अब होगी मच्‍छरों की ‘नसबंदी’

0

नई दिल्‍ली: मच्‍छरों ने डेंगू ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा रखा है. इस समस्‍या से देश का शायद ही कोई हिस्‍सा होगा, जो इससे अछूता हो. मच्‍छरों के कारण कई घातक बीमारियां फैलती हैं, जिससे हराजों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं. इन मच्‍छरों की रोकथाम करने के लिए न जाने कितने उपाय किए गए लेकिन इनकी संख्‍या है कि घटने के बजाए बढ़ती ही जाती है. पर अब लगता है कि वैज्ञानिकों ने इन मच्‍छरों के सफाए की ठान ली है. ये वैज्ञानिक मच्‍छरों की नसबंदी के लिए रिसर्च कर रहे हैं. ये एक दवा बना रहे हैं, जो इन मच्‍छरों की तेज गति से होने वाली पैदावार पर लगाम लगाएगी.

इस बाबत दिल्ली सरकार की विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही चीन का दौरा करने जा रही है। खास बात यह है कि इस तकनीकी में जेनेटिकली मोडिफाइड मेल (विशेष ढंग से विकसित किया गया नर मच्छर) मच्छर को मादा एडीज मच्छर से प्रजनन कराया जाएगा। नर मच्छर से संसर्ग के बाद मादा मच्छर की प्रजनन क्षमता खत्म हो जाएगी और इस तरह से डेंगू वाहक एडीज मादा मच्छर का प्रजनन रूकने की संभावना जताई जा रही है।
फिलहाल चीन के ग्वांगझू नामक प्रांत में इस तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है। चीन के अलावा ब्राजील और मलेशिया में भी इस तकनीकी को अपनाने का प्रयास किया जा रहा है। यदि दिल्ली सरकार इस योजना में सफल होती है तो यह भारत में पहली बार इस तरह की तकनीक का उपयोग किया जाएगा। विशेषज्ञों की टीम अगले सप्ताह जाएगी। दिल्ली सरकार के प्रवक्ता नागेंद्र शर्मा का कहना है कि अगले महीने डॉक्टरों की एक टीम चीन का दौरा करेगी।

प्रोटीन को किया ब्लॉक

यूनिवर्सिटी आफ एरीजोना के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एक ऐसा महत्वपूर्ण प्रोटीन खोज लिया है जो मच्छरों के अंडों के जीवन के लिए बहुत जरूरी है। यही वह प्रोटीन है जिससे मच्छरों के भ्रूण जीवित रहते हैं और खुद का विकास कर पाते हैं। शोध में मच्छरों के इस प्रोटीन को ब्लॉक कर दिया गया था जिससे जितने भी मच्छरों ने अंडे दिए वह पूरी तरह से डिफेक्टिव थे तथा इन अंडो के अंदर पल रहे भ्रूण अंदर ही मर गए। इस शोध की सफलता के बाद अमेरिका के वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें एक ऐसे वायरस का निर्माण करना है जो केवल मच्छरों के इस प्रोटीन पर टारगेट करें और उनका विकास से खत्म हो जाए। मधुमक्खियां बहुत लाभदायक होती है जिनसे हमें शहद प्राप्त होता है ऐसे में डॉक्टर ऐसे ड्रग्स का निर्माण करेंगे जो केवल मच्छरों के लिए हानिकारक हो क्योंकि कई मायनों पर यह मधुमक्खियों को भी घाटा पहुंचा सकते हैं।

लंदन के इंपीरियल कॉलेज की फ़्लेमिनिया कैटेरुचिया ने अपने छात्र जैनिस थैलायिल की मदद ली जिससे नर मच्छरों के शुक्राणु तो ख़त्म किए जा सकें मगर वह फिर भी स्वस्थ रहें।

जीन ख़त्म

थैलायिल ने 10 हज़ार मच्छरों के भ्रूण में आरएनए का एक ऐसा छोटा हिस्सा डाला जिससे उनमें शुक्राणु का विकास करने वाला जीन ख़त्म हो गया। इतनी मेहनत के बाद शोधकर्ता 100 शुक्राणु विहीन मच्छरों के विकास में क़ामयाब हो गए और ये भी पता चला कि मादा मच्छर को ऐसे मच्छरों और आम मच्छरों में अंतर पता नहीं लगा।

दरअसल मादा मच्छर जीवन काल में एक ही बार संबंध बनाती हैं और शुक्राणु जमा करके जीवन भर अंडे निषेचित करती हैं तो अगर वैज्ञानिक उन्हें ये धोखा देने में क़ामयाब हो जाते हैं कि उन्होंने नर मच्छर से सफलतापूर्वक संबंध बना लिया है तो वे बिना ये जाने ही अंडे देना जारी रखेंगी कि उन अंडों का निषेचन यानी फ़र्टिलाइज़ेशन तो हुआ ही नहीं है।

कई पीढ़ियों के बाद धीरे-धीरे आम मच्छरों की संख्या गिरती जाएगी और उम्मीद है कि इससे मलेरिया को कम करने में मदद मिल सकती है।

 

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x