भारत शब्द निरन्तर प्रवाहमान सांस्कृतिक मूल्यों का समावेशीत स्वरूप प्रो सविता भारतद्वाज
सावित्री बाई फुले राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चकिया,चंदौली के इतिहास विभाग में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद,नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित ” भारत एक विचार : सांस्कृतिक मूल्य एवं सभ्यागत मूल्यों की खोज विषय पर दो दिवसीय
राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन आज किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रोफेसर सविता भारद्वाज , विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर ताबीर कलाम इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , मुख्य वक्त प्रो रवि कुमार मिश्रा, कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो संगीता सिन्हा एवं संयोजक डॉ संतोष कुमार यादव ने माता सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलित एवं माल्यार्पण द्वारा किया गया। तत्पश्चात सभी सम्मानित गण को बैज अलंकरण एवं पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया। इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में सभी सम्मानित अतिथियों द्वारा भारत का विभाजन : एक पुनर्विचार नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।
इस आयोजन की मुख्य अतिथि प्रोफेसर सविता भारद्वाज ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत शब्द निरन्तर प्रवाहमान सांस्कृतिक मूल्यों का समावेशीत स्वरूप है। जब सारी दुनिया में अंधकारमय था तो हमारा देश ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशमान रहा है। हमारे देश में जीवक, महर्षि पतंजलि, नागार्जुन,शंकराचार्य जैसे महान लोग ने अपने विचारों से अन्य लोगो को सदैव लाभान्वित किया है। हमें आधुनिकता की दौर में भी नवीनता के साथ साथ हमें अपनी स्थानीय परंपरा से भावनात्मक रूप से जुड़ना बेहद लाभकारी एवं सुखदायी महसूस होता है।
विशिष्ट अतिथि प्रो ताबीर कलाम ने अपने उद्बोधन में कहा कि मध्यकालीन अमीर खुसरो ने अपने ऐतिहासिक कृति’ नुहें सिपेहर ‘ में कहा कि भारत दुनिया का बेहद खूबसूरत देश है जिसमें ज्ञान,जलवायु एवं विविधतापूर्ण जीवन को बेहतर ढंग से संरक्षित एवं संवर्धित करता है।
विशिष्ट वक्ता प्रो रवि कुमार मिश्रा ने कहा कि भारत को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन आयामों एवं विचारों को जानना जरूरी है जिसके आधार पर सभी लोगो के विचार एवं कर्म को जोड़ने का कार्य किया है। हम किसी भी व्यक्ति, समाज एवं जाति के विचार को दूसरे पर आरोपित नहीं कर सकते है बल्कि संवाद को बढ़ावा देने का कार्य करे। अतः आज भी स्थानीय और वृहद परम्परा आपस में संवाद करती है जिससे नए रूप में प्रस्फुटित एवं प्रफुल्लित होता है है। भारतीय परंपरा में धर्म जीवन शक्ति प्रदान करती है जिससे व्यक्ति एवं समाज में सह अस्तित्व की भावना विकसित होता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही प्रो संगीता सिन्हा ने कहा कि हम सभी को सदैव अपने बच्चों को स्थानीय परंपरा एवं रीति रिवाज के प्रति संवेदनशील करना आवश्यक है, जिससे हमारी संस्कृति एवं परंपरा की जड़े मजबूती प्रदान हो।
इस कार्यक्रम में समारोहक श्री रमाकांत गौड़, एवं वाचिक स्वागत डॉ संतोष कुमार यादव ने किया। इस कार्यक्रम में भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों से विद्वतजन, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।