मोदी सरकार ने सवर्णों को दिया आरक्षण
सच की दस्तक डेस्क नई दिल्ली- मोदी सरकार ने आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सवर्णों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए एक चाल चल दी है जिसके तहत अब आरक्षण का लाभ सवर्णों को भी मिल पाएगा।
हिंदी शासित तीन राज्यों में मिली करारी शिकस्त के बाद सवर्ण वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा व सहयोगी दलों में काफी दिनों से मंथन चल रहा था। एससी एसटी एक्ट के अध्यादेश आने के बाद सवर्ण नाराज हो गया था ।जिसका खामियाजा मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान के चुनाव में भाजपा को चुकाना पड़ा था।
इन राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को जिताने के लिए सवर्णों ने वोट नहीं किया लेकिन भाजपा को हराने के लिए नोटा बटन दबा दिया था। जिसका खामियाजा यह हुआ कि मध्य प्रदेश में कड़ी टक्कर के बावजूद भी जादुई आंकड़े से 8 सीट कम भाजपा को मिली ।जिसके कारण कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सरकार बनाई ।
कमोवेश यही स्थिति राजस्थान में दिखी थी और छत्तीसगढ़ में इसका प्रभाव लिखा था। ऐसे में सरकार ने यह सोचा कि एससी एसटी एक्ट अध्यादेश लाने के बाद सवर्णों को किस प्रकार अपने पक्ष में किया जाए आगामी लोकसभा चुनाव में इसका उन्हें फायदा मिल सके।
गहन मंथन के बाद आगामी आम चुनाव से पहले मोदी मंत्रिमंडल ने सोमवार को आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया है। मोदी मंत्रिमंडल ने इस फैसले को मंजूरी दे दी। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम कई मायनो में अहम है। अब सवर्ण समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी सरकारी नौकरियों व अन्य जगहों पर आरक्षण का लाभ मिलेगा। सच की दस्तक को मिली जानकारी के अनुसार, इस आरक्षण का लाभ उसी परिवार के सदस्य उठा पाएंगे जिनकी सलाना आय 8 लाख रुपये से कम है। आर्थिक रूप से पिछड़े के आरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया जाएगा।
राजनीतिक जानकारो की मानें तो एससी-एसटी एक्ट अध्यादेश पारित करने के बाद सवर्ण वोटर भाजपा से नाराज हो गए थे, जिसका खामियाजा भाजपा को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में उठाना पड़ा। नाराज सवर्ण वोटरों ने भाजपा को वोट देने की जगह नोटा का विकल्प चुना। इसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को झेलना पड़ा। भाजपा ने कई ऐसी सीटें गवां दी, जहां जीत के अंतर से ज्यादा नोटा के पक्ष में वोट पड़े थे।
ऐसी स्थिति में चुनाव से पहले मोदी सरकार का यह कदम सवर्ण वोटरों की नाराजगी दूर कर उन्हें एक बार फिर से अपनी ओर गोलबंद करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।