प्रतिमा कराह उठी✍️अर्विना गहलोत
गांधी जी की प्रतिमा पर कबूतरों ने चेहरे पर अटखेलियां करते हुए गाँधी जी के चश्मे को गंदा कर दिया था । इस वज़ह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था कल तक एक तरफ से दिखाई दे रहा था आज वो भी इन कबूतर महाशय की मेहरबानी से दिखाई देना बंद हो गया ।
हे! भगवान ये क्या मुसीबत है ? शरीर मलिन हो गया है और चश्मा धुमिल हो गया है ।इन कबूतरों का क्या इलाज करु ? ये भी उन ढ़ीट लोगों में से हैं जिनकी फितरत ही परेशान करने की होती है।
लगता है ! शायद मेरे बचे हुए कर्मों का फल जो मुझे अब भी भुगतना पड़ रहा है। जिसका जी चाहता है वहीं हमारा दुरुपयोग कर रहा है, कोई नोट पर कोई वोट पर और हम खड़े खड़े देख रहे हैं।
खुद कुछ कर नहीं कर नहीं पा रहे पहले जैसा समय होता तो उपवास कर लेता अपना शुद्धिकरण कर लेता लेकिन हमारी मूर्ती बना कर इन नेता लोगो ने अपनी समृद्धि और हमारी भद्द पीट रहे हैं।
एक भूल तो बड़ी भारी हम से भी हो गई जो अपना नाम हमनें दान दें दिया अब ये गल्ती भारी पड़ गई है।
इतना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा कभी सपने में भी सोचा न था । नाम भी मजाक बन कर रह गया है ।
अब पता थोड़े ही था ,वरना सोच समझकर देते ।नाम भी सुपात्र को ही देना चाहिए था , लेकिन “अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत “और हमारी दशा ऐसी लग रही जैसे खेत में खड़ा बिजूका ।
झाडू की आवाज से ध्यान भंग हुआ सामने से गुजरते हुए सफाई वाले को देखा तो पुकारा ओ भईया मेरा जन्मदिन आरहा है मुझे भी नहला धुला कर साफ़ कर दो सफाई वाले ने एक तिरछी नजर हम पर डाली और झाड़ू लिए आगे बढ़ गया ।
धुंधलाए चश्में से देखने का प्रयास किया तो देखा हमारे पैरों के पास ढ़ेर सारा कचरा पड़ा है। धूप निकलने से उसमें से दुर्गंध आने लगी है ।
सांस लेना मुश्किल हो गया है। सफाई वाले ने गाँधी प्रतिमा को इग्नोर कर एकहाथ में झाड़ू पकड़ कर चाय की चुस्की लेने लगा । गांधी जी हताश हो देखने लगे ।
हे! भगवान मेने इनके लिए टायलेट बनाएं घर घर जा जा कर हिंदुस्तान से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक सालों साल साफ किए और इनको मुझे साफ़ करना भी बोझ लग रहा है।
मैंने इनके लिए क्या क्या नहीं किया सर पर मेला ढोना बंद कराया ? इन की वजह से तो मेरा परिवार मुझसे दूर हो गया था , मेरे त्याग का ये सिला मिला ऐसा दिन किसी को ना दिखाए ।
पूरा जीवन उपवास में बीत गया मरने के बाद भी किसीने एक कोर मेरे नाम का कउऐ को भी नहीं खिलाया खुद मेरे नाम पे तर माल खा रहे हैं । चुनाव पे चुनाव जीत रहे थे ।
धुंधले चश्मे से कुछ आकृतियां अपनी तरफ आती दिखाई दी।
वेशभूषा से स्कूली छात्राएं लग रही थी ।
उन्होंने सफाई के लिए झाड़ू और कपड़ा ले रखा था ।
एक लड़की के हाथ में बाल्टी मग और साबुन था वो जल्दी से ऊपर चबूतरे पर चढ़ी उसका साथ बाकी लड़कियों ने दिया देखते-ही-देखते उन्होंने हमारी और चबूतरे की सफाई कर दी वाह बड़ा ही तरोताजा महसूस हो रहा है। तभी एक लड़की आई और हमारे कान में हेप्पी बर्थडे बापू जी कहा तो हमारा दिल खुश हो गया ।
कुछ देर बाद गाडियां आकर खड़ी हो गई उसमें से सफेद कुर्ता धारी निकले और आगे बढ़ कर हमारे गले में माला डाली कुछ लोगों ने चंद फूल हमारी तरफ़ उछाले और द्रुतगति से गाड़ियों में बैठ कर चले गए ।
शाम तक मालाएं मुरझा गई ।
आस पास के कुछ गरीब बच्चों ने मालाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया और उससे खेलने लगे ।
कुछ कागज के टुकड़े जली अगरबत्ती के टुकड़े मेरे कदमों के चारों ओर बिखर गए । मेरे सपनों के भारत की तरह।
अर्विना गहलोत
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