लोगों के घर फिर नहीं जाएंगे ‘महाबली’, जानिए क्यों?

तिरूवनंतपुरम। केरल की पौराणिक कथाओं के अनुसार असुर राज महाबली को भगवान विष्णु से हर साल ‘तिरू ओणम’ दिवस पर अपनी प्रजा से मिलने का वरदान मिला था। उत्तरी केरल के मालाबर क्षेत्र में ओणम के अवसर पर उसी वेशभूषा के साथ गांव के हर घर में जाते हैं, जहां पर उनका पारंपरिक तौर पर स्वागत होता है। इसके बदले वो हर किसी को आशीर्वाद देते हैं। लेकिन कोरोना की वजह दूसरे वर्ष भी दशकों पुरानी प्रथा नहीं हो पाएगी।
हरे-भरे ग्रामीण इलाकों और धान के खेतों से गुजरते हुए भारी टोपी पहने और पीतल की घंटी बजाने के अलावा हाथ में ‘ओलक्कुड़ा’ (ताड़ के पत्ते की छतरी) लिए ऐसे कलाकार ओणम के दौरान अक्सर दिखते हैं। ‘ओनापोट्टन’ के रूप में प्रसिद्ध कलाकार महाबली का लोक प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक देवता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
शुभ माना जाता है महाबली का आशीर्वाद
स्थानीय मान्यता के अनुसार मलयालम महीने चिंगम के उथराडोम और तिरू ओणम के दिनों में ओनापोट्टन का घर आना और आशीर्वाद देना शुभ माना जाता है। अनुसूचित जाति में आने वाले मलय समुदाय के सदस्य लोक चरित्र के रूप में तैयार होते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए लोगों के घरों में जाते हैं।
एक कलाकार बाबू थलप्प ने बताया कि यह लगातार दूसरा वर्ष है जब हम ओणम के मौसम में ओनापोट्टन के रूप में तैयार नहीं हो रहे हैं। मेरा बेटे और मेरे भाई का बेटा भी इस कला के लिये तैयार होते थे। उन्होंने कहा कि ओणम को याद करना उन लोगों के लिए एक बड़ी पीड़ा है जो परंपरागत रूप से वर्षों से इस चरित्र को निभा रहे हैं।
हर घर जाते हैं ओनापोट्टन
उन्होंने कहा कि उनके पास इसे छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है क्योंकि कुछ जोखिम भी है। जब ओनापोट्टन अपने पूरे मेकअप और रंगीन परिधानों में प्रत्येक घर जाते हैं, तो कई लोग विशेष रूप से बच्चे मनोरंजन के लिए उनके साथ चलते हैं लेकिन महामारी के मद्देनजर यह अच्छा नहीं है।
उन्होंने कहा कि घरों में इस महाबली का स्वागत बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा दीप जलाकर किया जाता है और वर्तमान परिस्थिति में आवश्यक सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं किया जा सकता है।
किसी से बात नहीं करते महाबली
बच्चों की कहानी की किताबों में ‘असुर’ राजा रेशम की पोशाक, शाही आभूषण और मुकुट में होते हैं लेकिन मालाबार में इन ‘महाबली’ को कमर के नीचे एक सामान्य लाल रंग का कपड़ा लपेटे हुए और हाथों में ताड़ के पत्ते की छतरी लिए हुए देखा जा सकता है। इस लोक चरित्र का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि महाबली के रूप में तैयार होने के बाद कलाकार किसी से बात नहीं करते।
पोट्टन का अर्थ स्थानीय में बोलने में अक्षम व्यक्ति होता है। मूल रूप से कन्नूर जिले के रहने वाले बाबू ने कहा कि ओनापोट्टन अपनी यात्रा के दौरान या घरों में जाते समय एक भी शब्द नहीं बोलते हैं, चलते समय वह अपने पीतल की घंटी बजाते हैं ताकि लोगों को उसके आगमन के बारे में पता चले और जब वे घंटी बजने की आवाज सुनते हैं तो लोग उन्हें अपने घरों में बुलाने की व्यवस्था करते हैं। ऐसे कलाकार के साथ आमतौर पर दो अन्य कलाकार भी होते हैं जो ड्रम और झांझ बजाते हैं।
PM मोदी ने ओणम की बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को ओणम की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि सकारात्मकता, भाईचारे और सद्भाव से संबंधित पर्व ओणम के विशेष मौके पर बहुत शुभकामनाएं। मैं सभी के अच्छे, स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना करता हूं।
कोरोना महामारी की वजह से देशवासी पारंपरिक तौर पर त्योहार नहीं मना पा रहे हैं। वहीं केरल में कोरोना के मामलों में भी इजाफा हो रहा है। ऐसे में दशकों पुरानी परम्परा को नहीं इस बार भी नहीं मनाया जा रहा क्योंकि इसकी वजह से सामाजिक दूरी जैसे नियमों का उल्लंघन होने का खतरा बना रहता है।