26 नबम्वर – भारतीय संविधान दिवस

26 नबम्वर – भारतीय संविधान दिवस
भारत के राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी का मुख्य कर्तव्य
भारतीय स्वाधीनता संग्राम सैनानी, आई.सी.एस अधिकारी नेताजी श्री सुभाष चंद्र बोस के अनुसार – कोई भी शासक स्वेच्छा से अपने आधीनों को स्वाधीनता देता नहीं है, आधीनों को स्वाधीन होने के लिए स्वयं ही स्वेच्छा से अपने कर्तव्यपालन व मांग के द्वारा अपने शासक से अपनी स्वाधीनता स्वयं ही हासिल करनी होती है।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के बाद भारत के शासक प्रधानमंत्रीजी ने स्वयं ही स्वेच्छा से अपने भारत के संविधान में दर्ज लैंगिक समानता के अधिकार का अनुपालन करते हुए अपने आधीन भारत के समस्त राष्ट्रीय पुरूष नागरिकों को उनके व उनके राष्ट्रीय जनजीवन के जनहित में उनके कर्मानुसार/नागरिक कर्तव्य अनुसार उन्हें न्याय प्रदान करने वाला उनके भारत के राष्ट्रीय पुरूष वर्ण का मुखिया – उनके भारत का राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी दिया है।
स्वाधीन होने के लिए अपने भारत के शासक प्रधानमंत्रीजी से, अपने लैंगिक समानता के कर्तव्यपालन व मांग के द्वारा, भारत के राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी को भी, स्वयं ही व स्वेच्छा से अपने समस्त भारतीय महिलाओं को भी उनके व उनके भारतीय जनजीविका के न्यायहित में उनके धर्मानुसार/मानवाधिकार के अनुसार उन्हें भी न्यायजारी करने वाला उनके भारतीय महिला जाति का स्वाधीन विश्वगुरू मुखिया भारतीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश साहब, हासिल करवाना चाहिए।
जिससे कि भारतीय संविधान में दर्ज लैंगिक समानता के अधिकार व कर्तव्यपालन के तहत – अन्यायपीड़ित प्रत्येक आयु की समस्त भारतीय महिलाओं को व उनकी विवादित भारतीय जनजीविका को तथा भारत के अपराधपीड़ित प्रत्येक आयु के समस्त राष्ट्रीय पुरूषों को व उनके बाधित राष्ट्रीय जनजीवन को, अपने भारतीय सर्वोच्च न्यायलय में अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, निःशुल्क व ईश्वरीय न्याय जारी करने वाला- भारतीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश साहब व इनके जारी न्याय को प्रदान करने वाला – भारत का राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी, न्याय के मौलिक अधिकार के तहत, एक साथ समानरूप से समस्त भारतीय नागरिकों को हासिल हो सके।
जिससे कि लैंगिक समानता के अधिकार व कर्तव्य पालन के तहत – समस्त भारतीय नागरिकों अपनी पहिचान के सभी प्रकार के अभिलेखो में दर्ज अपने नाम के साथ, अपनी उत्पत्तिकर्ता भारतीय माता व अपने प्रगतिकर्ता भारत के राष्ट्रीय पिता का नाम, एक साथ समानरूप से दर्ज हासिल हो सके। ताकि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दर्ज हम भारत के लोग न कहे जाकर, हम भारतीय नागरिक कहे जा सके।
जिससे कि अपने इस भारतीय नागरिकता के प्रमाणपत्र व पहिचानपत्र आई.डी.प्रूफ द्वारा समस्त अन्यायपीड़ित भारतीय महिलाएं व उनकी विवादित भारतीय जनजीविका – निविर्वादित न्याययुक्त तथा भारत के अपराधपीड़ित समस्त राष्ट्रीय पुरूष व उनका बाधित राष्ट्रीय जनजीवन – निर्वाधित अपराधमुक्त, एक साथ समानरूप से सुखमय व्यतीत हो सके।
जिससे कि भारत के साथ पूरे विश्व में महिला व पुरूष विरोध, अन्याय व अपराध तथा विश्व अशांति व दानवता, एक साथ समानरूप से उन्मूलित हो सके।
वर्तमान 26 नबम्वर 2022 – भारतीय संविधान दिवस के मौके पर भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में आयोजित समारोह में वर्तमान भारत के शासक प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दमोदर दास मोदी ने वर्तमान भारत के राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीशजी से निवेदन करते हुए कहा है कि वर्तमान समय उनके कर्तव्य पालन का है। कर्तव्य पथ पर चलते हुए ही हम राष्ट्र का विकास कर सकते हैं। भारत से विश्व को बड़ी उम्मीदें हैं।
फिर भी यदि, भारत का राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश अपने लैंगिक समानता के मुख्य कर्तव्य का अनुपालन नहीं करता है, तो डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार – मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नहीं होगा कि हमारा संविधान खराब था। बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था। यदि संविधान को नेक नियति से लागू किया तो यह अच्छे परिणाम देगा और यदि बदनियति से लागू किया तो यह बूरे परिणाम देगा।