अमेरिका का दावा : गुमनामी बाबा ही थे राष्ट्रनायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस –

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A leading American handwriting expert has concluded that Netaji Subhas Chandra Bose lived in India for several decades after Independence, under the identity of a reclusive ascetic, Gumnami Baba, claims a new book.

आजादी के नायक रहस्यमयी शख्सियत नेताजी बोस पर आज तक खोज जारी है कि नेताजी बोस के साथ क्या हुआ था? क्या वे विमान दुर्घटना के बाद भी जीवित देखे गये थे? क्या लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने अंतिम समय में उन्हीं से बात की थी? ऐसे हजारों सवाल हैं जो पूरी दुनिया जानना चाहती है कि ऐसे महान विद्वान शख्सियत को आखिर! यूं गुमनाम क्यों होना पड़ा? क्या कारण था जो नेहरू को बीस साल नेताजी की जासूसी करायी गयी?

इन्हीं सवालों के जवाब देती नयी किताब ने जोरदारा दावा किया है कि यह बुलंद शख्सियत कोई और नहीं बल्कि अयोध्या में रहने वाले गुमनामी बाबा ही थे ..

नई किताब में दावा किया गया है कि गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस थे और वह सालों तक अपनी पहचान छिपा कर हमारे बीच रहे। इस किताब में दावा किया गया है कि अमेरिका के एक हैंडराइटिंग एक्‍सपर्ट ने सुभाषचंद्र बोस और गुमनामी बाबा की हैंडराइटिंग की जांच की और पाया कि ये एक ही शख्‍स की हैंडराइटिंग है। हैंडराइटिंग एक्‍सपर्ट कार्ल बैग्‍गेट को दस्‍तावेजों की जांच करने का 40 साल का अनुभव है। दस्‍तावेजा जांचने के लगभग 5000 मामलों में उनकी मदद ली जा चुकी है। इतना लंबा अनुभव होने के बाद अब वह पहली नजर में ही हैंडराइटिंग जांच लेते हैं। कार्ल ने जांच के बाद पाया है कि सुभाषचंद्र बोस देश की आजादी के कई साल बाद तक अपनी पहचान छिपा कर रहे, क्‍योंकि गुमनामी बाबा और बोस की हैंडराइटिंग शत-प्रतिशत मेल खाती है। इसका मतलब ये हुआ कि गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस थे।

 

भारत में काफी लंबे समय से यह बहस चली आ रही है कि गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में कोई न कोई संबंध जरूर था। इसीलिए अमेरिकी हैंडराइटिंग एक्‍सपर्ट कार्ल से संपर्क किया गया। कार्ल का अनुमान अभी तक कभी गलत साबित नहीं हुआ है। वह 40 सालों से इस पेशे में हैं। किताब कमनड्रम: सुभाष चंद्र बोसेज़ लाइफ आफ्टर डेथ से जुड़े दस्‍तावेजों के दो सेट कार्ल को दिए गए। कार्ल को नहीं बताया गया था कि ये किनकी हैंडराइटिंग है। कार्ल ने दोनों सेट की जांच करने के बाद पाया कि ये एक ही शख्‍स की हैंडराइटिंग है। इन्‍हें एक ही शख्‍स के द्वारा लिखा गया है।

ये सुनकर सभी लोग हैरान रह गए। इसके बाद जब कार्ल को यह सच्‍चाई बताई गई कि इनमें से एक दस्‍तावेज नेताजी सुभाषचंद्र बोस के द्वारा लिखा गया था और दूसरा गुमनामी बाबा के हाथों, तो वह भी हैरान हो गए। हालांकि, ये बात सुनने के बाद भी वह अपनी बात पर अडिग रहे। कार्ल ने दोनों दस्‍तावेजों की जांच करने के बाद एक रिपोर्ट दी, जिस पर उन्‍होंने हस्‍ताक्षर भी किए हैं। इस रिपोर्ट में उन्‍होंने यही लिखा है कि गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाषचंद्र बोस कोई दो शख्‍स नहीं थे, क्‍योंकि दोनों दस्‍तावेज एक ही शख्‍स द्वारा लिखे गए हैं।

 

कार्ल को अमेरिकन ब्‍यूरो ऑफ डॉक्‍यूमेंट एग्‍जामिनरर्स ने भी प्रमाणित किया है। उन्‍होंने जिन पत्रों की जांच की वो चंद्रचूड़ घोष और अनुज धर की हाल ही में आई किताब ‘कमनड्रम: सुभाष चंद्र बोसेज़ लाइफ आफ्टर डेथ’ से लिए गए हैं। ये 130 पत्र गुमनामी बाबा द्वारा 1962 से 1985 के बीच पबित्र मोहन रॉय को लिखे थे। रॉय इंडियन नेशनल आर्मी में रहे और नेताजी के हमराज कहे जाते थे। किताब में दावा किया गया है कि रॉय काफी समय तक गुमनामी बाबा के संपर्क में रहे थे। किताब में लगभग 1000 पेजों के दस्‍तावेजों को शामिल किया गया है। ये दस्‍तावेज किताब के लेखकों को जस्टिस मुखर्जी कमिटी से आरटीआइ के जरिए मिले हैं।

बता दें कि फैजाबाद जिले में रहने वाले साधु को पहले लोग भगवनजी और उसके बाद में गुमनामी बाबा के नाम से जानते थे। 1945 से पहले नेताजी से मिल चुके लोगों ने गुमनामी बाबा से मिलने के बाद दावा किया था कि वही नेताजी थे। मुखर्जी कमिशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फैजाबाद के भगवनजी या गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाषचंद्र बोस में काफी समानताएं थीं। अयोध्या के राम भवन के मालिक शक्ति सिंह के मुताबिक, गुमनामी बाबा ने जिंदगी के आखिरी तीन साल 1982 से 85 वहां गुजारे। दावा किया जाता रहा है कि भूमिगत रहने वाले बाबा असाधारण थे और कुछ लोगों की मान्यता है कि उनके रूप में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भूमिगत जीवन व्यतीत कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि फैजाबाद रामभवन में प्रवास के दौरान 16 सितंबर, 1985 को गुमनामी बाबा का निधन हो गया और इसी के साथ ही बाबा को नेताजी बताने की दावेदारी बुलंद हुई।

 

गुमनामी बाबा ही नेताजी थे, इसकी पुष्टि कई साल पहले भी हो चुकी है। जब मृत्‍यु के बाद गुनमामी बाबा का सामना खंगाला गया, तो उसमें जैसा नेताजी पहनते थे उसी तरह का गोल फ्रेम का एक चश्मा, नेताजी जेब में जिस तरह की घड़ी रखते थे उस तरह की एक रोलेक्स घड़ी के अलावा कुछ खत मिले, जो नेताजी की फैमिली मेंबर ने लिखे थे। एक झोले में बांग्ला और अंग्रेजी में लिखी 8-10 साहित्यिक किताबें मिलीं। दूसरे बक्से में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फैमिली फोटोज मिलीं। इसके साथ ही तीन घड़ियां- रोलेक्स, ओमेगा और क्रोनो मीटर के अलावा तीन सिगारदान मिले। एक फोटो में नेताजी के पिता जानकीनाथ, मां प्रभावती देवी, भाई-बहन और पोते-पोती नजर आ रहे हैं।

Sach ki Dastak

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