मेरी आत्मकथा : संघर्ष जारी है।✍️ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
1- पहला अध्याय –
दोस्तों! मुझे रोज कई मेल, मैसेज मिलते रहते हैं कि आप अपने बारे में भी बताओ… सोचा! बता ही दूं.. आजआपसे आपबीती शेयर कर रही हूँ। ऐसी बात करने का कोई मन तो नहीं और लोग क्या कहेंगे का कोई डर पर सोचा कि इसी बहाने अपने जैसी बहनों को अगर हमारे शब्दों से थोड़ी सी भी हिम्मत मिली तो हमारा लिखना सार्थक हो जायेगा। मुझे रोज बहुत मेल मिलते हैं कि मुझे लिखने की शक्ति कहाँ से मिलती है? आप सभी के क्यों और कैसे का जवाब आज मैं अपनी आपबीती से जरूर दूँगी तो दोस्तों! जब से याद सम्भाली तब से लिख रही हूँ। बचपन में जब सामने किसी दुखी, बीमार,गरीब विकलांग भिखारी को देखती तो दिल रो पड़ता था। क्योंकि उन दिनों हम भी बहुत गरीबी से जूझ रहे थे और बड़ी मुश्किल से गुजर होती थी तो किसी जरूरतमंद की कैसे मदद करते ? मगर मन बहुत करता कि उनको सीने से लगा लूँ। फिर कुछ सोचकर , एक काम करती कि कॉपी पर एक कहानी लिखती, उनको कहानी का पात्र बनाती और खुद को सुपर हीरो बनाकर उनको ढ़ेर सारी खुशियाँ दे डालती और उनको अमीर और अच्छा इंसान बना देती, लिख डालती। एक दिन एक बहुत बीमार बाबा को खाना तो दे आयी पर उनकी खाँसी के लिये मेरे पास कुछ नहीं था । मैं तुरन्त घर आयी और कहानी में मैंने उन बाबा को बिलकुल ठीक कर दिया। बचपन ही था जो मुझे उस वक्त ठीक लगा सो कर दिया। लगभग दो-तीन दिन बाद वो बाबा दिखे और बोले बेटा तेरे टिफिन के खाने में जादू था मैं ठीक हो गया और हाँ रात को सपने में कोई आया जिसने मुझे सीने से लगा लिया भगवान थे शायद। मैं देखो बिल्कुल ठीक हो गया। यह बात सुनकर मैं चौंक गयी बिल्कुल मेरी कहानी वाला सुुपर हीरो जो सीने से लगाकर हर दर्द से मुक्त करने वाला था। ताज्जुब था कि जो लिखा वो सच हो गया। ऐसा कई बार हुआ तो एक अनजाने डर से कहानी लिखना बन्द कर दिया। बचपन में ऐसी बहुत कुछ अजीब चीजें देखीं जिन्हें सोचकर बाद में डर जाती थी पर उन चीजों का बिना प्रमाण उल्लेख करना अंधविश्वास को बढ़ावा देना होगा इसलिए यह बात यहीं छोड़ती हूँ….
आपबीती –
समय बीता और जब लोगों की बनावटी मुस्कुराहट देखती तो मन नही मानता कलम लिखने पर मजबूर हो जाती। तो फिर से लिखना शुरू किया और बहुत लिखा।ताज्जुब था कि मेरे ही एक परिवारी जन को मेरे लिखने-पढ़ने से जबरदस्त ईर्ष्या और जलन थी। उनको हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं इस गंवार लड़की का सारी दुनिया में नाम न हो जाये। कहीं यह हमसे ज्यादा धनवान न हो जाये और उनकी इस चिढ़ ने कब नफरत का रूप धारण कर लिया ये तो उनको भी शायद पता नहीं चला। फिर तो उन पर मानो राहू ही सवार हो गया और एक दिन उनकी ये जलन सारी सीमाएं लांघ गयी। फिर कहते हैं न भगवान बुरे लोगों को भी मौका देता है जिससे उनका पाप का घड़ा पूरा भर जाये बस वही मौका भगवान ने उन्हें आज दे दिया था जब मेरे माता-पिता की तबियत इतनी खराब हो गई कि वह कानपुर हैलट में दिखाने गये और यहां इन लोगों के दिलों में घी के दिये जल गये। वहीं इन्हें मालूम हुआ कि मेरा बी. एस. सी तृतीय वर्ष कैमिस्ट्री का लास्ट प्रैक्टिकल है। उन्होंने पूरी योजना बना ली कि इसके साथ कुछ ऐसा करो कि यह जीवन में कभी न लिख सके और इसका जीवन बर्बाद हो जाये। बस वही मौका देख उन्होनें भगवान के प्रसाद में नशे की दवा मिलाकर अपना मन भी पूरा कर लिया। मैं पुरानी टूटी कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाई कर रही थी। तभी वह मेरे पास आकर मुझे भगवान का प्रसाद देते हुए बोलीं भगवान करें तेरा प्रेक्टिकलवा अच्छा जाई। हमने सोचा रोज जली-कटी सुनाने वालीं, आज प्रसाद देकर मेरे भविष्य की शुभकामनाएं क्यों दे रहीं पर उन्होंने जैसे ही मेरे सिर पर हाथ रखा कि मैं मोम की तरह पिघल गयी। सच ही कहा है कहने वालों ने कि टच थैरेपी रामवाण औषधि है जिसमें बहुत दम होता है। वहीं तीर मुझ पर भी उनका बिल्कुल सटीक आ लगा और वह प्रसाद मैंने उनके सामने खा लिया। क्योंकि सचमुच मैं ईर्ष्या की हद से बिल्कुल अनजान थी। बस फिर क्या था मैं हल्के बेहोशी में गोता खाने लगी। कि उन दोनों ने मुझे उसी कुर्सी पर आकर जकड़ लिया एक ने मुंह दबाकर कपड़ा मुंह में ठूँस दिया कि मेरी आवाज़ बाहर न निकले और दूसरी ने अपने पांव से मेरा पांव दबा रखा था कि मैं हिल न सकूं। तभी अचानक मैं कुछ सोच पाती कि उन्होंने नये ब्लैड मेरे हाँथ की नश में स्पीड से मारना शुरू कर दिया। मैं हल्के नशे मैं थी पर साफ दे सकती थी कि मेरा पूरा हाथ लहुलुहान, रक्तरंजित हो चुका था।
उन्होंने मुझे मारने का पूरा प्रयास कर डाला और कहने लगीं कि मर गयी तो कह देंगें होगा किसी लड़के के साथ चक्कर-मक्कर। बाद में बदनामी भी ब्याज में होगी इसके बाप की, बड़ी नाक लिये फिरता है कि उसकी बेटी बड़ी होकर उसका नाम रोशन करेगी। जब जिंदा बचेगी तो करेगी न। मैं उनकी नफरत में डूबी इन बातों से बुरी तरह सहम गयी थी।
मैं अपना रक्तरंजित हाथ देख बुरी तरह घबरा गयी कि आखिर! मेरा दोष क्या है? यही कि मेरे गरीब माता-पिता मुझे पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाना चाहते थे। मैंने सोचा कि इस तरह तो नहीं मर सकती। मैं मेरी स्वंय रक्षा करूंगी और मैने नारायण का नाम लिया और पूरी ताकत इकठ्ठा करके उन्हें धक्का दिया। बड़ी मुश्किल से मैं नारायण नाम की शक्ति को मन में ले कर बाहर की तरफ़ भागी। और दूर भैंस के बाड़े में जा छिपी तब वहां छिपे हुये हमने देखा कि वो दोनों नफरत की आग में इस कदर अंधी हो चुकी थीं कि उन्होनें मेरे कैमिस्ट्री प्रेक्टिकल की फाइल समेत हमारी लिखीं हुई रचनाओं (कहानी, कविताएँ) की पूरी सौ नोटबुक में मिट्टी का तेल यानी कैरोसिन डालकर आग में स्वाहा कर डालीं। मैं दूर खड़ी रोते हुए सोच रही थी कि अब मैं इतनी श्रेष्ठ कहानियाँ और कविताएँ जीवन में कभी दोबारा नहीं लिख पाऊंगी। वो नोटबुक नहीं मेरी आत्मा का संगीत था जिसको अग्नि देवता को पूरी तरह भेंट किया जा चुका था। ये वो दु:ख था जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी । उसी समय मुझे बहुत तेज लघुशंका हुई तो आवाज़ को दबाते हुए पुराने छोटे मटके में मैंने लघुशंका की ओर करते हुए सोच रही थी कि अगर मैं भी इस नफरत की आग में कूद पड़ू पुलिस को रिपोर्ट कर दूं जिनकी ये दोनों हकदार हैं तो क्या कल का मैं प्रेक्टिकल सुकून से दे सकूंगी? दो रास्ते है या मैं थाना अदालत करूं या फिर मैं अपनी पढ़ाई पूरी करूं जिसके कारण ये हाथ काटा गया है। मैंने निर्णय लिया मुझे इनकी साजिश का शिकार नही होना है मुझे पढ़ना है हर हाल में पढ़ना है। मैंने सोचा कि इन दोनों की रिपोर्ट हुई तो इनके छोटे-छोटे बच्चों का बचपन बिगड़ जायेगा, इंसान की जान और सम्मान से बड़ा कुछ नहीं होता शायद नफरत और बदला भी नहीं। हम बुराई से दो-दो हाथ करने में अपना समय बर्बाद नहीं करेगें बल्कि हम किनारा करेगें। मां से कहेगें कि कहीं किराये का एक कमरा सुकून का देख लें क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर हो गया है।
बस यही सब सोचकर हमने उन दोनों को हृदय से माँफ कर दिया ।क्योंकि मैंने सोचा कि माँफ कर देने से मेरी पढ़ाई-लिखाई की यात्रा का मार्ग अवरूद्ध ना हो। माफी में शांति है और शांति ही सही हल था,उस समय।
बस दोस्तों! मेरे शांति के हथियार के सामने उनके मनसूबे कामयाब न हो सके। फिर हमने वो स्थान छोड़ दिया और किराये के घरों में भटकते रहे जहां भी उन बुरे लोगों ने कसर नहीं छोड़ी और हमारे यहां चोरी करवा दी गयी। चोरी में केवल हम सब के सर्टिफिकेट चोरी हुये कि हम लोग जीवन में कभी कुछ न बन सकें, बड़ी मुसीबतों को झेलते स्कूल-स्कूल सर्टिफिकेट की फोटोकॉपी लेकर घूमते हुये सर्टिफिकेट दोबारा प्राप्त हो सके।
इतना सब होने के बावजूद हमारा लक्ष्य था शिक्षा हासिल करना बस। हमने कभी बदले की भावना को खुद पर हावी न होने दिया और उस दिन खून में सने हाथ पर रूमाल बाँधकर कैमिस्ट्री का प्रेक्टिकल दिया और फाइल न होने पर कुछ नम्बर कटे पर वायवा सनाल – जवाब में अच्छे नम्बर भी मिले और मैं सफल हुई ।दोस्तों! विपरीत परिस्थितियों हमने कभी भी लिखना बन्द नहीं किया। और आज भी लिख रहीं हूँ ।मैं यही कहूँगी कि जब कटा हाँथ तो और भी सध गया हाँथ ।क्योंकि दर्द भी नहीं जख्म भी नहीं हाँ ये निशाँन हैं जो प्रेरणा बन गये कि लिखते रहो । अरे!हाँथों में रेखायें तो सबके होतीं हैं । हमारे तो कलाई में भी रेखायें बन गयीं। ये तो ढ़ेर सारी रेखायें हैं पर शांति की अपार सम्भावनाओं की। ये रेखायें हमारी ढ़ेर सारी वैचारिक क्षमतायें हैं जिसको कह सकते हैं सकारात्मक ऊर्जा की रेखायें।
हम यही कह सकते हैं कि आज जो मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट है वो मेरे इन्ही प्रिय विरोधियों के कारण है । अगर कभी जीवन में सफल होतीं हूँ तो सफलता का पहला श्रेय मेरे प्रिय विरोधियों कसम से आपको ही जाता है। बस उस दिन का इंतजार है जब हम भी शुरूवात करेगें एक शुभ दिन की यानि शुभ विरोधी दिवस (हैप्पी इनेमी डे)की जिसमें बतायेगें कि जीवन की बड़ी सफलताओं में विरोधियों का अहम योगदान होता है। मेरे प्रिय विरोधियों मैं आपको हर-पल याद रखती हूँ।
दोस्तों ! हमेशा याद रखो कि हमारे जीवन में दु:ख किसी गुरू से कम नही और दर्द ही हमारे सच्चे अध्यापक सिद्द होते हैं|
यह मेरी आत्मकथा का सिर्फ़ एक अध्याय है और संघर्ष जारी है।आप सभी का ससम्मान धन्यवाद 🙏💐
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका वाराणसी उत्तर प्रदेश