सुबह-ए-बनारस पर धांधली की कालिख..पढ़ें रिपोर्ट

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वाराणसी, 01 मार्च 2019, सच की न्यूज़।

कभी सांस्कृतिक चेतना के जागरण की मिसाल बने आयोजन पर अब सौदागरी काकस का कब्जा-

कोई साढ़े 4 साल पहले सूरज की पहली किरण को सुर संगीत की सलामी देने के उद्देश्य जिला प्रशासन द्वारा शुरू किया गया “सुबह-ए-बनारस” पर अब धांधली की कालिख पुतती नज़र आ रही है।

बाजारीकरण की मार का शिकार यह कार्यक्रम अब अपनी नैसर्गिक चमक खोता जा रहा है। संस्कृति के संरक्षण के नाम पर सुधीजनों की जगह अब इस आयोजन पर सांस्कृतिक माफियाओं का एक काकस हावी होने लगा है।

मनमानी का आलम यह है कि दुकानदारी पुख्ता करने के लिए उच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन कर अवैध निर्माण कराए जा रहे हैं। अब किसको चिंता, परंपरा और संस्कृति की खुलेआम चल रही तिजारत, श्रद्धा और आस्था की। गंगा आरती के नाम पर अब चंदे के रुक्के (रशीद) कटाये जा रहे हैं।

बात शुरू होती है अस्सीघाट विस्तार पर चलने वाली सुबह-ए-बनारस कार्यक्रम की। तत्कालीन समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव की पहल पर काशी के अस्सीघाट पर सुबह- ए-बनारस के नाम से इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी। उद्देश्य था दुनिया भर के मशहूर हुस्न से पुरनूर बनारस की सुबह को नई रंगत देना और देश दुनिया के पर्यटकों को सांस्कृतिक नगरी काशी में एक बेहतर स्पेस देना।

निश्चित तौर पर काशी वासियों ने प्रशासन की इस पहल का स्वागत किया। आने वाले एक एक दिन की बढ़त आयोजन की नीव को मजबूत करती रही।

इसके आयोजन की जिम्मेदारी स्वाभाविक रूप से तत्कालीन जिला सांस्कृतिक सचिव रत्नेश वर्मा के कंधों पर थी। आगे चलकर जैसा कि होता रहा है सत्ता और प्रशासनिक कुर्सियों की फेरबदल के बाद कार्यक्रम शासन-प्रशासन की ओर से उपेक्षित हो गया।

मगर तब तक इसके आयोजकों के मुंह सौदागरी का स्वाद लग चुका था।

पद का फायदा लेते हुए रत्नेश वर्मा ने कूटरचना करके सुबह-ए-बनारस नाम से एक संस्था रजिस्टर करा लिया और शुरू हो गया धांधलियों का खेल। उनकी साजिश रंग लाई और आयोजन एक सार्वजनिक बैनर की मर्यादा से निकल कर कुछ लोगों की जेब की संपत्ति बन गई।

नतीजा सामने है कार्यक्रम स्थल अस्सीघाट विस्तार पर इन लोगों का कब्जा है वह सुबह से शाम तक बेधड़क अपना शोरूम चला रहे हैं। कार्यक्रम के मंच का खुलेआम दुरुपयोग हो रहा है। अन्य किसी सार्वजनिक आयोजन को या तो जिला प्रशासन की धौंस देकर टाल दिया जा रहा है या तो उन्हें झांसा देकर आयोजन की कीमत वसूली जा रही है।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद कार्यक्रम मंडप में पक्का मंच और आसपास धड़ल्ले से हो रहे अवैध निर्माण से इस काकस की मंशा समझी जा सकती है।

शिकायतों के अनुसार अब तो आरती दर्शन, योग सत्र में भागीदारी के लिए फर्जी रसीद काटकर लोगों से पैसे भी वसूले जाने लगे हैं। पूरे कार्यक्रम पर एक गोल विशेष काबिज है जिस की हिमाकते है अब हदें तोड़ने लगी है।

Sach ki Dastak

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