संविधान संशोधन जरूरी | हम भारतीय नागरिक” हैं, “हम भारत के लोग” नहीं* ?

संविधान में दर्ज – “लैंगिंक समानता के अधिकार व कर्तव्य” के अनुपालन में, वर्तमान भारत के प्रधानमंत्रीजी से, इनके दुरभि साझीदार राष्ट्र के पुरूष जाति के मुखिया – वर्तमान भारत के राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी को स्वयं ही स्वेच्छा से अपने कर्तव्यपालन के तहत, देश के महिला एवं बाल जाति के मुखिया – भारतीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश साहब को अपने सर्वोच्च मुख्य न्यायालय में हासिल करना चाहिए।
जिससे कि संविधान की प्रस्तावना में दर्ज “हम भारत के लोग” के स्थान पर “हम भारतीय नागरिक” दर्ज हो सके। प्रत्येक आयु के समस्त महिलाओं एवं पुरूषों के सभी प्रकार के आई.डी.प्रूफ में दर्ज उनके नाम के साथ उनके माता व पिता का नाम तथा उनके उत्ताधिकारित जातीय धर्म व कर्म का नाम एक साथ समान रूप से दर्ज हासिल हो सके और वे भारतीय नागरिक सिद्ध हो सके। जिससे कि वे किसी भी स्वःदेशी अथवा विदेशी शासन के आधीन न रहकर, अपने अनुशासन के स्वाधीन रह सके। उनकी जीविका व जीवन – निर्विवादित न्याययुक्त व निर्बाधित अपराधमुक्त सुखमय व्यतीत हो सके।
इस वास्ते वर्तमान भारत के राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी को स्वयं ही स्वेच्छा से अपने कर्तव्य का अनुपालन करना चाहिए। उन्हें दुर्योधन की भांति – महिला एवं बाल विरोधी बनने से बचना चाहिए। भारत में “भारतीय नागरिकों” को ही जीने का अधिकार हासिल है, “भारत के लोगों” को नहीं। इसलिए संविधान संशोधन जरूरी है।