रेल कर्मचारियों के लिए उत्पादकता से जुड़े बोनस की मिली स्वीकृति –

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मंत्रिमडल ने रेल कर्मचारियों के लिए उत्पादकता से जुड़े बोनस की स्वीकृति दी – 


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए सभी पात्र अराजपत्रित रेल कर्मचारियों (आरपीएफ/आरपीएसएफ कर्मियों को छोड़कर) को 78 दिन के वेतन के बराबर उत्पादकता से जुड़ा बोनस (पीएलबी) के भुगतान को अपनी स्वीकृति दे दी है। रेल कर्मचारियों के 78 दिनों के पीएलबी भुगतान पर 2044.31 करोड़ रुपये खर्च होंगे। पात्र अराजपत्रित रेल कर्मचारियों को पीएलबी भुगतान के लिए वेतन गणना सीमा 7000 रुपये प्रति माह निर्धारित है। 78 दिनों के लिए प्रत्येक पात्र रेल कर्मचारी को 17,951 रुपये का अधिकतम भुगतान देय होगा। इस निर्णय से लगभग 11.91 लाख अराजपत्रित रेल कर्मचारियों को लाभ मिलेगा।

रेलवे का उत्पादकता से जुड़ा बोनस पूरे देश के सभी अराजपत्रित रेल कर्मचारी (आरपीएफ/आरपीएसएफ कर्मियों को छोड़कर) को कवर करता है। पात्र रेल कर्मचारियों को पीएलबी का भुगतान प्रत्येक वर्ष दशहरा/पूजा अवकाशों से पहले किया जाता है। मंत्रिमंडल के निर्णय को इस वर्ष के लिए भी अवकाशों से पहले लागू किया जाएग। वर्ष 2017-18 के लिए 78 दिनों के वेतन के बराबर उत्पादकता से जुड़ा बोनस दिए जाने से रेलवे का कामकाज सुधारने में कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा।

• पृष्ठभूमिः

रेलवे भारत सरकार का पहला प्रतिष्ठान है जहां 1971-80 में उत्पादकता से जुड़ा बोनस देना प्रारंभ किया गया था। उस समय विचार का प्रमुख विषय यह था कि अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन में ढांचागत समर्थन देने में रेलवे की भूमिका महत्वपूर्ण है। रेलवे के सम्पूर्ण कामकाज को ध्यान में रखते हुए बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 के अनुरूप बोनस की धारणा के स्थान पर उत्पादकता से जुड़ा बोनस भुगतान को वांछित समझा गया।

॥●॥ मंत्रिमडल ने नेशनल जूट मैन्युफैक्चर्स कॉरपोरेशन लिमिटेड तथा इसकी सहायक कम्पनी बर्ड्स जूट एंड एक्स्पोर्ट्स लिमिटेड को बंद करने की मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने नेशनल जूट मैन्युफैक्चर्स कॉरपोरेशन लिमिटेड तथा इसकी सहायक कम्पनी बर्ड्स जूट एंड एक्स्पोर्ट्स लिमिटेड को बंद करने के लिएअपनी मंजूरी दे दी है।

• बंदी के लिए प्रक्रियाः

i. तयशुदा परिसंपत्तियों और चालू परिसंपत्तियों का निष्पादन 14/06/2018 के डीपीई के दिशा-निर्देशों के अनुसार होगा और देनदारियों को पूरा करने के बाद परिसंपत्तियों की बिक्री से हुई प्राप्तियां भारत की संचित निधि में जमा कराई जाएंगी।

ii. 14/06/2018 के डीपीई दिशा-निर्देशों के अनुसार परिसंपत्तियों के निष्पादन के लिए भूमि प्रबंधन एजेंसी (एलएमए) की सेवा ली जाएगी। एलएमए को निर्देश दिया जाएगा कि वह डीपीई दिशा-निर्देशों के अनुसार निष्पादन कार्य प्रारंभ करने से पहले परिसंपत्तियों का सम्पूर्ण रूप से सत्यापन करेगी।

iii. वस्त्र मंत्रालय का बीजेईएल की किसी जमीन या भवन का उपयोग अपने लिए या अपनी किसी सार्वजनिक प्रतिष्ठान के लिए करने का प्रस्ताव नहीं है तथा इसकी सूचना भूमि प्रबंधन एजेंसी को प्रत्यक्ष रूप से दी जाएगी।

• लाभः

इस निर्णय से सरकारी कोष को दोनों बीमार सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को चलाने में आ रहे आवर्ती खर्च को कम करने का लाभ मिलेगा। इस प्रस्ताव से घाटे में चलने वाली कम्पनियों को बंद करने में मदद मिलेगी और उपयोगी कार्य के लिए या विकास के लिए वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए मूल्यवान परिसंपत्तियों को जारी करना सुनिश्चित होगा।

दोनों सार्वजनिक प्रतिष्ठानों की जमीन का उपयोग कार्य सार्वजनिक/समाज के समग्र विकास के लिए सरकारी कार्य के लिए किया जाएगा।

• पृष्ठभूमिः

i. एनजेएमसी अनेक वर्षों से घाटे में चल रही है और 1993 से इसे बीआईएफआर को विचार के लिए भेजा गया है। कम्पनी का प्रमुख उत्पाद बोरी थी जिसका इस्तेमाल विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अनाज के पैकेजिंग के लिए की जाती थी। कई वर्षों से जूट की बोरी की मांग में कमी आ रही है और पाया गया है कि कम्पनी चलाने के लिए यह वाणिज्यिक रूप से लाभदायक नहीं है।

ii. एनजेएमसी की मीलों- किनीसन मिल टीटागढ़, खरदा मील, खरदा तथा आरबीएचएम मील, कटिहार-के पुनरोद्धार का प्रस्ताव किया गया था और यह 2016 से स्थगित है, (अंतिम मील किनीसन जूट मील 31/08/2016 को बंद की गई) क्योंकि ठेकेदार कार्य क्षमता को लागू करने और स्थानीय श्रमिकों की समस्या सुलझाने में विफल रहा है। आउटसोर्सिंग के विभिन्न मॉडलों का लागू करने का प्रयास किया गया लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। पहले के कार्य प्रदर्शन, बाजार की स्थितियों तथा प्लास्टिक से स्पर्धा और निजी जूट मीलों की क्षमता को देखते हुए यह पाया गया कि एनजेएमसी संचालन लाभों के माध्यम से अपनी ऋणात्मक शुद्ध संपत्ति को ठीक करने की स्थिति में नहीं है। एनजेएमसी के साथ कोई स्टाफ/श्रमिक नहीं है, इसलिए इसे बंद किया जाना चाहिए।

iii. एनजेएमसी की सहायक कम्पनी बीजेईएल का मामला बीआईएफआर को भेजा गया, जिसनेपुनरोद्धार योजना पर विचार किया था। प्रारूप पुनरोद्धार योजना लागू नहीं की जा सकी, क्योंकि पश्चिम बंगाल सरकार भूमि उपयोग के परिवर्तन पर सहमत नहीं हुई और तीन वर्ष के विलम्ब के बाद भी एएससी में राज्य सरकार का प्रतिनिधि नामित नहीं किया गया। बीजेईएल में कोई स्टॉफ नहीं है। फैक्टरी का संचालन नहीं हो रहा है इसलिए इसके बंद करने से कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।

॥●॥ मंत्रिमंडल ने बाइको लॉरी लिमिटेड को बंद करने की मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने बाइको लॉरी लिमिटेड (बीएलएल) को बंद करने की मंजूरी दे दी है। इस प्रक्रिया में कंपनी के कर्मचारियों के लिए स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति योजना (वीआरएस)/ स्वैच्छिक वियोजन योजना (वीएसएस) शामिल है।

सरकार के विस्तृत दिशा-निर्देशों के अनुरूप समस्त देनदारियों के निष्पादन के बाद बीएलएल की निष्क्रिय परिसंपत्तियों का उत्पादक उपयोग किया जाएगा।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने कंपनी को दोबारा चालू करने के लिए समय-समय पर विभिन्न कदम उठाए। बहरहाल, कंपनी को दोबारा चालू नहीं किया जा सका। इसके अलावा भारी पूंजी आवश्यकता तथा प्रतिस्पर्धी व्यापारिक माहौल के मद्देनजर कंपनी को दोबारा चालू करने की कोई संभावना नजर नहीं आती। कंपनी को लगातार घाटा होता रहा, जिसके कारण उसे आगे चलाना नुकसानदेह हो गया था। इसके अतिरिक्त अनिश्चित भविष्य के कारण अधिकारियों और कर्मचारियों में निराशा पैदा हो रही थी।

• पृष्ठभूमिः

बीएलएल अनुसूची ‘सी’ केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसई) है। इसमें तेल उद्योग विकास बोर्ड की इक्विटी 67.33 प्रतिशत और भारत सरकार की इक्विटी 32.33 प्रतिशत है। शेष 0.44 प्रतिशत हिस्सा अन्य के पास है। कंपनी का पंजीकृत कार्यालय और मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में है और इसके चार व्यापारिक प्रखंड हैं: स्विचगेयर मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रिकल रिपेयर, प्रोजेक्ट्स डिविजन और ल्यूब ब्लेंडिंग एवं फिलिंग फेसिलिटी।

कंपनी लगातार वित्तीय दबाव में थी और कामकाज संबंधी समस्याओं से भी जूझ रही थी। पिछले कई वर्षों से कंपनी को घाटा हो रहा था। बीएलएल का संचित घाटा उसकी इक्विटी से अधिक हो गया था और शुद्ध संपत्ति ऋणात्मक हो गई थी। वित्त वर्ष 2017-18 के अंत तक कंपनी की शुद्ध संपत्ति (-) 78.88 करोड़ रुपये और 31 मार्च, 2018 को उसका संचित घाटा (-) 153.95 करोड़ रुपये था।

॥●॥ मंत्रिमंडल ने पर्यावरण योगदान के लिए भारत और फिनलैंड के बीच समझौता-ज्ञापन को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने पर्यावरण योगदान के लिए भारत और फिनलैंड के बीच समझौता-ज्ञापन को मंजूरी दे दी है। इस समझौता-ज्ञापन से दोनों देशों के बीच समानता, आदान-प्रदान और पारस्परिक लाभ के आधार पर पर्यावरण सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए दीर्घकालीन सहयोग तथा नजदीकी प्रोत्साहन को बल मिलेगा। इसके मद्देनजर दोनों देशों में लागू कानून और कानूनी प्रावधानों को ध्यान में रखा जाएगा।

समझौता ज्ञापन से आशा की जाती है कि इसके जरिए बेहतर पर्यावरण सुरक्षा, बेहतर संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के बेहतर प्रबंधन और वन्यजीव सुरक्षा/संरक्षण के क्षेत्र में आधुनिक प्रौद्योगिकियों एवं उत्कृष्ट व्यवहारों को प्राप्त किया जा सकेगा।

• समझौता ज्ञापन में सहयोग के निम्नलिखित क्षेत्र शामिल हैं-

i) वायु और जल प्रदूषण रोकथाम और शुद्धिकरण, दूषित मिट्टी का उपचार

ii) घातक कचरे को शामिल करते हुए कचरा प्रबंधन, और कचरे-से-बिजली प्रौद्योगिकियां

iii) वृत्तीय अर्थव्यवस्था प्रोत्साहन, कम कार्बन वाले उपाय और वनों सहित प्राकृतिक संसाधनों का सतत् प्रबंधन

iv) जलवायु परिवर्तन

v) पर्यावरण और वन निगरानी तथा डाटा प्रबंधन

vi) समुद्री और तटीय संसाधनों का संरक्षण

vii) महासागरीय/समुद्री द्वीपों का समग्र प्रबंधन, तथा

viii) आपस में तय किए जाने वाले अन्य क्षेत्र

• पृष्ठभूमिः

पर्यावरण की बढ़ती हुई समस्या सिर्फ किसी एक देश तक सीमित नहीं है, बल्कि उससे पूरी दुनिया को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत विस्तृत तटीय रेखा और समृद्ध जैव-विविधता से भरपूर विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। फिनलैंड में वायु और जल प्रदूषण जैसी प्रमुख पर्यावरण समस्याएं हैं। इनके अलावा वहां वन्यजीव संरक्षण की भी समस्या है। फिनलैंड की प्रमुख पर्यावरण एजेंसी वहां का पर्यावरण मंत्रालय है, जिसकी स्थापना 1983 में हुई थी। वहां घरेलू और आसपास के देशों के उद्योगों से पैदा होने वाला प्रदूषण, वहां हवा और पानी की शुद्धता को प्रभावित कर रहा है। फिनलैंड को जल प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग जैसी चुनौतियों का भी सामना है। दोनों देशों को अशुद्ध जल प्रबंधन, लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण, वायु एवं जल प्रदूषण नियंत्रण तथा प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग जैसी कई पर्यावरण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

इस आपातस्थिति को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों ने तय किया है कि पर्यावरण की बढ़ती समस्याओं से निपटने के लिए आपस में मिलकर पर्यावरण सुरक्षा तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में नजदीकी और दीर्घकालिक सहयोग किया जाए। इसके अलावा बेहतर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में आधुनिक प्रौद्योगिकियों तथा उत्कृष्ट व्यवहारों को अपनाया जाए।

॥●॥ मंत्रिमडल ने तिरुपति और बेरहामपुर में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्‍थान (आईआईएसईआर) के स्‍थायी परिसरों की स्‍थापना और संचालन को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने तिरुपति (आंध्र प्रदेश) तथा बेरहामपुर (ओडिशा) में भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्‍थान (आईआईएसईआर) के नये परिसरों की स्‍थापना और संचालन को अपनी स्‍वीकृति दे दी है। इस पर 3074.12 करोड़ रुपये (गैर आवर्ती 2366.48 करोड़ रुपये तथा आवर्ती 707.64 करोड़ रुपये) की लागत आएगी।

मंत्रिमंडल ने प्रत्‍येक आईआईएसईआर में सातवें सीपीसी के स्‍तर 14 में रजिस्‍ट्रार के दो पदों के सृजन के लिए अपनी मंजूरी दे दी है।

• विवरण:

कुल 3074.12 करोड़ रुपये का लागत मूल्‍यांकन किया गया है। इसमें से निम्‍नलिखित विवरण के अनुसार इन संस्‍थानों के स्‍थायी परिसर के निर्माण पर 2366.48 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे:

# संस्‍थान
पूंजी
आवर्ती
कुल

# आईआईएसईआर तिरुपति
1137.16
354.18
1491.34

# आईआईएसईआर बेरहामपुर
1229.32
353.46
1582.78 

# कुल
2366.48
707.64
3074.12

॥ प्रत्‍येक आईआईएसईआर में 1855 विद्यार्थियों के लिए दोनों परिसर 1,17,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में बनाए जाएंगे जिसमें सभी आधारभूत सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।

॥ दोनों संस्‍थानों के स्‍थायी परिसरों का निर्माण दिसम्‍बर 2021 तक पूरा होगा।

• लाभ:

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्‍थान (आईआईएसईआर) स्‍नातक और स्‍नातकोत्‍तर स्‍तरों पीएचडी और एकीकृत पीएचडी पाठ्यक्रम में उच्‍चस्‍तरीय विज्ञान शिक्षा प्रदान करेंगे। दोनों संस्‍थान विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में शोध कार्य करेंगे। आईआईएसईआर श्रेष्‍ठ वैज्ञानिक प्रतिभा फैकल्‍टी के रूप में आकर्षित करके भारत को ज्ञान अर्थव्‍यवस्‍था की ओर ले जाने में सहायता करेंगे और भारत में वैज्ञानिक मानव शक्ति का मजबूत आधार तैयार करेंगे।

• पृष्‍ठभूमि :

आईआईएसईआर तिरुपति 2015 में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुसार स्‍थापित किया गया जबकि आईआईएसईआर बेरहामपुर की स्‍थापना 2016 में हुई। केन्‍द्रीय वित्‍त मंत्री ने 2015 के अपने बजट भाषण में इसकी स्‍थापना की घोषणा की थी। दोनों संस्‍थान अभी अस्‍थायी परिसरों से काम कर रहे हैं।

Sach ki Dastak

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