कविता : कैंडिल नाइट ____लेखक रंगनाथ द्विवेदी

बहुत उदास है
आज हमारी तुम्हारी मुहब्बत की,
कैंडिल नाईट।
मैं वहीं बैठी हूँ ठीक सामने,
बस वह जगह खाली है
जहां तुम बैठते थे,
आज उदासी से भर गई
मेरे अंतस की जिंदगी,
मैं टूट रही हूँ!
मेरे संग बीत रही है,
बस तुम्हारी खूबसूरत यादों की
कैंडिल नाईट।
शायद कहीं चूक गये हम,
रिश्तों में गलतफहमियां समा गई !
तुम अलग हो गये मैं अलग हो गई,
अब तो अक्सर
डिनर मेज पर ही सजा
स्वंय को निहारता रहता है,
और मैं कुर्सी पे बैठी यूँ ही,
गुजारती रहती हूँ पल – पल
अपनी कैंडिल नाईट।
गर गुंजाइश हो तो लौट आओ।
एक मर्तबा ही सही माफ करने
क्योंकि ऐ! रंग कहीं ऐसा न हो,
कि तेरा इंतजार करते-करते,
हमेशा के लिये बुझ न जाये,
हमारी ये कैंडिल नाईट।
लेखक—–रंगनाथ द्विवेदी
जज कालोनी,मियाँपुर
जिला–जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)