मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना ठीक नही

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सच की दस्तक न्यूज डेस्क 

पत्रकार यदि अग्नि धर्मा है तो उसे सूर्य धर्मी साहित्यकार भी होना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया की स्वतंत्रता का औचित्य है और सच की स्वतंत्रता पर अनावश्यक या राजनीतिक अंकुश लगाना नहीं चाहिए। उक्त बातें सच की दस्तक द्वारा आयोजित हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आयोजित वर्चुअल संगोष्ठी में राष्ट्रीय मासिक सच की दस्तक के अभिभावक  वरिष्ठ रंगकर्मी साहित्यकार के के श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा। उन्होंने कहा कि मुझे व्यथा होती है जब कोई भी प्रेस या मीडिया कर्मी अपहरण आत्मघाती हमला या उत्पीड़न का शिकार होता है। वही सच की दस्तक कि समाचार संपादक व साहित्यकार लेखिका आकांक्षा सक्सेना ने कहा कि पत्रकार के माध्यम से ही जनता की बातों को सरकार के समक्ष रखा जाता है और सरकार की बातों को जनता तक पहुंचाया जाता है लेकिन यदि माध्यम पर ही आरोप प्रत्यारोप कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर पत्रकारिता जगत के लिए घातक होगा। इस अवसर पर सच की दस्तक के प्रधान संपादक बृजेश कुमार ने कहा कि पत्रकार क्रांतिकारी कलम का सिपाही अहिंसक होता है। लोगो की बातों का सरल रूप से रख कर सरकार की बात जनता को जनता की बात को सरकार तक पहुचाता है। वही  खेल संपादक मनोज उपाध्याय ने कहा कि पत्रकारों पर भी हमले हो रहे हैं और उनकी सच्चाई को दबाने का प्रयास किया जा रहा है जो लोकतंत्र व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। वही प्रसार प्रभारी अशोक कुमार ने कहा कि पत्रकार समाज का आईना होता है। उसमें सभी की तस्वीर साफ दिखाई पड़ती है। इस वर्चुअल संगोष्ठी में जितेंद्र मिश्रा, डॉ अशोक मिश्र सत्यनारायण प्रसाद, मिथिलेश सिंह, मृदुला श्रीमाली आदि लोग मौजूद थे।
इसी क्रम में समाज सेविका डॉ सरिता मौर्य ने हिंदी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारों को बधाई देते हुए कहा कि आज पत्रकारिता की वजह से ही लोगों को यह समझ में आ गया है कि उनकी आवाज में दम है, लोग भी इतने सक्षम हो गए हैं जितने पहले कभी नहीं थे। हिन्दी पत्रकारिता ने भारतीय राजनीति के क्षेत्र में खेल ही बदल कर रख दिया है, और इसका असर भविष्य में और भी ज्यादा बढ़ने वाला है, लोग जागरूक हो गए हैं और यह सब पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की ही देन है। समाज में इन्हें चौथे स्तम्भ के रुप में पहचान मिली है। कोविड-19 के दौरान लोग घरों में थे, लेकिन पत्रकार ही ऐसे व्यक्ति थे जो घरों से बाहर निकल कर बाहर के वातावरण, विषम परिस्थितियों, समाज में घटित होने वाली घटनाओं को उन्होंने अपने लेखनी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। हाल ही में कोविड-19 के दौरान पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों के मृत्यु पर योगी सरकार द्वारा उनके परिवार को मुआवजा भी देने की घोषणा की गई है। जिससे कि पत्रकारों को पत्रकारिता करने के लिए एक बल मिलेगा। अंत में डॉ मौर्य ने पुनः हिंदी राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारों को बधाई देते हुये कहा कि आज वह समाज में जो भी कुछ है वह हिंदी पत्रकारिता की ही देन है नहीं तो वह भी एक छोटे से गांव में गुमनाम की जिंदगी व्यतीत कर रही होती।

Sach ki Dastak

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MD IQBAL ABID
2 years ago

Yes, this topic really needs attention. The journalists should have independence and safety.

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