मोदी को गाली देकर चुनाव नहीं जीते जाते –
जनता बदलाव चाहती है और करती भी है।यही कारण है कि 2004 और 2009 में कांग्रेस का जनाधार घट गया । घटे जनाधार के कारण ही कांग्रेस को सत्ता में बने रहने के लिए यूपीए के दोनों कार्यकालों में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर सत्ता में बने रहने के लिए बाध्य होना पड़ा. निश्चित ही यह उनके जनाधार के खिसकने की कहानी है. जो पार्टी अपने दम पर कभी स्पष्ट बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज रहती रही हो उसे उसकी वर्तमान की यह गिरावट रास नहीं आ सकती।
सबसे बड़ा जनतांत्रिक परिवर्तन 2014 में हुआ जब कांग्रेस को मात्र 44 सीटों के साथ संसद में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ी। यह जितनी मोदी की करिश्माई जीत थी वहीं दूसरी ओर यूपीए शासन के दौरान हुए घोटालों के विरुद्ध जनता का जनादेश था. 2014 के चुनावों पर यदि नजर डालें तो यह कांग्रेस के अहंकार और एक अति सामान्य परिवार के चाय वाले मोदी के बीच की लड़ाई थी. असल में जनता ने कांग्रेस को उसके यूपीए कार्यकाल के दौरान हुए भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए क्षमा नहीं किया।
यही कारण था कि संसद के कुछ कार्यकालों में दो तिहाई बहुमत पाने वाली पार्टी सिमटकर 44 पर आ गिरी. 2014 में मोदी को जितने हलके में कांग्रेस ने लिया उससे कई गुना मोदी भारी साबित हुए. मोदी के पीछे का बैकग्राउंड मात्र इतना था कि उन्होंने गुजरात में तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली और केवल संभाली ही नहीं बल्कि उन्होंने गुजरात को एक ऐसा राज्य बनाया जहां राज्य की कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से गुजरात को देश के अन्य राज्यों से अधिक विकसित राज्य बनाया।
यही नहीं मोदी के गुजरात कार्यकाल में भी उन पर कभी कोई भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे. उनकी छवि एक ईमानदार और कर्मठ ऐसे नेता की रही जिसने केवल और केवल राज्य के विकास में अपनी ऊर्जा खपाई. यही कारण था कि गुजरात का विकास और उनकी बेदाग छवि ने देश की जनता में उनके प्रति ऐसा विश्वास पैदा किया कि वे देश के प्रधानमंत्री बने.
जहां तक कांग्रेस की बात है तो कांग्रेस के कार्यकाल में हुए कोयला, कॉमनवेल्थ, 2G, बोफोर्स तोप, सत्यम कंप्यूटर, अगस्ता वेस्टलैंड, टाट्रा ट्रक और मुंबई के आदर्श घोटाले जैसे और भी कई घोटाले हुए जिनसे उसकी छवि इतनी दागदार हो गई कि जनता में यह संदेश चला गया कि कांग्रेस का सत्ता में बने रहना देश की जनता की लुटाई से अधिक कुछ नहीं है।
कांग्रेस के 2014 में पतन के कारण जहां घोटाले थे तो वहीं दूसरी ओर उनके नेताओं के अशोभनीय आपत्तिजनक एवं अहंकार से भरे बयान थे, जो यह स्पष्ट करते थे कि उसने अपनी कमियों से कोई सीख नहीं ली बल्कि जनता को मोदी के विरुद्ध उकसाने का काम किया और आज भी जब देश 2019 के चुनावों की दहलीज पर खड़ा है कांग्रेस कोई सबक लेने को तैयार नहीं है. उसके सारे नेता मोदी में ना केवल कमियां ढूंढ रहे हैं बल्कि उन पर व्यक्तिगत टिप्पणी कर स्वयं को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं. जो काम उन्होंने 2014 के चुनावों में किया वही काम वे आज भी कर रहे हैं.
2014 में कांग्रेस इस गलतफहमी में थी कि मोदी जैसा क्षेत्रीय नेता कांग्रेस को पटकनी नहीं दे सकता. यही कारण था कि उनके नेताओं ने उल जलूल बयान देकर कांग्रेस की लुटिया डुबो दी. पाठकों को याद होगा कि मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री नहीं बन सकता।
यदि मोदी को चाय बेचना है तो कांग्रेस दफ्तर में उसकी व्यवस्था की जा सकती है. 2017 के गुजरात चुनाव के दौरान इन्हीं महाशय ने कहा कि मोदी एक नीच किस्म का आदमी है, उसमें कोई सभ्यता नहीं है. यही नहीं कांग्रेस के क्या छोटे और क्या बड़े सभी नेताओं ने मोदी को नीचा दिखाने के लिए अनाप-शनाप बयान दिए. सोनिया सोनिया गांधी ने जहां उन्हें मौत का सौदागर कहा तो राहुल गांधी ने सेना के खून की दलाली करने वाला निरूपित किया. गुलाम नबी आजाद ने मोदी को गंगू तेली कहा तो प्रियंका वाड्रा ने कहा मोदी नीच राजनीति करते हैं।
मल्लिकार्जुन खड़गे तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने में कांग्रेस का उपकार के जताते हुए यहां तक कह गए कि एक चाय वाला इसलिए प्रधानमंत्री बना क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को संरक्षित किया. कांग्रेस का पाकिस्तान प्रेम किसी से छिपा नहीं है कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर मोदी को हटाने में सहयोग की गुहार करते हैं तो पी. चिदंबरम आतंकी अफजल गुरु की फांसी पर कहते हैं कि यह फैसला सही नहीं था. दिग्विजय सिंह हाफिज सईद को साहब और ओसामा को ओसामा जी कहते हैं तो मोदी को हिटलर की संज्ञा देते हैं. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के इमरान मसूद ने 2014 में जब कहा था कि मोदी की बोटी बोटी काट दूंगा तो आज कह रहे हैं मोदी झूठों का सरदार है।
वस्तुतः कांग्रेस के पास जब मुद्दे नहीं हैं तब वह मोदी पर अपनी खीज निकालने से गुरेज नहीं करती. यही कारण है कि वह मोदी को गालियां देकर चुनाव जीतना चाहती है. मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतहा तो यह है कि कांग्रेस का कोई भी नेता तीन तलाक के मसले पर जुबान नहीं खोलता।
राहुल गांधी मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सरिया कोर्ट के मुद्दे पर चुप रहते हैं. जम्मू कश्मीर के डिप्टी ग्रैंड मुफ्ती मुफ़्ती जब कहते हैं कि या तो हमें सरिया अदालत दो या फिर अलग देश दो तो कांग्रेस के मुंह में दही जम जाता है. सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस गंभीर हताशा के दौर से गुजर रही है. 2019 में वह मुख्य विपक्षी पार्टी बनना चाहती है लेकिन शेष विपक्षी पार्टियां उसे भाव नहीं देती।
2019 के चुनाव भारत की राजनीति में इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण और धमाकेदार होंगे क्योंकि देश की समूची मोदी विरोधी पार्टियां का एक ही एजेंडा है ‘मोदी हटाओ’ पर इससे होगा क्या देश जान गया है कि देश सुरक्षित हाथों में हैं और देश की सुरक्षा कितना अहम मुद्दा है। विपक्ष कितनी भी गालियाँ दे लें पर गालियाँ देने से चुनाव तो नहीं जीते जाते।