चित्रांश सभा औरैया ने किया क्रांतिकारी छुन्नू लाल सक्सेना की मूर्ति पर माल्यार्पण

आज 76वें स्वतंत्रता दिवस पर चित्रांश सभा औरैया के समस्त पदाधिकारियों ने महान स्वतंत्रता सेनानी छुन्नू लाल सक्सेना की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। और औरैया के साथ ही देश के अनेकों शहीदों को याद किया। इस कार्यक्रम में प्रमुख रूप से भीमसेन सक्सेना, बुद्धसेन सक्सेना,सलिल सक्सेना, राकेश प्रकाश सक्सेना, विकास सक्सेना, राहुल सक्सेना, अंक्षाशु सक्सेना, अरूण सक्सेना, अखिले सक्सेना, सर्वेश सक्सेना सहित तमाम सोसलवर्कर मौजूद रहे।
आइये! उन हुतात्मा को याद करें-
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी छुन्नू लाल सक्सेना, औरैया की अविस्मरणीय यात्रा :
इतिहास –
12 अगस्त 1942 के दिन औरैया के युवाओं के निशाने पर सरकारी भवनों पर फहर रहे अंग्रेजी यूनियन जैक आ गए. यूनियन जैक को उतार फेंकने और हिन्दुस्तानी इमारतों पर तिरंगा फहराने को बेताब युवाओं और छात्रों के कदम सड़क पर आ गए.पढ़ने के लिए बस्तों में रखीं किताबें घर के कमरों में कैद हो गयीं और हाथ में आ गया तिरंगा. बलिया, पटना, जबलपुर और देश के अन्य शहरों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के औरैया के छात्रों ने अंग्रेजी सेना के खिलाफ ऐसा कोहराम मचाया कि अंग्रेजी हुक्मरानों की नींद ही उड़ गयी.
औरैया के 6 छात्रों की अविस्मरणीय शहादत
यूनियन जैक को उतारकर कुचलने और तिरंगा फहराने कि जद्दोजहद में औरैया के 6 छात्र मंगली प्रसाद, भूरेलाल, बाबूराम, दर्शन लाल, सुल्तान खान, कल्याण चंद्र
अंग्रेजी पुलिस की गोलियां खाकर शहीद हो गए.
और छुन्नू लाल सक्सेना ने जब यह देखा तो वह अंग्रेजों पर टूट पड़े और पीछ से उनके साथ सियाराम सक्सेना, वीरेंद्र सिंह, विजय शंकर गुप्ता, कृष्ण दत्त राय, रामदीन सुनार, परशुराम पोरवाल, पुंसई और सोने लाल भी टूट पड़े जिसके हाथ में जो आया बस.. इसी से गीदड़ अंग्रेज अपने काम को अंजाम देकर दूर निकल गये और यह सब लोग अपने शरीर पर जहां तहां अंग्रेजों की गोली लगने से बुरी तरह घायल हो गए।
बता दें कि 12 अगस्त 1942 को घटी यह घटना उत्तर भारत कि सबसे बड़ी घटना थी. जेल में कैद भारतीय नेताओं के कानों ने जब औरैया के छात्रों की हुंकार सुनीं तो उनके मुंह से निकल पड़ा “इन्कलाब जिंदाबाद”.
औरैया की मिट्टी से गांधी जी ने लगाया था तिलक
गुलामी के दिनों में ए.बी हाईस्कूल के नाम से विख्यात यहीं के तिलक इंटर कालेज का भवन आज भी शहर की शान बढ़ा रहा है. इन इमारतों में लगी एक-एक ईंट आजादी की जंग की हर पल की गवाह है. यहां के छात्र विद्यालय के परिसर में खड़े पेड़ों की छांव में बैठ कर अंग्रेजों से लोहा लेने की रणनीति भी बनाते थे. गांधी जी भी इस परिसर में आकर यहां की मिट्टी का तिलक अपने माथे पर लगा चुके हैं. उनके द्वारा रोपित पौधा अब वृक्ष बनकर शीतलता प्रदान कर रहा है.