हिंडेनवर्ग अडानी मामले में पीएम मोदी क्यों मौन?

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भ्रष्टाचार और जीरो टॉलरेंस की नीति पर सरकार को लकवा मार जाता है। 

_दिव्यांश श्रीवास्तव

हिंडेनबर्ग अडानी मामला गतिरोध जारी सरकार जे पी सी बनाने या सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच कराने को कौन कहे संसद में बहस कराने को भी तैयार नहीं वित्त सचिव ने कहा कोई गंभीर मामला नहीं जरूरी कदम उठाने के लिए स्वतंत्र नियामक मौजूद है।

सरकार पनामा पेपर लीक मामले की फाइल दबाए बैठी है, अभी तक उनके नाम संसद में भी उजागर नहीं किया सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े कदाचारियों का किसी घोटाले में नाम आते ही सरकार को सांप सूंघ जाता है। भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस नीति को लकवा मार जाता है,पूर्व की तरह सरकार मौन है। वित्त सचिव जवाब दे रहे हैं।

अडानी समूह की कंपनियों के शेयर में 70% की गिरावट और कंपनियों का मूल्यांकन पिछले 10 दिनों में ही 100 अरब डालर गिर जाने के बावजूद सरकार को चिंता नहीं है। तो चिंता कब होगी सरकार को बताना चाहिए कि देश के करोड़ों निवेशकों के साथ, एसबीआई के 27000 करोड़ और एलआईसी के 70000 करोड रुपए, जो एक सरकारी उपक्रम है।जिनका निवेश अडानी समूह की कंपनियों में है, क्या यह धन सुरक्षित है।

हर्षद मेहता प्रकरण में भी तात्कालिक सरकार ने इसी तरह का रुख अख्तियार किया था और देश को उसका नुकसान उठाना पड़ा अंततः काफी शोर-शराबे के बाद जेपीसी बनी और सेबी का गठन हुआ था सेबी निवेशकों के हितों की सुरक्षा को ध्यान में रखने और कंपनियों के कार्यों की निगरानी की व्यवस्था के लिए बनी थी सेबी के भी कार्यों की समीक्षा की जरूरत महसूस की जाने लगी है।

ऐसे में हिंडेनबर्ग रिपोर्ट पर संसद में चर्चा कराने से भागने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता. संसद में चर्चा करायी जाय, सत्यता प्रतीत हो तो जांच की व्यवस्था की जाये। तथा इस बड़ी जालसाजी का खुलासा पर्दाफाश हो सके।

सेबी से आरोपित कंपनियों के बारे में रिपोर्ट तलब की जा सकती है। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस और पारदर्शिता की वकालत करने वाली सरकार से यह उम्मीद तो की ही जा सकती है। अनियमितता, गलतियां, अपराध, लालच से उपजी, स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। कहीं भी कोई भी कभी भी उसका शिकार हो सकता है।सरकार को निष्पक्षता से कार्यवाही कर अपना दामन तो साफ रखना ही चाहिए।

_दिव्यांश श्रीवास्तव
नि. प्रदेश सचिव लोहिया वाहिनी उत्तर प्रदेश

Sach ki Dastak

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