कविता : डर्टी पोलटिक्स ✍️पंकज प्रियम
बता हरबार क्यूँ सरजी, .यहाँ खाते तुम्हीं लप्पड़।
किया है पाप क्या तूने, किसी का दिल दुखाया है-
भला तुझको सदा ही क्यूँ, यहाँ देते सभी झप्पड़।।
कहीं जूते कहीं थप्पड़, कहीं स्याही कहीं चप्पल,
सियासी मंच में अब तो दिखे ड्रामा यही पलपल।
गिरी है शाख अब सबकी, नहीं कंट्रोल है अबकी-
चुनावी जंग में अब तो, जुबानी तीर चले हरपल।।
गलत ये बात है लेकिन, करे जनता यहाँ पे क्या,
लगी जब चोट हो दिल पे, भला वो चुप रहेगा क्या।
दिखाकर ख़्वाब नेता जो, भरोसा तोड़ जाता है-
भड़क कर के यही जनता, लगादे हाथ तो फिर क्या।
कहीं जुमले कहीं नारे, कहीं थप्पड़ यहाँ मारे
जुबानी जंग सभी लड़ते, सभी मुद्दे यहाँ हारे।
नहीं जनता यहाँ कोई, दिखे सब वोट हर कोई-
सियासी खेल में वोटर, वही हरदम यहाँ हारे।।
बड़ी बेशर्म महबूबा, जुबाँ है पाक की इसकी,
लगी मिर्ची इसे देखो, मिली जो पाक को धमकी।
अगर इतनी मुहब्बत है, पड़ोसी मुल्क से तुझको-
चले जाओ उसी के घर, तुझे चाहत यहाँ किसकी।।
अरे राहुल ! सुनो मेरी, चलो अब मान भी जाओ,
अदालत से लिया माफ़ी, कहा जो मान भी जाओ।
निकल के कोर्ट से बाहर, वही फिर बात दुहरायी-
तुम्हारी बात बचकानी, इसे तुम जान भी जाओ।।
टिकट की आस में नेता, यहाँ पल-पल बदलता है,
टिकट जो कट गयी उसकी, नया वो दल बदलता है।
न कोई राज रहता है, न कोई नीति रहती है-
सियासी खेल में नेता, जगह हरपल बदलता है।।
झटक कर हाथ राहुल का, पकड़ ली हाथ उद्धव की।
किया निराश राहुल ने, प्रियंका हो गयी शिव की,
मुखर आवाज़ कांग्रेसी, भला वो चुप कहाँ रहती-
दिया जो छेड़ गुंडों ने बनी सेना वही शिव की।।
दिखाकर ख़्वाब मीठे वो, करेगा वोट का सौदा,
पकड़ कर पैर वो तेरा, करेगा झूठ का सौदा।
अभी नेता बना बैठा, यहाँ पर वोट सौदागर-
कभी ना नोट से करना, नहीं तुम वोट का सौदा।।
उगाये खेत से सोना, वही किसान होता है,
जमीं का चीर के सीना, जमीं पे जान बोता है।
किसानों की भलाई का, करे दावा सभी नेता-
लगा फाँसी अन्नदाता, भला क्यूँ प्राण खोता है।।
चयन तुम आज ही कर लो, किसे कुर्सी बिठाना है,
किसे नीचे गिराना है, किसे ऊंचा उठाना है।
मिला अधिकार है तुमको, नया निर्माण करने को-
तुम्हारे हाथ चयन होगा, किसे रखना हटाना है।।
निकल आओ घरों से अब, हमें सबको जगाना है,
हमारी वोट की ताक़त, हमें जग को दिखाना है।
मिला अधिकार है हमको, नया निर्माण करने को-
सही मतदान अब कर लो, नहीं इसको गँवाना है।।