भारतीय न्याय की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव
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आज से लगभग 75 वर्ष पूर्व 15 अगस्त सन् 1942 को सिंगापुर में भारतीय न्याय की स्वाधीनता का तिरंगा नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस व इनकी इण्डियन नेशनल आर्मी ने लहरा दिया था।
ब्रिटिश विधि आधीन भारत को, भारतीय न्याय स्वाधीन भारत बना दिया था। परन्तु भारत विरोधी व ब्रिटिश समर्थकों को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस को दूसरे विश्वयुद्ध का फर्जी आरोपी घोषित करवाकर उन्हें भी मरवाने हेतु व इस वास्ते उन्हें पकड़वाने हेतु फर्जी गिरफ़्तारी वारंट जारी करवा दिया था। नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस भारत में खून खराबा नहीं चाहते थे।
अपनी आत्मरक्षा करते हुए व अपना गुमनामी जीवन व्यतीत करते हुए नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि मुझे इस फर्जी आरोप व वारंट की चिंता नही। मुझे चिंता यह है कि यदि भविष्य में तीसरा विश्वयुद्ध हुआ और मेरे मित्र देशों की फौजों ने हमारा साथ दिया तथा मेरे ही देश की फौज कमजोर हुई, तो फिर मेरे भारत का क्या होगा?
इसलिए मेरे प्यारे देशवासियों! अपने भारतीय न्याय की स्वाधीनता को हासिल करने की जंग जारी रखना में इस जंग को अपने आख़री दम तक लड़ता रहूंगा। भारत को अब कोई भी ब्रिटिश विधि आधीन शासक और अधिक समय तक अपने आधीन नहीं रख पायेगा। भारत व भारतीय न्याय व स्वाधीन होकर रहेगा। हम फिर मिलेंगे। नेताजी श्रीसुभाषचंद्र बोस ने कहा था कि कोई भी शासक स्वेच्छा से अपने आधीनों को स्वाधीनता देता नहीं है, आधीनों को अपनी स्वाधीनता स्वयं ही हासिल करनी होती है।
भारतीय संविधान में जेन्डर जस्टिस अर्थात लैंगिक समानता का अधिकार दर्ज है। इस अधिकार के अनुपालन के तहत भारत के शासक प्रधानमंत्रीजी ने स्वयं ही स्वेच्छा से अपने आधीन भारत के समस्त राष्ट्रीय पुरुषों को नियंत्रित करने व उन्हें अपने राष्ट्रकर्म के अनुसार आसानी से व अनिवार्य रूप से न्याय प्रदान करने हेतु उनके भारत का राष्ट्रीय पुरूषवर्ण का मुखिया गवर्नर जनरल ऑफ़ इण्डिया अर्थात चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया दिया है।
इसी प्रकार, अपने भारत के शासक प्रधानमंत्री जी से अपने कर्तव्यपालन व मांग के द्वारा गवर्नर जनरल ऑफ़ इण्डिया अर्थात चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया को भी स्वयं ही व स्वेच्छा से अपने समस्त भारतीय महिलाओं को भी नियंत्रित करने व उन्हें भी उनके देश धर्म के अनुसार अपना न्याय जारी करने वाले उनके अमर स्वाधीन भारतीय महिला जाति के मुखिया विश्वगुरू इण्डियन गवर्नर जनरल अर्थात इण्डियन चीफ जस्टिस साहब को अपने भारतीय सर्वोच्च न्यायलय में हासिल करना चाहिए तथा उनके भारतीय न्याय की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाना चाहिए।
जिससे कि समस्त भारतीय नागरिकों को अपने भारतीय सर्वोच्च न्यायलय में अपने इण्डियन चीफ जस्टिस साहब व अपने चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया एक साथ समान रूप से हासिल हो सकें तथा समस्त भारतीय नागरिकों को अपनी पहचान के सभी प्रकार के अभिलेखों मे दर्ज अपने नाम के साथ, अपनी विवाहित माता का नाम व अपने विवाहित पिता का नाम, एक साथ समान रूप से दर्ज हासिल हो सके।
जिससे कि अपने इन आई.डी. प्रूफ के द्वारा अपने भारतीय स्वाधीन न्याय के मौलिक अधिकार के तहत समस्त अन्याय व अपराध पीड़ित भारतीय नागरिकों को अपने संबंधित भारतीय न्यायलय से अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण व निःशुल्क ईश्वरीय न्याय आसानी से व अनिवार्य रूप से हासिल हो सके तथा न्यायलयों में मुकदमों का बोझ समाप्त हो सकें।
जिससे कि समस्त भारतीय महिलाओं की भारतीय जनजीविका व भारत के समस्त राष्ट्रीय पुरूषों को राष्ट्रीय जनजीवन, निर्विवादित न्याययुक्त प्रतिभाशाली व निर्वाधित अपराधमुक्त मर्यादाशाली, नियंत्रित सृजनशील वैभवशाली उत्पादनशील व नियंत्रित स्मृद्धिशाली प्रगतिशील, भारतीय महिला मानव देशधर्मी व भारत का राष्ट्रीय पुरूष नागरिक राष्ट्रकर्मी स्नेह व प्रेम से एक साथ समान रूप से सुखमय व्यतीत हो सके।
सभी की अपनी खोयी हुई साख पुनः हासिल हो सके और कोई भी अकाल मृतक न हो सके। भारत विश्व की न. 1 अर्थव्यवस्था, विश्वविजयी कृषि व सैन्यशक्तिशाली, अत्याधुनिक व आध्यात्मिक ज्ञानी विज्ञानी व अनुसंधानी, गौरवशाली अखण्ड भारतवर्ष विश्वगुरू हो सके। भारत में भारतीय न्याय की स्वाधीनता की शिक्षा के अंकपात, नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय पुनः स्थापित, क्रियांवित व संचालित हो सकें जहां विश्व के न्यायप्रिय विद्यार्थी भारतीय न्याय की स्वाधीनता की शिक्षा हासिल कर, अपने देश के न्यायाधीश हो सकें।
यह तभी सम्भव है कि जब चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया, अपना स्वयं व स्वेच्छा से कर्त्तव्य पालन कर अपने अमर इण्डियन चीफ जस्टिस साहब को पुनः अपने भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में हासिल करें ताकि विश्वशांति व मानवता को पुनः स्थापित, क्रियांवित व संचालित किया जा सके तथा विश्व के सभी देशों में अपने न्याय की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव बहुत बड़े पैमाने पर एक साथ समान रूप से मनाया जा सके। जय हिंद
__राकेश प्रकाश सक्सेना, एडवोकेट