बिहार में चमकी बुखार से अब तक 144 बच्चों ने तोड़ा दम-
बिहार में एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार का प्रकोप बढ़ता जा रहा है।मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच) और केजरीवाल अस्पताल में 375 बच्चे एडमिट हैं. चमकी बुखार से पीड़ित मासूमों की सबसे ज्यादा मौतें मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में हुई हैं. वहीं चमकी बुखार की आंच अब मोतिहारी तक पहुंच गई है, जहां एक बच्ची बुखार से पीड़ित है।
उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर व आसपास के जिलों में एईएस (चमकी-बुखार) से बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। 18वें दिन मंगलवार को कुल नौ बच्चों की जान चली गई। मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच में पांच, समस्तीपुर सदर अस्पताल में दो व बेतिया मेडिकल कॉलेज व मोतिहारी सदर अस्पताल में एक-एक बच्चे की मौत हुई है।
वहीं, एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में 39 नये बीमार बच्चों को भर्ती किया गया है। एसकेएमसीएच में 30 व केजरीवाल अस्पताल में नौ नये मरीज भर्ती किये गये हैं। 18 दिनों में एईएस के 429 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें मुजफ्फरपुर में अबतक 144 बच्चों की मौत हो चुकी है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग प्रशासन की ओर से शाम में जारी रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरपुर में मंगलवार को चार बच्चों की मौत हुई।
विभाग की रिपोर्ट में अबतक 90 मौत की बात कही गई है। इस बारे में एसकेएमसीएच के अधीक्षक कक्ष में डीएम आलोक रंजन घोष व अधीक्षक डॉ. एसके शाही ने पत्रकारों को जानकारी दी। इसमें एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल की रिपोर्ट को शामिल किया गया है। दूसरी ओर बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार व राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक मनोज कुमार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यक्रम को लेकर सुबह से देर शाम तक डटे रहे।
समिति के कार्यपालक निदेशक ने देर शाम को सभी पीआईसीयू का जायजा लिया। साथ ही वायरिंग से जुड़ी व अन्य सामान्य समस्याएं थीं, उसको दूर करने के लिए आवश्यक निर्देश दिया। अधिकारियों ने एम्स पटना व एनसीडीसी पटना के विशेषज्ञों से इलाज को लेकर कई तकनीकी जानकारी ली।
मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हो रही बच्चों की मौत को लेकर मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञों के साथ बैठक की। इसमें ऐसे मामलों के अध्ययन और इन्हें रोकने के लिए अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञों का एक स्थायी समूह बनाने का फैसला किया गया।
इस बैठक में स्वास्थ्य मंत्रालय व महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा एम्स, एनसीडीसी, आईसीएमआर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञ शामिल थे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बैठक के बाद कहा कि विशेषज्ञों के समूह ने बिहार के मामलों में पीड़ित परिवारों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति, उनमें पोषण का स्तर, वर्तमान मौसम और मृत बच्चों में बड़ पैमाने में हाइपोग्लाइसेमिया, स्थानीय स्तर पर मौजूद स्वास्थ्य संबंधी अधोसंरचना आदि पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि समूह समय-समय पर मिलता रहे और ऐसे मामलों पर निगरानी रखे।
वहीं, आपको बता दें कि हालात का जायजा लेने के लिए खुद सीएम नीतीश कुमार मंगलवार को मुजफ्फरपुर स्थित एसकेएमसीएच अस्पताल पहुंचे लेकिन एसकेएमसीएच अस्पताल में लोगों ने नीतीश कुमार का जमकर विरोध किया। वहां मौजूद लोगों ने सीएम वापस जाओ का नारा लगाया. आपको बता दें कि लंबे से नीतीश कुमार के मुजफ्फरपुर नहीं पहुंचने के कारण सियासत हो रही है. वहां के लोगों में भी इस बात को लेकर आक्रोश था और आज जब नीतीश कुमार अस्पताल पहुंचे तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा हालत यह है कि मुजफ्फरपुर में इन दिनों चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों से पूरा अस्पताल भरा पड़ा है. वहीं, बच्चों की लाश भी दिख रहे हैं. अब इस प्रकोप के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को मुख्य रूप से जिम्मेवार ठहराया जा रहा है।
चमकी बुखार का कारण लीची को माना जा रहा पर असली कारण कुपोषण है-
कुछ डॉक्टर मानते हैं कि इस बीमारी का कारण लीची नहीं, बल्कि हीट और ह्यूमिडिटी है।इलाके में गर्मी जब 40 डिग्री के पार होती है और ह्यूमिडिटी 60 पार होती है, यह स्थिति कई दिनों तक लगातार बनी रहती है तो बच्चे बीमार होने लगते हैं।
इस बीमारी का मुख्य कारण कुपोषण है। यह लीची फल कुपोषित बच्चों में लक्षणों को बढ़ा सकता है। इसका कारण यह है कि इसमें मौजूद MCPG तत्व हाइपोग्लाइसीमिया (लो शुगर लेवल) को जन्म दे सकता है। इसलिए, यदि एक स्वस्थ बच्चा लीची खाता है, तो वह एईएस से पीड़ित नहीं होगा।
केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को स्वीकार करना चाहिए कि कुपोषण इसका कारण है। सरकार को लीची से ध्यान हटाकर हटकर कुपोषण से निपटने की कोशिश करनी चाहिए।
कुपोषित बच्चों के लीवर में ग्लाइकोजन कम स्टोर होता है। इसलिए यदि ग्लाइकोजन स्टोर नहीं हुआ, तो ग्लाइकोजन ग्लूकोज में टूट जाता है। जब इसकी कमी ज्यादा बढ़ जाती है, तो फैट बर्न होने लगता है। यह प्रक्रिया कीटोन्स जैसे उत्पादों द्वारा निर्मित होती है जो एक न्यूरोटॉक्सिन है। इसलिए, यदि कोई बच्चा बिना भोजन किए सोता है, तो यह पूरी शारीरिक प्रक्रिया दिन के घंटे से पूरी हो जाती है और फिर बच्चे को बुखार आ जाता है और कई बार वह चेतना भी खो देता है।
कुपोषित बच्चों के लीची में मौजूद MCPG जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा बढ़ता है। यह इतना अधिक है कि शुगर लेवल 30 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर तक गिर जाता है और कभी-कभी शून्य भी हो जाता है।
इससे जटिलताएं पैदा होती हैं। इससे सिर्फ कुपोषित बच्चों को ही खतरा है, इस तर्क से भी साबित होता है कि सभी मरने और बीमार होने वाले बच्चे कमजोर और गरीब वर्ग के हैं। लीची खाने वाला वो बच्चा, जो एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता हो और पर्याप्त भोजन प्राप्त करता हो, वो AES से पीड़ित नहीं होता है।