धर्म : महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़ा है मनमोहक पांडवखोली
रानीखेत( उत्तराखंड)। देवभूमि उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्वविख्यात है तो वहीं देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रही है कण कण में जहाँ विराजते हैं देव ऐसी देवभूमि में सदैव ही आस्था, श्रद्धा, विश्वास का अटूट संगम होता है। मनमोहक, रमणीक स्थान में बसे मनमोहक पाण्डवखोली में प्रत्येक वर्ष दिसम्बर माह में विशाल भण्डारे सहित विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है भले ही इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के कारण ये आयोजन भी अवश्य ही प्रभावित रहे हैं किन्तु महामारी कोरोना से बचाव के लिए सुरक्षा भी जरूरी है।
देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट नगर से लगभग बीस किलोमीटर दूरी पर बसा कुकुछिना नामक स्थान से खड़ी चढ़ाई पार करके ऊंची चोटी पर स्थित है महाभारत काल की घटनाओं को संजोये स्वर्गपुरी पांडवखोली। महाभारतकाल से जुड़ी घटनाओं एंव पाड़वों से जुड़ी हुई घटनाओं के कारण ही इस स्थान को पांडवखोली नाम से भी जाना जाता है।
पांडव-खोली अर्थात पांडवो का निवास स्थान,महाभारत काल में पांडवों ने वनवास में इस स्थान पर भी निवास किया था। इस कारण इस स्थान को पांडवखोली नाम से जाना जाता है। देवभूमि उत्तराखंड में ऊँची पहाड़ी पर विहंगम खूबसूरत स्थान पर बसा है आध्यात्मिक, पर्यटन की अपार संभावनाओं को संजोये हुवे पांडवखोली घनघोर वनों से घिरा हुआ है। एकांत दिव्य स्थल होने के कारण यहां आध्यात्म के साथ साथ पर्यटन विकास की अपार संभावनाऐं हैं ।
खूबसूरत पांडवखोली क्षेत्र चारों ओर से मंदिरों के समूहों से भी घिरा है और इन मंदिरों में लोगों की गहरी आस्था है। समय समय पर अनेक धार्मिक कार्यों एंव विभिन्न प्रतियोगिताओं आदि का आयोजन भी किया जाता है जिससे स्वर्गपुरी पांडवखोली में भक्तों की भीड़ लगी रहती है । पांडवखोली पहुंचने पर एक बुग्यालनुमा मैदान स्थित है जिसे भीम की गुदड़ी के नाम से जाना जाता है माना जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव वनवास में पांडवखोली क्षेत्र में निवास करते थे तो महाबली भीम इसी मैदान में शयन करते थे, इसलिए इस मैदान को भीम की गुदड़ी के नाम से भी जाना जाता है । प्रकृति की सुंदरता का आनंद पांडवखोली की ऊंची चोटी से लेने के लिए दूर दूर से सैलानी एंव देशी विदेशी पर्यटक यहां आते हैं। पांडवखोली से हिमालय की सुंदर श्रंखलाओं के दर्शन किये जा सकते हैं ।
सूर्योदय व सूर्यास्त का खूबसूरत दृश्य बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। अनेक पर्यटन विकास की संभावनाओं को भी खूबसूरत पांडवखोली समेटे हुवे है । महावतार बाबा गुफा , द्रोपदी विहार, भीम की गुदड़ी, ध्यान केन्द्र , सुंदर मंदिर परिसर मन को शांति प्रदान करने वाली एकांत रमणीक स्थल के गुणों को समेटे है स्वर्गपुरी पांडवखोली । हिमालय श्रृंखलाओं की खूबखूरत दर्शन स्थली है पांडवखोली।
यहां से प्रकृति की सुंदरता को निहारने से मन आनंदित हो जाता है।पांडवखोली में महावतार बाबा की गुफा भी है । जहां हर साल देशी विदेशी पर्यटक आकार ध्यान और योग करते हैं । ऊंची चोटी पर स्थित खूबसूरत पांडवखोली क्षेत्र चारों ओर से मंदिरों के समूहों से भी घिरा है । इसके चारों ओर स्थित हैं भरतकोट, मनसादेवी, सुखादेवी, व आदिशक्ति मां दूनागिरी के मंदिर समूह ।
इन्में श्रद्धालुओं की अटूट अगाध आस्था है । जहां सदैव भक्तों की भीड़ लगी रहती है । पांडवखोली में घने जंगल के बीच में एक बुग्यालनुमा मैदान भी है जिसे द्रोपदी विहार के नाम से जाना जाता है । एकांत रमणीक दिव्य स्थल होने के कारण पांडवखोली योग, ध्यान ,आध्यात्म की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है इसे धार्मिक व पर्यटन दृष्टि से भी विकसित किया जा सकता है इसके विकास व प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने के लिए यहां एक टावर भी बनवाया गया है ।
जिसे ध्यान केन्द्र के रूप में भी उपयोग किया जाता है व जाना जाता है । मुख्य मंदिर के चारों ओर घनघोर वनों से घिरा है खुबसूरत पांडवखोली क्षेत्र । मंदिर परिसर में पांडवों की मूर्तियां भी है । पांडवखोली में हर वर्ष ब्रह्मलीन महंत बलवंत गिरी महाराज की पुण्य तिथि पर दिसम्बर माह में भंडारे व विभिन्न प्रतियोगिताओ का आयोजन भी पथ भ्रमण संघ द्वारा किया जाता है ।
पांडवखोली के पूर्व में भरतकोट, पश्चिम में सुखा देवी मंदिर जो कुकुछीना व दूनागिरी मंदिर के बीच में स्थित है । उत्तर में मनसा देवी व दक्षिण में आदिशक्ति मां दूनागिरी का मंदिर स्थित है । पांडवखोली क्षेत्र अपार वन संपदा से घिरा क्षेत्र है जिसमें बहूमूल्य जड़ी बूटियों का खजाना है और अनेक दुर्लभ जड़ी बूटियां , पौधे , वन संपदा भी पांडवखोली के घनघोर वनों में है । महाभारत काल की घटनाओं से जुड़ी पांडवखोली क्षेत्र धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है किंतु यहां से प्रकृति का सुंदर विहंगम दृश्य भी श्रद्धालुओं, पर्यटको को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं ।
देवभूमि में अनेक धार्मिक स्थल अपनी आध्यात्मिक महत्ता को बतलाते हैं वही प्राकृतिक सौंदर्य की धनी हमारी देवभूमि उत्तराखण्ड में पर्यटन विकास की भी अपार संभावनाऐं हैं । खूबसूरत ऊंची चोटी पर स्थित महाभारत काल की घटनाओं को संजोये स्वर्गपुरी पांडवखोली एकांत व दिव्य स्थल होने के साथ साथ प्रकृति की अनुपम छटा को देखने का भी एक सुंदर धार्मिक, पर्यटन स्थल है यहां से सूर्योदय व सूर्यास्त के सुंदर नजारे को नयनाभिराम से देखा जा सकता है ।
मंदिर में ध्यान केन्द्र , सुंदर मंदिर परिसर, भीम की गुदड़ी, द्रोपदी विहार , महावतार बाबा गुफा आदि प्रमुख स्थान खुबसूरत पांडवखोली के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं । आज देवभूमि उत्तराखण्ड के इन खूबसूरत धार्मिक, स्थलों को विकसित करने की भी आवश्यकता है जिससे की महाभारत काल की घटनाऐं यादों को आध्यात्मिक, धार्मिक , दृष्टि से संजोया जा सके । देवभूमि की आस्था सदैव ही महान रही है और देवभूमि उत्तराखण्ड सदैव ही देवों की तपोभूमि रही है। वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सभी धार्मिक आयोजनों को सीमित कर दिया गया है तो अधिकाशं स्थानों पर कोरोना के सुरक्षा नियमों को अपनाकर ही पूजा अर्चना एंव अन्य आयोजनों संपन्न कराये जा रहे हैं। सभी जनमानस ईश्वर से वैश्विक महामारी कोरोना से जल्दी से जल्दी मुक्ति दिलाने की प्रार्थना कर रहे हैं।
शीघ्र ही इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से सभी जनमानस को मुक्ति मिल जायेगी और पूरे विश्व में पुनः खुशहाली आ जाये ,सभी जनमानस इसकी कामना कर रहे हैं।
__भुवन बिष्ट ,रानीखेत ,उत्तराखण्ड