सच की दस्तक डेस्क

दीपावली के बाद छठ पर्व हिंदुओं का महापर्व माना जाता है और विधि विधान के साथ भगवान भास्कर की पूजा की जाती है । मान्यता तो यहां तक है कि इस महापर्व यदि जरा सी भी गलती किसी के द्वारा हो जाती है तो तुरंत ही सूर्य भगवान उसे दंडित करते हैं । यह चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय खाय के साथ रविवार से शुरू होगा। इसके बाद सोमवार को खरना होगा। जिसे पूजा का दूसरा व कठिन चरण माना जाता है। इस दिन व्रती निर्जला उपवास रखेंगे और शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेंगे। अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है।
जानकारी हो कि नहाय खाय’ के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है जो रविवार को होगा। इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है| इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है और शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरम्भ करते है।

छठ पूजा के दुसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता हैजो सोमवार 12 नवम्बर को है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन खरना की विधि की जाती है।‘खरना’ का असली मतलब पुरे दिन का उपवास होता है। इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है।शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।

तीसरा दिन इस दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है जो मंगलवार 13 नवम्बर को है। सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है| इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य कोअर्ध्य दिया जाता है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के अर्ध्य के बाद छठी माता के गीत गाये जाते है और व्रत कथाये सुनी जाती है|
छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ध्य जाता है जो 14 नवंबर गुरुवार को है । इस दिन सूर्य निकलने से पहले ही व्रती व्यक्ति को घाट पर पहुचना होता है और उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है| इस पावन पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोलते है|

भगवान राम और माता सीता ने भी किया था छठ

भगवान राम सूर्यवंशी थे और इनके कुल देवता सूर्य देव थे। इसलिए भगवान राम और सीता जब लंका से रावण वध करके अयोध्या वापस लौटे तो अपने कुलदेवता का आशीर्वाद पाने के लिए इन्होंने देवी सीता के साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्टान एवं अन्य वस्तुओं से अर्घ्य प्रदान किया।

सप्तमी तिथि को भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद राजकाज संभालना शुरु किया। इसके बाद से आम जन भी सूर्यषष्ठी का पर्व मनाने लगे।एक अन्य कथा के अनुसार
महाभारत का एक प्रमुख पात्र है कर्ण जिसे दुर्योधन ने अपना मित्र बनाकर अंग देश यानी आज का भागलपुर का राजा बना दिया। भागलपुर बिहार में स्थित है।
अंग राज कर्ण के विषय में कथा है कि, यह पाण्डवों की माता कुंती और सूर्य देव की संतान है। कर्ण अपना आराध्य देव सूर्य देव को मानता था। यह नियम पूर्वक कमर तक पानी में जाकर सूर्य देव की आराधना करता था और उस समय जरुरतमंदों को दान भी देता था। माना जाता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिन कर्ण सूर्य देव की विशेष पूजा किया करता था।

अपने राजा की सूर्य भक्ति से प्रभावित होकर अंग देश के निवासी सूर्य देव की पूजा करने लगे। धीरे-धीरे सूर्य पूजा का विस्तार पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र तक हो गया। इसी क्रम में

छठ पर्व को लेकर एक कथा यह भी है कि साधु की हत्या का प्रायश्चित करने के लिए जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती और मादरी के साथ वन में दिन गुजार रहे थे।उन दिनों पुत्र प्राप्ति की इच्छा से महारानी कुंती ने सरस्वती नदी में सूर्य की पूजा की थी। इससे कुंती पुत्रवती हुई। इसलिए संतान प्राप्ति के लिए छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कहते हैं इस व्रत से संतान सुख प्राप्त होता है।

कुंती की पुत्रवधू और पांडवों की पत्नी द्रापदी ने उस समय सूर्य देव की पूजा की थी जब पाण्डव अपना सारा राजपाट गंवाकर वन में भटक रहे थे।

उन दिनों द्रौपदी ने अपने पतियों के स्वास्थ्य और राजपाट पुनः पाने के लिए सूर्य देव की पूजा की थी। माना जाता है कि छठ पर्व की परंपरा को शुरु करने में इन सास बहू का भी बड़ा योगदान है।

पुराण की कथा के अनुसार प्रथम मनु प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी। प्रियव्रत ने कश्यप ऋषि से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। महर्षि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करने को कहा। इससे उनकी पत्नी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन यह पुत्र मृत पैदा हुआ। मृत शिशु को छाती से लगाकर प्रियव्रत और उनकी पत्नी विलाप करने लगी। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी।

एक ज्योतियुक्त विमान पृथ्वी की ओर आता दिखा। नजदीक आने पर सभी ने देखा कि उस विमान में एक दिव्याकृति नारी बैठी है। देवी ने प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों संतान प्रदान करती हूं। देवी ने मृत बालक के शरीर का स्पर्श किया और बालक जीवित हो उठा।

महाराज प्रियव्रत ने अनेक प्रकार से देवी की स्तुति की। देवी ने कहा कि आप ऐसी व्यवस्था करें कि पृथ्वी पर सदा हमारी पूजा हो। तभी से राजा ने अपने राज्य में छठ व्रत की शुरुआत की। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी छठ व्रत का उल्लेख किया गया है।

तो यह थी छठी मैया के व्रत से जुडी कुछ पौराणिक कथाएं। जिनका अपना अपना महत्व और अपनी अपनी मान्यता है।

Sach ki Dastak

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x