृषि और दैनिक मजदूरी पर निर्भर है।वन अधिकार अधिनियम(2006)के बावजूद,कई आदिवासियों को अपनी जमीन और वन संसाधनों पर अधिकार नहीं मिला। सोनभद्र जनपद में जमीन के अधिकार के हजारों केस लंबित है।औ‌द्योगीकरण और खनन परियोजनाओं ने उनकी जमीन छीन ली,जिससे मानसिक प्रताड़ना, विस्थापन और बेरोजगारी बढ़ी,साथ ही कौशल विकास और रोजगार के अवसरों की कमी उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर करती है।आदिवासियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है।हालांकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं, लेकिन वास्तविक निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सीमित है।स्थानीय शासन में जैसे पंचायती राज, उनकी आवाज अक्सर दबा दी जाती है।प्रशासनिक सेवाओं में भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी उनकी भागीदारी न के बराबर है।इन चुनौतियों का समाधान तभी संभव है जब सरकार और समाज मिलकर शिक्षा, स्वास्थ्य,रोजगार और राजनीतिक भागीदारी के अवसर बढ़ाएँ।आदिवासियों के अधिकारों को लागू करने और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता है।केवल समावेशी विकास ही उनके उत्थान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।कार्यक्रम का संचालन रवि शंकर प्रसाद और धन्यवाद प्यारेलाल गोंड ने किया।कार्यक्रम की सुचारू व्यवस्था श्रीकृष्ण गौड(प्रदेश सचिव)के नेतृत्व में हुआ।बलिदान दिवस कार्यक्रम में महारानी को श्रद्धांजली अर्पित करने हेतु सुरेश प्रसाद,पंकज कुमार, संतोष कुमार,सुभाष साह,संजीव गौड़,अरुण कुमार वर्मा,विकास वर्मा, घुरहू प्रसाद,अवधेश प्रसाद,प्रेम शंकर प्रसाद, सुराहू राम आदि लोग उपस्थित रहे।कार्यक्रम का संचालन रवि शंकर प्रसाद(जिलाध्यक्ष)और धन्यवाद प्यारेलाल गोंड (प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य)ने किया।

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x