बिहार में जाति का खेला राजनीतिक झमेला देखने लायक

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बिहार में जातिगत जनगणना का मुद्दा बहुत पुराना है पर आज इस पर चुप्पी टूट कर बिखरती दिख रही है। 

मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के ताजा बयान ने जातिगत जनगणना पर 27 तारीख की बैठक पर संंशय खड़ा कर दिया है। उन्‍होंने कहा कि सर्वदलीय बैठक के लिए 27 तारीख पर सभी दलों की सहमति बनाई जा रही है। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार कहा था कि जातिगत जनगणना पर सर्वदलीय बैठक जल्‍द बुलाई जाएगी। इसके बाद जीतन राम मांझी ने आज सुबह दिए बयान में कहा कि 27 मई को सर्वदलीय बैठक बुलाई जा रही है। इसके अलावा इन दिनों

बिहार में सियासी हलचल की लू चल रही है। पिछले दिनों लालू यादव के घर पर बड़े सीबीआई छापों पर जिस तरह नीतीश कुमार ने अलग रूख लिया है। उसके बाद नीतीश के बीजेपी छोड़ने और लालू के साथ जाने के कयास और तेज हो गए हैं। इसके साथ ही एनडीए गठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार की तरफ से जनता दल यूनाइटेड विधायकों के लिए अगले 72 घंटे तक पटना में रहने का फरमान जारी कर दिया है और नीतीश कुमार लगातार विधायकों से मुलाकातें कर रहे हैं। जिसके बाद से ही सूबे में बड़े सियासी उलटफेर की अटकलें तेज हो गई हैं।
 नीतीश कुमार ऐसे राजनेता हैं जिनको लेकर उनके राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के कोई न कोई कयास चलते ही रहते हैं। जिसका नमूना भी नीतीश ने ही बीते दिनों छोड़ा था जब पत्रकारों से 30 मार्च को अनऔपचारिक बातचीत में  कहा कि वह राज्य विधानमंडल दोनों सदनों और लोकसभा के सदस्य रहे हैं और राज्यसभा में एक कार्यकाल से उनका राजनीतिक सफर पूरा हो जाएगा। अटकल या कयास हमेशा अधूरी जानकारी से बनते हैं। लेकिन राजनीति में तो जैसे अधूरी बात से भी पूरा मतलब निकालने की रिवाज है। संकेतों की राजनीति में किसी भी बयान या तस्वीरों को नरजअंदाज नहीं किया जाता। नीतीश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनाए जाने की बात सामने आने लगी हालांकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नीतीश की चाह राष्ट्रपति पद को लेकर है वहीं बीजेपी नीतीश के लिए रक्षा मंत्री या उपराष्ट्रपति के रूप में दो विकल्प सामने रख रही है।
हालांकि नीतीश के अगले स्टैंड को लेकर अलग-अलग तरह की चर्चा चल रही है। लालू से कथित करीबी पर बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि वो किसी भी कीमत पर नीतीश को लालू के साथ नहीं जाने देंगे। यही नहीं सुशील मोदी ने ये भी दावा किया है कि लालू, नीतीश, चिराग और मुकेश सहनी को बीजेपी एक नहीं होने देगी। सुशील मोदी ने कहा कि इस जन्म में वो कभी लालू के साथ नहीं जाएंगे।
सच कहें तो यह कार्रवाई ऐसे वक्त में हुई जब कुछ वक्त पहले लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला से जुड़े डोरंडा ट्रेजरी मामले में जमानत मिली थी। जिसके बाद बिहार में नए तरह की राजनीतिक सुगबुगाहट ने जोर  पकड़ लिया। चर्चा ये थी की 11 जून को लालू यादव के जन्मदिन के रोज कुछ बड़ा उलटफेर हो सकता है। जिसकी पटकथा दावत-ए-इफ्तार के दौरान से ही लिखी जाने लगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव एक साथ नजर आए। इन मुलाकातों के दौरान दोनों ही नेता एक-दूसरे के साथ सहज नजर आ रहे थे। ऐसा नहीं था कि राबड़ी आवास पर इफ्तार पार्टी कोई नई बात हो लेकिन इससे पहले नीतीश इससे किनारा करते रहे। कहा जा रहा था कि जिस तरह से ज्ञानवापी से लेकर मथुरा के मुद्दों को लेकर बीजेपी मोर एक्टिव मोड में है।
ऐसे में नीतीश को अपना वोटबैंक छिटकने का खतरा भी मंडराने लगा। यह भी कहा जा रहा था कि नीतीश और तेजस्वी का मिलन समारोह जल्द ही होने वाला था। सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार ने कहा था कि वो जनवरी 2024 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहेंगे और उसके बाद तेजस्वी यादव को बिहार के सीएम का ताज मिल जाएगा। लेकिन सीबीआई की छापेमारी से एक तरह की संकेत देने की कोशिश की गई है। बता दें कि राज्यसभा उम्मीदवार को लेकर चर्चा के लिए मीटिंग बुलाई गई। पिछले डेढ़ दशक की राजनीति को देखें तो ऐसा शायद पहली बार ही होगा कि नीतीश कुमार ने एमएलसी और राज्यसभा उम्मीदवार तय करने के लिए हाई लेवल मीटिंग की हो। विधायकों ने राज्यसभा चुनाव पर निर्णय लेने के लिए नीतीश कुमार को अधिकृत कर दिया। लेकिन अभी तक राज्यसभा में आरसीपी को लेकर फैसला नहीं लिया गया है।  प्रदेश कार्यालय में आरसीपी को लेकर मीडियाकर्मियों के सवालों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हल्के अंदाज में टाल दिया। उन्होंने कहा- ‘उसकी चिंता मत करिये। समय पर घोषणा होगी। पहले करने की क्या जरुरत है। अब देखा जाए तो बिहार की राजनीति में तीन मुख्य राजनीतिक दल ही सबसे ताकतवर माने जाते हैं। इन तीनों में से दो का मिल जाना जीत की गारंटी माना जाता है। बिहार की राजनीति में अकेले दम पर बहुमत लाना और सरकार बनाना  टेढ़ी खीर रहा है। नीतीश कुमार को ये तो मालूम है ही कि बगैर बैसाखी के चुनावों में उनके लिए दो कदम बढ़ाने भी भारी पड़ते हैं। बैसाखी भी कोई मामूली नहीं बल्कि इतनी मजबूत होनी चाहिये तो साथ में तो पूरी ताकत से डटी ही रहे, विरोधी पक्ष की ताकत पर भी बीस पड़े। अगर वो बीजेपी को बैसाखी बनाते हैं और विरोध में खड़े लालू परिवार पर भारी पड़ते हैं और अगर लालू यादव के साथ मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी की ताकत हवा हवाई कर देते हैं। इसके अलावा लालू यादव और राबड़ी देवी के घरों पर हाल ही में हुई सीबीआई की छापेमारी के संबंध में पूछे गए सवाल पर नीतीश कुमार ने कमेंट करने से इनकार कर दिया। पत्रकारों ने नीतीश कुमार से पूछा था कि आरोप है कि सीबीआई की ये छापेमारी राजनीति से प्रेरित थी। बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चलाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मेरे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है और इस संबंध में मुझे कुछ नहीं कहना है. उन्होंने ये भी कहा कि इस मामले में शामिल लोग ही आपके सवालों के जवाब दे सकते हैं।छापेमारी के बाद लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की ओर से आरोप लगाया गया था कि भारतीय जनता पार्टी के निर्देशों पर सीबीआई ने ये छापेमारी की है। राजद नेताओं की ओर से ये भी कहा गया कि सीबीआई की ओर से की गई छापेमारी का उद्देश्य नीतीश कुमार को चेतावनी देना था, जो हाल ही में राबड़ी देवी के घर पर आयोजित एक इफ्तार पार्टी में शामिल होने गए थे।

अंततः, पूरे मामले को देखें तो कहने को तो केवल ये मात्र चुनावी कयास हैं पर सवाल यह है कि सीबीआई का अचानक से एक्टिव हो जाना। नीतीश कुमार का यूं विधायकों का बैठक बुलाना बिहार में तेजी से बदलते राजनीतिक हालातों की नयी कहानी ना रच दे। खैर, जनता को सिर्फ़ धक्के ही मिलते हैं, इंसाफ नहीं बाकि नेताओं की चाँदी पूरी। बिहार अब भी चमक सकता है यदि नेता और जनता सब मिलकर जागें तो…!

Sach ki Dastak

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