आखिर! क्यों छोड़ा गया? विरोध के बीच आनंद मोहन की जेल से हुई रिहाई

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बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन गुरुवार सुबह जेल से रिहा हो गए। वह 1994 में आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की हत्या का दोषी पाये गये थे और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। नीतीश कुमार सरकार ने 10 अप्रैल को उनकी रिहाई की सुविधा के लिए जेल नियमों में बदलाव किया। बिहार सरकार ने आधिकारिक तौर पर 24 अप्रैल की शाम को आनंद मोहन को रिहा करने की अधिसूचना जारी की, जिसमें 27 कैदियों को रिहा करने के नाम भी शामिल हैं।

बाहुबली-राजनेता को उनकी रिहाई की खबर तब मिली जब वह पैरोल पर बाहर थे और सोमवार (24 अप्रैल) को पटना में अपने बेटे की सगाई समारोह में शामिल हो रहे थे। समारोह के दौरान आनंद मोहन को बताया गया कि वह करीब 30 साल पुराने हत्या के एक मामले में जेल से छूटा है।

आनंद मोहन की रिहाई पर IAS ऑफिसर्स एसोसिएशन ने व्यक्त की ‘गहरी निराशा’

केंद्रीय सिविल सेवा अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह ने आनंद मोहन को मुक्त करने वाले जेल नियमों में बदलाव करने के नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार के कदम पर “गहरी निराशा” व्यक्त की और कहा कि यह “न्याय से वंचित करने के समान” है।

इंडियन सिविल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (सेंट्रल) एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि बिहार सरकार के कदम से “लोकसेवकों के मनोबल का क्षरण होता है” और उन्होंने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। बयान में कहा गया है, “कैदियों के वर्गीकरण नियमों में बदलाव कर गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया, आईएएस की नृशंस हत्या के दोषियों को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन गहरी निराशा व्यक्त करता है।”

इस बीच जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने आनंद मोहन की रिहाई की कामना की।

आनंद मोहन को क्यों छोड़ा गया है?

बिहार के पूर्व सांसद 26 अन्य लोगों के साथ जेल से बाहर आए, जो 14 साल से अधिक समय से राज्य की विभिन्न जेलों में बंद थे। 10 अप्रैल को, बिहार सरकार ने मोहन की रिहाई की सुविधा के लिए नियम 481 में बदलाव करते हुए जेल नियमावली, 2012 में बदलाव किया। राज्य सरकार की आधिकारिक अधिसूचना ने 26 अन्य कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया, जिन्होंने 14 से 20 साल के बीच जेल में सेवा की थी।

 

जी कृष्णैया कौन थे?

जी कृष्णैया तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। वह एक गरीब दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे और उन्हें उस समय के सबसे ईमानदार नौकरशाहों में से एक कहा जाता था। 1994 में आनंद मोहन के नेतृत्व वाली भीड़ द्वारा हमला किए जाने के बाद उनकी मृत्यु हो गई।

रिहाई के नियम बदले? 

आनंद मोहन को जेल-मुक्त करने के लिए सरकार ने एक नियम में बदलाव किया है। सरकारी सेवक की हत्या करने वालों को पूरी सजा से पहले रिहाई की छूट का कोई प्रावधान नहीं था। सरकार ने बाकी सजायाफ्ता की तरह सरकारी सेवक की हत्या में शामिल अपराधियों के लिए भी इस छूट का प्रावधान किया। इस नियम में बदलाव के कारण आनंद मोहन छूट रहे हैं। इस बार छूट रहे बाकी 25 अपराधियों पर सरकारी सेवक की हत्या का केस नहीं था। इसलिए यह आरोप बिल्कुल निराधार है कि आनंद मोहन के लिए बदले नियम का फायदा इन्हें मिला। दरअसल, व्यवहार या बाकी विशेष कारणों से अपराधियों को सजा के अंतिम समय में कुछ राहत मिलती है। विभिन्न अवसरों पर ऐसी रिहाई होती रहती है। बाकी 25 की रिहाई उसी तरह की है।

राजपूत वोट का था फायदा? 

एक जमाने में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना कर क्षत्रिय राजनीति का पूरा सिस्टम खड़ा कर रहे आनंद मोहन को आज भी बिहार की राजनीति में राजपूतों के बीच प्रभावी माना जाता है।  वह कितने प्रभावी बचे हैं, यह 2024-25 के लोकसभा-विधानसभा चुनावों में पता चलेगा। वह किसके साथ रहते हैं, यह भी काफी हद तक निर्भर करेगा। इसके अलावा यह भी बड़ी बात है कि 1994 से 2005 के बीच का यह बिहार नहीं बचा है। तब और अब के युवाओं की मनोदशा में काफी अंतर है। राजनीतिक रूप से उर्वर बिहार में अब आनंद मोहन राजपूतों का वोट कितना घुमा सकेंगे, यह अभी तीर या तुक्का ही है।

आनंद मोहन के साथ कुल 27 को छोड़ने का नोटिफिकेशन जारी हुआ था। इनमें से एक की मौत पहले ही हो चुकी है। शेष 26 को छोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई और आनंद मोहन के पहले ही बहुत सारे छूट भी गए। कुछ तकनीकी कारणों से अभी रिहा नहीं हो सके हैं या उनकी रिहाई में वक्त भी लग सकता है। जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो छोड़े जा रहे इन 27 में 8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोयरी, एक कुर्मी, एक गंगोता और एक नोनिया जाति से हैं। जातीय जनगणना की प्रक्रिया के बीच इनकी जातियों की चर्चा भी गरम है, फिर भी काफी प्रयास के बावजूद 27 जेल से रिहा होने वालों में 2 की जाति का पता नहीं चल सका है। सत्तासीन जाति के हिसाब से इनकी संख्या का गणित आप खुद समझें तो बेहतर।

जनहित याचिका का क्या असर होगा? 
सामाजिक कार्यकर्ता अमर ज्योति ने अधिवक्ता अलका वर्मा के जरिए पटना हाईकोर्ट में बुधवार को जनहित याचिका दायर की। ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या को सजा में छूट का प्रावधान देने वाली अधिसूचना को रद्द करने की मांग करते हुए लिखा गया है कि “ऐसी छूट के कारण अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। आम आदमी की तरह ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या करने में अपराधी को हिचक नहीं होगी।” दरअसल, यह जनहित याचिका इस आदेश के पहले दायर होती और सुनवाई होती तो आदेश टलने की संभावना बन भी सकती थी, लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद हाईकोर्ट में सरकार इसपर कमजोर पड़ेगी- ऐसी संभावना अमूमन नहीं दिखती है।

Sach ki Dastak

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