उत्तर प्रदेश में चुनावी मेकअप –

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उत्तर प्रदेश में चुनावी मेकअप –

__आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एचडी मेकअप अब युद्ध स्तर पर है।सबको जनता के बीच अच्छा दिखने यानि चमकने की होढ़ मची हुई है । सत्तारुढ़ बीजेपी अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए अपने हिंदुत्व ऐजेंडे का फाऊंडेशन लगाकर कर पूरी तरह सज्य हैं तो विपक्षी दलों के नेता सत्तारूपी चमकती चाबी के गुच्छे को लपकने के लिए अडियल/ सख़्त योगी सरकार के खिलाफ ‘मैं सबसे बड़ा हिंदू’ होने का लंबा तिलक लगा, भगवा दुपट्टा लहरा रहे हैं। हालात यह हैं कि बीजेपी की तरह सम्पूर्ण विपक्ष भी हिन्दू-हिन्दू कर रहा है। देखने योग्य बात यह है कि इस बार अल्पसंख्यकों के वोट पाने के लिए कोई नेता मुस्लिम धर्मगुरुओं की चौखट पर दिखाई नहीं दे रहा है। ताज्जुब है कि इस बार नेतागण दरगाहों में चादर चढ़ाते भी नज़र नहीं आये। वैसे, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असद्दुदीन ओवैसी जरूर अपवाद हैं जो मुस्लिम वोटों की खुल कर पैरवी करने में लगे हुए हैं पर वह जमीनी तौर पर कितने गरीब और बेरोजगार मुस्लिम लोगों के हितेषी हैं यह मुस्लिम स्टूडेंट्स वोटर बखूबी जानते हैं । कड़वा सच तो यह है कि गरीब का कोई नहीं है। अच्छा यह रहा है कोरोना काल में भारत सरकार /बीजेपी ने हर किसी को भरपूर राशन दिया कि कोई भी भूखे पेट नहीं सोया । यह बेहद सराहनीय है। जिसमें योगी सरकार ने गरीबों को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन भी नहीं किया था। आँकडे कहते हैं कि जब से योगी सरकार है, चोरी,लोगों की पकड़ें, गुण्डागर्दी बहुत कम है और तो और माफियाओं के मंसूबों पर बुलडोजर चलाये जा रहे हैं पर यूपी के सरकारी शिक्षक परेशान हैं कि वह ऑनलाइन काम करें या स्कूलों में बच्चों को पढ़ायें, जूनियर में जिस स्कूल में हेड नहीं है उसको सहायक ही हेड बनकर देख रहा है वो भी कम्पोजिट हुए प्राथमिक और जूनियर स्कूल दोनों शामिल हैं। अब वह हेड का काम जैसे – बैंक का काम मिडडेमील का काम ऑनलाइन काम करे या बच्चों को पढ़ाये। जूनियर में एक शिक्षक हर विषय पढ़ाने को विवश, खेल शिक्षक नहीं, उधर सरकारी पैसा समय से नहीं आता। ऊपर से रसोइया लोगों का पैसा लटका हुआ है। बस यह है कि गुण्डागर्दी कम होने से यूपी के लोग योगी जी से खुश हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी जी ने आगामी चुनावों में महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि यह निर्णय पार्टी में आम सहमति से हुआ है। यदि मेरी मानी गई तो आने वाले समय में यह आरक्षण और बढ़ेगा। इसलिए यहां पर यह सवाल लाज़मी है कि जब संख्या बल ही लोकतंत्र, सियासत और आरक्षण का आधार है तो फिर आधी आबादी के लिए महिलाओं के लिए पूरा 50% टिकट यानी 50 फीसदी आरक्षण क्यों नहीं? और सिर्फ टिकट में ही क्यों, पहले अपनी पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में तो महिलाओं के लिए 50 फीसदी अपेक्षित! जगह बनाइए।इस वक्त तो उज्जवला योजना और तीन तलाक नियंत्रण कानूनों से महिलाओं का वर्ग पूरी तरह से पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार के पाले में है। हां,कुछ राज्यों में महिलाओं को यदि इससे भी अच्छा विकल्प मिला है तो उन्होंने ‘कमल’ का मोह त्याग कर अन्य को भी जिताया है। इसलिए प्रियंका गांधी की नये पैंतरे के लिए पर्याप्त स्पेस की गुंजाइश है, यदि संसद व विधान मंडलों में महिलाओं को मात्र 33 प्रतिशत आरक्षण देने-दिलाने हेतु पार्टी नेतृत्व के पुराने दांव-पेंचों को भी यदि मतदाता भुला दें तो! यह भी सच है और स्वागत योग्य है कि, जिस प्रकार से राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने को लेकर प्रियंका गांधी जी चिंतित दिखाई दे रही हैं, उसी प्रकार से यदि वो सचमुच अपने मुद्दे पर अडिग रहीं तो राजनीतिक परिदृश्य में महिला प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए पिछले दशक में प्रस्तावित आरक्षण एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए महिलाओं को लोकसभा और सभी राज्यों की विधान सभाओं में 50% प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने संबंधी महिला आरक्षण विधेयक को भी तत्काल पारित किया जाना आवश्यक है। आज भी गांवों में महिलाएं प्रधान जरूर बनती हैं पर सिर्फ़ कागजों में, पर प्रधानी उनके पति ही करते नज़र आते हैं। हमें इस ओर भी व्यापक सुधार करने की जरूरत है। वैसे तो 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन के फलस्वरूप आरक्षण प्रावधानों से पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, लेकिन इससे भी बड़े प्रयासों की आवश्यकता है।शक्तिपूजा वाले भारत देश में इस समय लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 14.8 प्रतिशत है। जोकि मंथन करने का विषय है। लेकिन, दुःखद बात यह है कि नेताओं की कथनी और करनी में अंतर है। भारत के लोकतंत्र के लिए यह दु:खद ही है कि पिछले सत्तर सालों में लोकसभा में चुनी हुई महिलाओं की मौजूदगी दोगुनी भी नहीं हुई है। बात प्रियंका गांधी की चल रही है तो याद आता है कि कांग्रेस में एक नेता थे देवकांत बरूआ। बरूआ जी कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे थे। बरूआ की पहचान कांग्रेस के दिग्गज नेता सहित पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा के वफादारों में थी। बरूआ जी ने ही आपातकाल के दौरान 1975 में नारा दिया था, ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’। यह नारा उस वक्त इंदिरा गांधी की ताकत को दिखाता था। एक समय इंदिरा जी को ‘कामराज की कठपुतली’ और ‘गूंगी गुड़िया’ कहा गया पर प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया ने उनका एक अलग रूप देखा। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, पूर्व रजवाड़ों के प्रिवीपर्स समाप्त करना, 1971 का भारत-पाक युद्ध और 1974 का पहला परमाणु परीक्षण… इन फैसलों से इंदिरा जी ने अपनी ताकत दिखाई। हालांकि 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनके निर्वाचन को रद्द कर दिया। इसके बाद इंदिरा ने आपातकाल लागू कर दिया। इसी समय नारा आया था ‘इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा’ का नारा।हालांकि, इसके ठीक बाद 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। मंथन में पता चला कि यह नारा ही निगेटिव साबित हुआ। पर आज इसी नारे को अब 2021 में कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पर ‘फिट’ करने की कोशिश में लगी है। कांग्रेसी ऐसा माहौल बना रहे हैं जैसे ‘मोदी ही भारत हैं, भारत ही मोदी हैं।’ जहां मोदी से लड़ते-लड़ते कांग्रेसी, देश विरोध पर उतर आते हैं। पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के समय, कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के मौके पर, नागरिक सुरक्षा काननू (सीएए), चीन से विवाद के वक्त, नये कृषि कानून के विरोध के नाम पर कांग्रेसी जिस लहजे में बयानबाजी कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि मोदी राज में भारत की अंतरराष्ट्रीय पटल पर जब कभी किरकिरी होती है तो कांग्रेसियों को मानो ‘जश्न’ मनाने का मौका मिल जाता है। इसीलिए कांग्रेसी /विपक्षी सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगते हैं। हाल यह है कि किक्रेट के मैदान में भारतीय क्रिकेट टीम को पाकिस्तान से हारती है तो कांग्रेसी नेता सोशल मीडिया पर चटकारे लेते हैं। जैसे- कांग्रेस की नेशनल मीडिया कोऑर्डिनेटर राधिका खेड़ा ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘क्यों भक्तों, आ गया स्वाद? करवा ली बेइज्जती???’ बता दें कि सोशल मीडिया पर मोदी समर्थकों के लिए इस टर्म का इस्तेमाल किया जाता है। लिहाजा, कांग्रेस लीडर ने एक तरह से टीम इंडिया की हार को मोदी से। तो कुछ लोगों ने इस्लाम की जीत तक कह डाला । यह सिलसिला 2014 से मोदी के प्रधानमंत्री बनने से शुरू हुआ था जो आज बदस्तूर जारी है और 2024 के लोकसभा चुनाव तक जारी ही रहेगा। यह लोग मोदी फोबिया के चलते देशहित में भी कुछ सुनने को ही तैयार नहीं हैं। गांधी परिवार को लगता है कि मोदी की इमेज को खंडित करके वह कांग्रेस के सुनहरे दिन वापस ला सकते हैं, तो यह एक दिवास्वप्न है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जी(पीके) ने इसको लेकर सटीक भविष्यवाणी की है कि भाजपा आने वाले कई दशकों तक भारतीय राजनीति में ताकतवर बनी रहेगी। वहीं राहुल जी के संबंध में प्रशांत जी का कहना था कि वह (राहुल गांधी जी) पीएम मोदी जी को सत्ता से हटाने के भ्रम में न रहें, जबकि राहुल गांधी कहते रहते हैं कि मोदी की सत्ता खत्म होना समय की बात है। देखा जाये तो भारतीय राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बताया जाता है। एक तरफ कहा जाता है कि आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता है तो दूसरी ओर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई होती है तो इसे सांप्रदायिकता से जोड़ दिया जाता है। वहीं जब कोई हिन्दू देशद्रोह के मामले में पकड़ा जाता है तो उसकी जाति बताई जाती है। इसी तरह से अपराध के किसी मामले में आरोपित यदि मुसलमान होता है, तो उसे साजिश के तहत फंसाये जाने की बात होने लगती है। सबसे खास बात यह है कि मोदी के नाम पर भारत की छवि को चोट पहुंचाने की साजिश में नेता ही नहीं कई गणमान्य हस्तियां भी बढ़-चढ़कर लॉबिंग करती हैं। इसीलिए कोई कहता है कि भारत अब रहने लायक नहीं रहा तो किसी को हिन्दुस्तान में डर लगता है औऱ पोस्टर गैंग, अवार्ड वापसी गैंग प्रकट हो जाता है पर जब किसी हिंदू का दिन – दहाड़े मर्डर कर दिया जाता है तो यह सब गैंग और सैक्यूलर लोगों की तोपों के गोले ठण्डे पड़ जाते हैं। जब कोई मुस्लिम मंत्री अपनी किताब में हिंदुत्व को आतंकी संगठन से तुलना करता है तब ये अवार्ड वापसी, पोस्टर, मोमबत्ती गैंग, तथाकथित सैकुलरगैंग किस बिल में घुस जाता है। हम सब कब सुधरेगें कि मानवता के नाम पर तो कम से कम एक रहें। वैसे चुनाव का माहौल है हिंदू-मुस्लिम होना तो तय है। वैसे उत्तर प्रदेश में चुनावी समर ब्यूटीपार्लर तक पहुंच चुका है। दूल्हें और बाराती अपने अपने खेमे/जनवासा में अपनी बिगड़ी सूरत को वादों के फेशियल से लीपापोती में लगे हैं। चुनावी समर के मतदाता नायकों को धर्म, संप्रदाय, आरक्षण और कई तरह के लालचरूपी नजरें यानि शगुन देकर पोटने में लगें हैं कुछ लोगों को देशी और अग्रेजी देकर भी अपना पाला भारी करने का प्रबंध जोरों पर है, भले ही नकली पीकर लोगों की जान पर बन आये पर साहिब! लोग का वोट से काम।इसी कड़ी में विधानसभा चुनाव में एक खास समुदाय के वोटों को लक्ष्य करते हुए 22 किस्म की प्राकृतिक सुगंधों को मिलाकर एक ‘समाजवादी इत्र’ लॉन्च किया है और दावा यह भी कि इसकी खुशबू से नफरत की राजनीति समाप्त होगी। खुद पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जी ने सपा मुख्यालय में इस अद्भुत इत्र का उद्घाटन किया। इत्र की शीशी तो छोटी थी, पर इसने राजनीतिक गलियारों में हलचल बड़ी मचा दी है। पर सच कहें तो सपा की बेरोजगारी भत्ता देने की पहल लाखों बेरोजगारों के लिए अंधेरे में टार्च की तरह थी और उनकी साईकिल व लैपटॉप से भी बहुत स्टूडेंट्स लाभान्वित हुए थे जोकि इस परफ्यूम पोलिटिक्स से घोर निराशा में डूब गये हैं। उधर मायावती ने जिस तरह मैला ढोने पर रोक लगाते हुये खुले शौचालय (खुड्डी) तुड़वाकर जातिविशेष को सम्मानित जीवन दिया।यह बेहद सराहनीय रहा और मायावती जी के कार्यकाल में कुख्यात डकैतों के सर्वनाश से यूपी की जनता को शांति मिली थी पर वह सिर्फ़ एक जातिविशेष पर ध्यान और नोटों की माला पहने पर जनता की नजरों में फीकी पड़ती चली गयीं।वैसे उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित वोटरों के बूते पर पैसे लेकर टिकट देने को मशहूर बसपा में इस बार भगदड़ मची हुई है। उसके वर्तमान विधायक और नेतागण अन्य दलों में भाग रहे हैं। लगता है कि शायद उनको बसपा का दलित वोट खिसकता नजर आ रहा है। इसीलिए वे पाले बदल रहे हैं और ब्राह्मण वोट के हथियाने में लगे हैं। पर ब्राह्माण जो योगी से कितने भी नाराज क्यों न हों पर वोट योगी को ही देगें क्योंकि उनके लिए हिंदुत्व /धर्म /संस्कृति रक्षा पहले है। इस बात के डर से हर नेता हिंदुत्व की ओढ़नी ओढ़े घूम रहा है। प्रदेश कांग्रेस में भी उठा- पटक तेज है। बसपा के पूर्व सांसद कादिर राणा, बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आरएन कुशवाह ने सपा का दामन थाम लिया। बुंदेलखंड के कांग्रेस प्रभारी व पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी और पूर्व विधायक उरई विनोद चतुर्वेदी भी अपने सैंकड़ों समर्थकों के साथ सपा में शामिल हुए। बसपा के पूर्व एमएलसी और ब्राह्मण नेता सुबोध पाराशर ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है।भाजपा के हिंदू वोटर को बांटने का प्रयास किया जा रहा है। मिहिरभोज की प्रतिमा को लेकर गूजर और चौहानों की मियाने खाली हैं, यानि तलवारें बाहर। दोनों मिहिर भोज को अपना माने हैं। जातिगत वोटों पर जबर्दस्त रार छिड़ा है। एक विवाद के बाद अब तो दोनों पक्ष मिहिर भोज की जगह-जगह प्रतिमा लगा रहे हैं। गोरखपुर में व्यापारी मनीष गुप्ता की मौत से प्रदेश के व्यापारियों में रोष है। अन्य दल इसका लाभ उठाने की कोशिश में हैं। लखीमपुर खीरी प्रकरण में केंद्र के गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के विरुद्ध चल रही कार्रवाई की बात से प्रदेश का ब्राह्मण नाराज होने लगा था। जोभी हो पर यूपी की जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग अखिलेश यादव जी के और दूसरा बड़ा वर्ग योगी आदित्यनाथ जी के समर्थन में है। हाल ही में अखिलेश जी ने भगवाधारियों को चिलमजीवी से जोड़ दिया था जिससे यूपी के संत समाज में भारी रोष व्याप्त है, वह कह रहे हैं कि ओछी राजनीति में हमें न घसीटें। और इससे हिंदू वोट कटने की सम्भावना काफी बढ़ गयी है। बहरहाल… चुनावी शहालग अभी दूर हैं देखिए! घोड़ी कौन चढ़ता है? वैसे सत्तारूपी घोड़ी जो चढ़े, पर देश का विकास होना चाहिए, हर हाथ को रोजगार, आपसी प्यार और हर घर सुख – शांति और उल्लास रहना चाहिए। यही चुनाव के बिनामेकअप के प्राकृतिक ऐजेंडे होने चाहिए।

 

Sach ki Dastak

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