हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व है। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 1 मार्च 2022 दिन मंगलवार को है। इस दिन 5 ग्रहों की पुनरावृत्ति भी होगी। मकर राशि में पंच ग्रही योग रहेगा। मंगल, शुक्र, बुध व शनि के साथ चन्द्र है। कुंभ राशि में सूर्य और गुरू की युति रहेगी। राहु वृषभ में और केतु वृश्चिक राशि में रहेगा। 1 मार्च को महाशिवरात्रि, मंगलवार, चतुर्दशी, धनिष्ठा नक्षत्र व शिव योग की युति बन रही है। चार प्रहर की पूजा का समय रहेगा। शिवरात्रि 1 मार्च तड़के 3ः16 बजे से शुरू होगी। चार प्रहर की पूजा का समय शाम को शुरू होगा। प्रथम प्रहर शाम 07ः07 पर है। द्वितीय प्रहर रात्रि में 09ः13 बजे है। तीसरा प्रहर मध्य रात्रि 12ः08 बजे है। चौथा प्रहर अगली सुबह 03ः43 बजे शुरू होगा। निशीथ काल पूजा का समय रात्रि 11ः54 बजे से 12ः43 बजे तक रहेगा। हिन्दू कैलेंडर के 12 मास में 12 शिवरात्रि होती हैं, लेकिन महाशिवरात्रि और शिवरात्रि में बड़ा अंतर है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है? आइए इन प्रश्नों के उत्तर जानते हैं।
महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं?
पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तीन कारणों से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें शिव-पार्वती का विवाह सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस कारण से महाशिवरात्रि को कई स्थानों पर रात्रि में शिव बारात भी निकाली जाती है। महाशिवरात्रि इन तीन वजहों से मनाई जाती हैः
1. शिव-पार्वती विवाह
माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुई थी। इस तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती के महामिलन के उत्सव के रूप में मनाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती का विवाह होने से इसका महत्व ज्यादा है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं, विवाह जल्द होता है।
2. महादेव का शिवलिंग स्वरूप
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन ही महोदव अपने शिवलिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे। तब सबसे पहले ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की थी। इस वजह से महाशिवरात्रि के दिन विशेष तौर पर शिवलिंग की पूजा करने का विधान है।
3. विषपान कर संसार को संकट से उबारा
कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकले विष का पान करके भगवान शिव ने इस सृष्टि को संकट से बचाया था, इस वजह से ही महाशिवरात्रि मनाई जाती है। सागर मंथन से निकले विष का पान करने से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था, जिस कारण उनको नीलकंठ भी कहा जाता है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
हिन्दू कैलेंडर के प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि कहा जाता है, यह मासिक शिवरात्रि के नाम से प्रचलित है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही आधी रात को भगवान शिव निराकार ब्रह्म से साकार स्वरूप यानी रूद्र रूप में अवतरित हुए थे, इसलिए इस तिथि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।
शिव पुराण के अनुसार पूजा में छह वस्तुओं को शामिल करें
शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक। बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है।
फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाते हैं।
जलती धूप, धन, उपज (अनाज)।
दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है।
और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष अंकन करते हैं।
अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है
तुलसी के पत्ते
हल्दी
चंपा और केतकी के फूल