माता ब्रह्मचारिणी मंदिर, वाराणसी में लगा भक्तों का तांता –
वाराणसी से विकास गोण की रिपोर्ट –
माँ दुर्गा की आराधना का महापर्व नवरात्रि का शुभारंभ धर्म नगरी काशी में हो चुका है। देवी के नौ रूपों की पूजा इन नौ दिनों में की जाती है। वाराणसी के सभी नौ-दुर्गा मंदिरों में भी भक्तों का ताँता लगा हुआ है।मान्यता है कि नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के दर्शन का विधान है। वाराणसी में माँ का ब्रहमचारिणी का मंदिर दुर्गाघाट पर स्थित है।यहां विराजमान मां ब्रहमचारिणी के मस्तक पर मुकुट शोभायमान है। पीली और लाल चुनरी में माता का रूप मनभावन है। नवरात्र के दूसरे दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या। तप का आचरण करने वाली भगवती जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और ताप ब्रह्मा अर्थ है।ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है। जो देवी के इस रूप की आराधना करता है उसे साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है।
दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है।माँ ब्रह्मचारिणी को ब्रहमा की बेटी कहा जाता है, क्योंकि ब्रहमा के तेज से ही उनकी उत्पत्ति हुई है। माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाएं हाथ में जप की माला और बाये हाथ में कमंडल है।
माँ के इस स्वरुप की आराधन करने पर शक्ति, त्याग, सदाचार, सयम और वैराग में वृद्धि होती है।माँ को लाल फूल का चढ़ावा बहुत पसंद है। माँ के तेज की लीला अपरम्पार है। कहते हैं यहां आकर जो भी मुराद मागी जाती है वो जरुर पूरी होती है। काशी सहित आस-पास के जनपदों में भी इस मंदिर की बहुत मान्यता है।