पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ कांग्रेस का कपट –
17 भाषाओं के जानकार और देश के पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून, 1921 को हुआ था। तेलगांना में जन्में पीवी नरसिम्हा राव का पूरा नाम पामुलापति वेंकट राव था। नरसिम्हा राव पेशे से कृषि विशेषज्ञ और वकील थे, जब वह राजनीति में आए तो कई महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। तेलगांना के एक छोटे से गांव करीमनगर में जन्में नरसिम्हा राव ने पुणे के फरग्यूसन कॉलेज में पढ़ाई की और यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई से लॉ की डिग्री हासिल की। इसके अलावा उन्होंने हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय और नागपुर विश्वविद्यालय से भी पढ़ाई की।
पीवी नरसिम्हा राव देश के ऐसे एकलौते प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्हें 17 भाषा बोलने में महारत हासिल की। तेलगांना में जन्म होने के कारण इनकी मातृभाषा तेलुगु थी, लेकिन मराठी भाषा में भी इनकी अच्छी पकड़ थी। भारतीय भाषाओं के अलावा पीवी नरसिम्हा राव को स्पेनिश और फ्रांसीसी भाषा का भी ज्ञान था। राव को संगीत, सिनेमा व नाट्यशाला में भी रुचि रखते थे। लेखनी के धनी राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू और हिंदी में कविताएं लिखने व साहित्य में विशेष रुचि रखते थे। उन्होंने स्वर्गीय विश्वनाथ सत्यनारायण के प्रसिद्ध तेलुगु उपन्यास ‘वेई पदागालू’ के हिंदी अनुवाद ‘सहस्रफन’ और केंद्रीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित स्वर्गीय हरि नारायण आप्टे के प्रसिद्ध मराठी उपन्यास “पान लक्षत कोन घेटो” के तेलुगू अनुवाद ‘अंबाला जीवितम’ को सफलतापूर्वक प्रकाशित किया।
1998 में अटल सरकार के समय हुआ परमाणु परीक्षण नरसिम्हा राव की सरकार में ही हो सकता था, लेकिन उनकी सरकार में ऐसा नहीं हो सका। ‘सामग्री तैयार है तुम आगे बढ़ सकते हो’ राव ने यह बात अटल बिहारी बाजपेयी से कही थी। राव दिसंबर, 1995 में परीक्षण की तैयारी कर चुके थे, लेकिन तब उन्हें किसी वजह से वह ऐसा नहीं कर सकते थे। इसके पीछे कई थ्योरी गिनाई जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अपनी मौत से पहले उनसे वरिष्ठ पत्रकार ने परमाणु परीक्षण नहीं कर पाने पर सवाल पूछा था, इस पर राव ने अपने पेट पर थपकी मारते हुए कहा था, ‘अरे भाई, कुछ राज मेरी चिता के साथ भी तो चले जाने दो।’ इस मामले में विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘हाफ लॉयन’ में तीन थ्योरी बताई है, जिसकी वजह से वह परमाणु परीक्षण नहीं कर पाए।
बता दें कि भारत के 10 वें प्रधानमंत्री के कार्यकाल में ही ‘लाइसेंस राज’ समाप्त हुआ और भारतीय अर्थनीति में खुलापन आया। उनके कार्यकाल में ही भारत का बाजार दुनिया के लिए खुला था।
पूर्व प्रधानमंत्री की जयंती के दौरान आयोजित कार्यक्रम में सुभाष ने कहा, ‘1996 चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद, उन्हें (नरसिंहा राव) पार्टी से कई कारणों से साइडलाइन कर दिया गया था जिनका उनकी सरकार की पॉलिसी से कोई लेना-देना नहीं था। कांग्रेस पार्टी ने सोचा कि गांधी-नेहरू परिवार से इतर कोई आगे बढ़ जाएगा तो उनकी चमक फीकी पड़ जाएगी, इसलिए राव जी को ही किनारे कर दिया गया।’
कांग्रेस के नेता ने पूर्व पीएम नरसिम्हा राव पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान गांधी-नेहरू परिवार को दरकिनार करने की कोशिश की थी। इस पर उनके पोते और बीजेपी नेता एनवी सुभाष ने कांग्रेस पर जबर्दस्त पलटवार करते हुए कहा कि – , ‘कांग्रेस पार्टी की सारी कमियों को नरसिम्हा राव के मत्थे डाल दिया गया और उनके योगदान की कभी कद्र नहीं की गई। मैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी से माफी की मांग करता हूं। उन्हें यहां आकर नरसिम्हा राव को श्रद्धांजलि देनी चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘दुनियाभर के लोग कांग्रेस पार्टी और देश के लिए नरसिम्हा राव जी के योगदान को मानते हैं। जब राजीव गांधी की मौत हुई थी तो वह पीएम बने थे।’
आज जब कांग्रेस पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री को याद कर रही है वह उसके एक दशक पहले के रुख से बिल्कुल उलटा है।23 दिसंबर, 2004 को दिल्ली में नरसिम्हा राव का निधन हुआ था।वैसे तो उनकी मौत से काफी पहले ही कांग्रेस उन्हें राजनीतिक रूप से निर्वासित कर चुकी थी, फिर भी लोगों को उम्मीद थी कि शायद मौत के बाद पार्टी उनके प्रति सम्मान दिखाएगी लेकिन पार्टी मुख्यालय में राव के लिए कोई श्रद्धांजलि सभा तक आयोजित नहीं होने दी गई इससे बड़ा कांंग्रेस का कपटीपन क्या होगा कि केंद्र की यूपीए सरकार ने तुरत-फुरत यह इंतजाम कर दिया कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली की बजाय हैदराबाद में किया जाए।